रमजान का पाक महीना जारी है। इस महीने में शब-ए-क़द्र (Shab-e-Qadar)की रात भी आती है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, शब-ए-क़द्र को लैलतुल कद्र (Laylat-al-Qadr) के नाम से भी जाना जाता है। यह वो रात है जब कुरान की पहली आयतें पैगंबर मोहम्मद के सामने आई थीं। ऐसा माना जाता है कि इस रात को खुदा अपने बंदों के तमाम गुनाह माफ कर देता है और उनकी दुआएं कबूल करता है।
पवित्र कुरान में शब-ए-क़द्र या लैलतुल कद्र की विशेष तारीख का उल्लेख नहीं है। लेकिन इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, शब-ए-क़द्र की रात नमाज पढ़ने, कुरआन पढ़ने और दुआ करने का फल लगभग 83 साल दुआ करने के बराबर मिलता है। कुरआन में एक पूरा अध्याय लैलतुल कद्र को समर्पित है।
शब-ए-क़द्र तारीख (Shab-e-Qadar date)
शब-ए-क़द्र की तारीख तय नहीं है क्योंकि यह रमज़ान के आखिरी 10 दिनों में, यानी 21 या 23 या 25 वें या 25 वें या 27 वें या 29 में से एक दिन यह हो सकता है। लेकिन भारत में, शब-ए-क़द्र 30 मई या 1 जून या 3 जून की रात को हो सकता है।
शब-ए-क़द्र का महत्व (Significance of Shab-e-Qadar)
लैलतुल कद्र उस रात को दर्शाता है जब पैगंबर मोहम्मद को कुरान की पहली आयतें बताई गई थीं। मुसलमानों का मानना है कि इस रात अल्लाह अपने बंदों की दुआएं कबूल करता है।
हजार महीने की रात से अफजल लैलत-अल-क़द्र
माना जाता है कि लैलतुल कद्र की यह रात हजार महीने की रात से भी अफजल है। 20 रमजान के बीत जाने के बाद रात-दिन मस्जिद में रहकर दुनियावी जीवन से इतर इबादत करने का नाम एतेकाफ है।
लैलतुल कद्र क्या है
रमजान महीनें की रातों में अल्लाह की एक खास रात है जो 'लैलतुल कद्र' कहलाती है और वह सबाव के एतबार से हजार महीनों से बेहतर है। रमजान मुबारक का आखिरी अशरा अपने अंदर बेशुमार बरकतें और फजीलतें रखता है और लैलतुल कद्र इसी अशरे में आती है।