Vat Savitri Vrat 2020: वट सावित्री व्रत में महिलाएं क्यों करती हैं बरगद के पेड़ की पूजा? बेहद खास है वजह-पढ़िए यहां
By मेघना वर्मा | Published: May 18, 2020 11:12 AM2020-05-18T11:12:09+5:302020-05-18T11:16:03+5:30
मान्यता है कि वट सावित्री के दिन उपवास और पूजा करने वाली महिलाओं के पति पर आयी संकट टल जाती है और उनकी आयु लंबी होती है।
इस साल 22 मई को वट सावित्री व्रत मनाया जाएगा। ये व्रत स्त्रियों के लिए खास बताया जाता है। मान्यता है कि इस दिन उपवास और पूजा करने वाली महिलाओं के पति पर आयी संकट टल जाती है और उनकी आयु लंबी होती है। सिर्फ यही नहीं आपकी शादी-शुदा जिंदगी में भी कोई परेशानी चल रही हो तो वो भी सही हो जाती है।
वट सावित्री व्रत में सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से भी वापिस ले आई थी। वट सावित्री व्रत वाले दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का भी विधान है।
क्यों पूजा जाता है बरगद का पेड़
हिन्दू शास्त्र में बरगद के पेड़ को महत्वपूर्ण बताया जाता है। मान्यता है कि बरगद के पेड़ में त्रिदेवों यानी ब्रह्मा,विष्णु और महेश का वास होता है। वट सावित्री व्रत के दिन विवाहित महिलाएं वट वृक्ष पर जल चढ़ाकर उसमें कुमकुम और अक्षत लगाती हैं। पेड़ में रोली लपेटी जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति सत्यवान को जीवित किया था। इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा और इसलिए इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है।
वट सावित्री व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
वट सावित्री व्रत - 22 मई 2020
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 21 मई 2020 को शाम 09 बजकर 35 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 22 मई 2020 को रात 11 बजकर 08 मिनट तक
वट सावित्री व्रत पूजा-विधि
1. वट सावित्री व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. अब व्रत का संकल्प लें।
3. 24 बरगद फल, और 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष के लिए जाएं।
4. 12 पूरियां और 12 बरगद फल वट वृक्ष पर चढ़ा दें।
5. इसके बाद एक लोटा जल चढ़ाएं।
6. वृक्ष पर हल्दी, रोली और अक्षत लगाएं।
7. फल-मिठाई अर्पित करें।
7. धूप-दीप दान करें।
7. कच्चे सूत को लपेटते हुए 12 बार परिक्रमा करें।
8. हर परिक्रमा के बाद भीगा चना चढ़ाते जाएं।
9. अब व्रत कथा पढ़ें।
10. अब 12 कच्चे धागे वाली माला वृक्ष पर चढ़ाएं और दूसरी खुद पहन लें।
11. 6 बार इस माला को वृक्ष से बदलें।
12. बाद में 11 चने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली को पानी से निगलकर अपना व्रत खोलें।