Santoshi Mata Vrat Katha: करें हर शुक्रवार मां संतोषी का आराधना, होगी धन, विवाह, संतान, भौतिक सुखों की प्राप्ति

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 29, 2024 06:43 AM2024-03-29T06:43:59+5:302024-03-29T06:43:59+5:30

हिंदू परंपरा में सप्ताह का हर शुक्रवार मां लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है। भक्त हर शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की पूजा मां संतोषी के रूप में करते हैं।

Santoshi Mata Vrat Katha: Worship Mother Santoshi every Friday, you will get wealth, marriage, children and material happiness | Santoshi Mata Vrat Katha: करें हर शुक्रवार मां संतोषी का आराधना, होगी धन, विवाह, संतान, भौतिक सुखों की प्राप्ति

फाइल फोटो

Highlightsभक्त हर शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की पूजा मां संतोषी के रूप में करते हैंधन-संपत्ति और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी संतोषी को सौभाग्य की प्रदायनी माना जाता हैमान्यता है कि शुक्रवार को संतोषी मां के पूजन से भक्तों की सारी इच्छाएं और मनोकामना पूर्ण होती हैं

Santoshi Mata Vrat Katha: हिंदू परंपरा में सप्ताह का हर शुक्रवार मां लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है। भक्त हर शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की पूजा मां संतोषी के रूप में करते हैं।

धन-संपत्ति और ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री देवी संतोषी को सौभाग्य की प्रदायनी माना जाता है। मान्यता है कि शुक्रवार के दिन जो भक्त पूरे श्रद्धाभाव, आस्था और भक्ति के साथ माता संतोषी का पूजन करते हैं, मां उनकी इच्छाएं और मनोकामना पूर्ण करती हैं।

कैसे करें मां संतोषी का पूजन

शुक्रवार के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठें और स्नान आदि से निवृ्त होकर घर के ईशान कोण दिशा में एक एकान्त स्थान पर माता संतोषी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। सभी पूजन सामग्री किसी बड़े पात्र रखें, कलश में गंगा जल या शुद्ध जल भरकर रखें।

जल भरे कलश पर गुड़ और चने से भरा हुआ दूसरा पात्र रखें और परिजन, कुल-बांधवों तथा अन्य लोगों के साथ विधि-विधान से संतोषी माता की पूजन करें।

इसके पश्चात संतोषी माता की कथा सुनें और मां की भव्य आरती करके पूजा में एकत्र सभी को गुड़-चने का प्रसाद बांटें। अंत में बड़े पात्र में भरे जल को घर में जगह-जगह छिड़क दें तथा शेष जल को तुलसी के पौधे में डाल दें।

इसी प्रकार हर शुक्रवार का नियमित उपवास रखें। जब भी मां संतोषी माता के व्रत का पारायण करा हो तो पूजा करने के बाद श्रद्धानुसार बटुकों को भोजन कराएं अवं यथोचित दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें। उसेक उपरांत स्वयं भोजन ग्रहण करें।

मां संतोषी की व्रत कथा

एक बार की बात है, एक वृद्ध महिला थी। जिसका एक ही पुत्र था। वृद्ध महिला पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती थी, परंतु उसे कभी भी ठीक से खाना नहीं देती थी। यह सब लड़का देखता लेकिन मां से कुछ भी नहीं कहता था। बहू दिनभर काम में लगी रहती थी। वह रोजाना नियमित समय पर उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती और उसी में उसका सारा समय बीत जाता था।

एक दिन काफी सोच-विचारकर लड़के ने वृद्ध मां से कहा, "मां, मैं परदेस जा रहा हूं।" मां को बेटे की बात पसंद आई और उसने बेटे को परदेस जाने की आज्ञा दे दी। उसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- "मैं परदेस जा रहा हूं। तुम मुझे अपनी कोई निशानी दे दो।"

बहू पति के चरणों में गिरकर रोते हुए बोली- "मेरे पास आपको देने के लिए निशानी योग्य कुछ भी नहीं है।" रोते हुए महिला के हाथ पति के जूतों पर ते, इस कारण जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई।

पुत्र के जाने बाद वृद्ध सास के अत्याचार दिन पर दिन बढ़ते गए। एक दिन बहू दु:खी हो मंदिर गई। वहां उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियां पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है।

स्त्रियों ने बताया कि हर शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लो और सच्चे मन से मां का पूजन करो। दुखी महिला व्रत विधान सुनकर हर शुक्रवार को संयम से संतोषी मां का व्रत करने लगी।

माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया। कुछ दिनों बाद पति का भेजा धन भी आया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली, `"संतोषी मां की कृपा से मेरे पास पति का पत्र तथा रुपया आया है।" जिसे सुनकर अन्य सभी स्त्रियाँ भी श्रद्धा से संतोषी मां का व्रत करने लगीं।

बहू ने शुक्रवार को एक दिन व्रत में मां संतोषी से कहा, "हे मां! आप बहुत कृपालु हैं। आपकी कृपा से मेरे पति का पत्र और उनके द्वारा भेजा गया धन मेरे पास आया। मां मैं आपके व्रत का उद्यापन तभी करूंगी, जब मेरे पति घर वापस आ जाएंगे।"

उसके बाद शुक्रवार रात में संतोषी मां ने महिला के पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते?

पति ने मां संतोषी से कहा, " मां सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं है। रुपया भी अभी नहीं आया है।"

उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी लेकिन सेठ ने आज्ञा देने से इनकार कर दिया। मां संतोषी की कृपा से अगले दिन उस सेठ के पास कई व्यापारी आए और सोने-चांदी समेत कई अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्ज़दारों ने भी पुराना बकाया चुका दिया। प्रसन्न सेठ ने महिला के पति को घर जाने की इजाजत दे दी।

घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए। पत्नी ने पति से कहा, "मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है।" उसने व्रत उद्यापन के निमित्त सभी को न्योता दे दिया। पड़ोस की एक स्त्री उस महिला के सुख को देखकर जलने लगी। उसने अपने बच्चों को सिखाकर महिला के पास भेजा कि तुम भोजन के समय महिला से खटाई जरूर मांगना।

उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे ने खटाई की जिद की, महिला ने उसे पैसा देकर बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगी तो बहू पर माता ने कोप किया।

राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है। बहू ने कुथ समय के बाद देखा कि उसका पति घर आ गया।

पति ने महिला से कहा, "मैंने परदेस में जितना धन कमाया है, राजा ने उसका टैक्स राजा ने मांगा है।" अगले शुक्रवार को महिला और उसक पति ने मिलकर मां संतोषी का व्रत किया और विधि-विधान से व्रत का उद्यापन किया। जिससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं और नौ महीने के बाद उसके घर चांद सा सुंदर पुत्र पैदा हुआ। उसके बाद से सास, बहू तथा बेटा मिलकर हर शुक्रवार को संतोषी मां का पूजन और व्रत करने लगे।

संतोषी माता व्रत फल

संतोषी माता की अनुकम्पा से व्रत करने वाले स्त्री-पुरुषों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। परीक्षा में सफलता, न्यायालय में विजय, व्यवसाय में लाभ और घर में सुख-समृद्धि का पुण्यफल प्राप्त होता है एवं अविवाहित लड़कियों को सुयोग्य वर मिलता है। (संतोषी मां की व्रत कथा किंवदंतियों पर आधारित है, लोकमत समाचार इसकी पुष्टि नहीं करता है)

Web Title: Santoshi Mata Vrat Katha: Worship Mother Santoshi every Friday, you will get wealth, marriage, children and material happiness

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