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देवता और दानव की कहानी: जब ब्रह्मा जी ने देवता और दानवों के सामने रखी थी ये अजीब सी शर्त...

By मेघना वर्मा | Updated: December 9, 2019 11:54 IST

लोक कथाओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने देवताओं और दानवों के सामने ऐसी शर्त रखी जो अपने आप में भी अजीब थी। आप भी पढ़िए पूरी कथा।

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ठळक मुद्देब्रह्मा जी ने नारद से कहा कि वह देवता और दानवों को भोजन के लिए आमंत्रित करें।सबसे पहले  दानव ब्रह्मलोक पहुंचे।

सनातन धर्म में देवता और दानवों की कहानियां खूब सुनने को मिलती हैं। देवता और दानवों के बीच में श्रेष्ठ कौन है इस चीज को लेकर भी हमेशा ही बहस बनी रहती थी। लोककथाओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने देवताओं और दानवों के सामने ऐसी शर्त रखी जो अपने आप में भी अजीब थी। आप भी पढ़िए पूरी कथा।

एक बार देवर्षि नारद ने ब्रह्मी जी से कहा, 'आप तो परमपिता हैं। देवता और दानवो दोनों आपकी ही संतान हैं। एक भक्ति में श्रेष्ठ हैं तो एक शक्ति और तप में। अब ऐसे में दानव और देवता में सबसे अधिक श्रेष्ठ कौन है इसका कैसे पता चलेगा।' नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा कि उन्होंने कैसे देवताओं को स्वर्ग और दानवों को नरक में जगह दी?

इस पर ब्रह्मी जी ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर देना कठिन है। दोनों की तुलना वह अपने मुंह से करना उचित नहीं समझते। ब्रह्मा जी ने नारद से कहा कि वह देवता और दानवों को भोजन के लिए आमंत्रित करें। इस प्रश्नन का जवाब वह भोजन के समय ही देंगे। नारद ने ऐसा ही किया। उन्होंने देवता और दानवों को भोजन का निमंत्रण दे दिया।

सबसे पहले  दानव ब्रह्मलोक पहुंचे। ब्रह्मा जी ने भोजन शुरू करने के लिए कहा। थालियों में भोजन परोसे जाने लगे। तभी ब्रह्मा जी ने कहा कि दानव अब भोजन शुरु तो कर सकते हैं मगर एक शर्त है। वो शर्त ये है कि असुरों का हाथ अब कोहनी से मुड़ नहीं पाएगा। इसी स्थिती में उन्हें खाना खाना पड़ेगा।

इस पर पूरी दानव सेना हैरान रह गई। किसी ने थाली में मुंह लगाकर खाना खाने की कोशिश की तो किसी ने हवा में खाने को उछालकर खाने का प्रयास किया। मगर कोई सफल नहीं हो पाए। अंत में सभी दानव वहां से बिना खाए ही चले गए। कुछ समय पश्चात देवता, ब्रह्मलोक पहुंचे। उनके सामने भी ब्रह्मा जी ने यही शर्त रखी।

देवता समझ गए कि अपने हाथ से भोजन करने पर रोक है। देवता अपनी जगह से थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़े और अपने सामने बैठे या आस-पास बैठे दूसरे देवताओं को खाना खिलाने लगे। ऐसे ही सभी देवताओं ने एक-दूसरे को बिना किसी परेशानी के खाना खिलाया। इस तरह बिना हाथ मोड़े उन सभी ने भोजन कर लिया। नारद जी ये सभी दृश्य देखकर संतुष्ट थे और उन्हें उनका जवाब अपने आप मिल गया था।

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