जैन महाकुंभ 2018: श्रवणबेलगोला में गोम्मटेश्वर भगवान 'बाहुबली' का हुआ महामस्तकाभिषेक, जुड़ी है ये पौराणिक कथा

By धीरज पाल | Published: February 17, 2018 04:41 PM2018-02-17T16:41:38+5:302018-02-17T18:20:28+5:30

इस वर्ष के महामस्तकाभिषेक का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 7 फरवरी को किया था। 

shravanabelagola jain maha kumbh mela 2018 Bahubali Mahamasthakabhisheka Mahotsava | जैन महाकुंभ 2018: श्रवणबेलगोला में गोम्मटेश्वर भगवान 'बाहुबली' का हुआ महामस्तकाभिषेक, जुड़ी है ये पौराणिक कथा

जैन महाकुंभ 2018: श्रवणबेलगोला में गोम्मटेश्वर भगवान 'बाहुबली' का हुआ महामस्तकाभिषेक, जुड़ी है ये पौराणिक कथा

जैन धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थल श्रवणबेलगोला में 'जैन महाकुंभ' की शुरुआत हो चुकी है। यह महाकुंभ 12 साल में एक बार आता है। जैन धर्म के इस महाकुंभ में लाखों देशी-विदेशी भक्तों के बीच श्रणवबेलगोला में  भगवान गोटमेश्वर बाहुबली का महामस्तकाभिषेक किया गया। हर 12वें साल में महामस्तकाभिषेक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता हैा। श्रवणबेलगोला के भट्टारक जगदगुरु स्वस्तीश्री चारुकीर्ति भट्टारकजी के सान्निध्य में होने वाले इस समारोह में इस विशाल प्रतिमा का अभिषेक श्रद्धालुओं के जयकार के बीच, पवित्र जल, केसर, चंदन, गन्ने का रस, दूध और पुष्पों के कलशों से किया जाता है। बाहुबली की यह प्रतिमा 57 फुट ऊंची है जो कर्नाटक के विध्यगिरि के सामने स्थित चंद्रगिरि पर्वत पर स्थित है। 

राष्ट्रपति ने किया था महामस्ताभिषेक का उद्घाटन

इस वर्ष के महामस्तकाभिषेक का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 7 फरवरी को किया था। इसके अलावा 8 फरवरी से लेकर 16 फरवरी तक पंचकल्याण प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन गया और 17 फरवरी से लेकर 25 फरवरी तक भगवान गोमटेश्वर बाहुबली का भव्य रूप से महामस्तकाभिषेक किया जाएगा। जिसकी शरुआत हो चुकी है।  26 फरवरी को इस आयोजन का समापन किया जाएगा। समारोह में वैसे अभिषेक की सुविधा अगस्त तक श्रद्धालुओं को मिलती रहेगी। समारोह में देश की अनेक बड़ी राजनीतिक हस्तियां और विशिष्ट जन भी हिस्सा लेंगे।

कब हुआ निर्माण, जुड़ी है पौराणिक कथा

इसका निर्माण वर्ष 981 में हुआ था। उस समय कर्नाटक में गंगवंश का शासन था, गंग के सेनापति चामुंडराय ने इसका निर्माण कराया था। विंध्यगिरि के सामने है चंद्रगिरि पर्वत। ऐसा माना जाता है कि चंद्रगिरि का नाम मगध में मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के नाम पर पड़ा है। जैन धर्म के पहले र्तीथकर ऋषभदेव के दो पुत्र थे- भरत और बाहुबली। अपने भाई भरत को पराजित कर राजसत्ता का उपभोग बाहुबली कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और सारा राजपाट छोड़कर वे तपस्या करने लगे। 

तपस्या इतनी घोर थी कि उन के शरीर पर बेल पत्तियां उग आईं, सांपों ने वहां बिल बना लिए, लेकिन उनकी तपस्या जारी रही। कठोर तपस्या के बाद वे मोक्षगामी बने। जैन धर्म में भगवान बाहुबली को पहला मोक्षगामी माना जाता है। उनके द्वारा दिया गया ज्ञान हर काल के लिए उपयोगी है। जैन धर्म के अनुसार, भगवान बाहुबली ने मानव के आध्यात्मिक उत्थान और मानसिक शांति के लिए चार सूत्र बताए थे- अहिंसा से सुख, त्याग से शांति, मैत्री से प्रगति और ध्यान से सिद्धि मिलती है। 

श्रवणबेलगोला में बाहुबली की विशाल प्रतिमा के निर्माण और अभिषेक के बाद से हर 12 वर्ष पर यहां महामस्तकाभिषेक का आयोजन होता आ रहा है। महामस्तकाभिषेक में लगभग सभी काल के तत्कालीन राजाओं और महाराजाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और अपना सहयोग भी दिया। स्वतंत्रता के बाद से भी बड़े पैमाने पर यह आयोजन होता रहा है। जवाहरलाल नेहरू जब देश के प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने श्रवणबेलगोला का दौरा इंदिरा गांधी के साथ किया था।

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बाहुबली की 57 फीट की विशाल और ओजस्वी प्रतिमा को देखते हुए उन्होंने कहा था कि इसे देखने के लिए आपको मस्तक झुकाना नहीं पड़ता है, मस्तक खुद-ब-खुद झुक जाता है। श्रवणबेलगोला बेंगलुरू से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर है। मैसूर से यह 80 किलोमीटर की दूरी पर है। 

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