Samudra Manthan: समुद्र मंथन में मिले थे ये 14 रत्न, 6वां वाला कर सकता है आपकी मनोकामना पूरी
By मेघना वर्मा | Published: November 22, 2019 11:14 AM2019-11-22T11:14:21+5:302019-11-22T11:14:21+5:30
समुद्र मंथन में अमृत के साथ ही 13 चीजें और प्राप्त हुई थी। जिनका हमारे शास्त्रों में बहुत महत्व बताया जाता है। समुद्र मंथन से निकली इन चीजों को आज भी लोग बेहद आध्यात्मिक तरीके से पूजते हैं।
हिन्दू शास्त्रों और पुराणों में समुद्र मंथन का जिक्र बेहद करीने से किया गया है। असुर और देवताओं के इस युद्ध की कई चर्चित कहानियां सुनने को मिलती हैं। यह कथा समुद्र से निकले अमृत के प्याले से जुड़ी हैं जिसे पीने के लिए देवताओं और असुरों में भीषण युद्ध हुआ था। जिसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी नाम की स्त्री का रूप धारण किया था और देवताओं को अमृतपान करवाया था।
मगर क्या आप जानते हैं कि समुद्र मंथन में अमृत के साथ ही 13 चीजें और प्राप्त हुई थी। जिनका हमारे शास्त्रों में बहुत महत्व बताया जाता है। समुद्र मंथन से निकली इन चीजों को आज भी लोग बेहद आध्यात्मिक तरीके से पूजते हैं। कुछ की पूजा खास तरीके से की जाती है। आइए आपको बताते हैं क्या है वो 14 चीजें जो समुद्र मंथन में प्राप्त हुई थीं।
1. हलाहल(विष)
समुद्र मंथन पर सबसे पहले जल से हलाहल या विष निकला था। जिसमें तीव्र ज्वाला थी। जब देवता इससे जलने लगे तो भगवान शिव ने इस हलाहल को ग्रहण कर लिया। जिससे उनका गला नीला पड़ गया और वो नीलकंठ कहलाएं।
2. कामधेनु गाय
विष के बाद समुद्र मंथन से कामधेनु गाय निकली थी। इसे ब्रह्मवादी ऋषियों ने ग्रहण किया। कामधेनु गाय की पूजा आज भी लोग पूरे विधि-विधान से पूजते हैं। कहते हैं कामधेनु गाय में दैवीय शक्ति होती हैं जिनके दर्शन भर से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
3. उच्चै- श्रवा घोड़ा
समुद्र मंथन के दौरान तीसरे नंबर पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला था। शास्त्रों की मानें तो इसे देवराज इंद्र को दे दिया गया था। उच्चैश्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे- जिसका यश ऊंचा हो, जिसके कान ऊंचे हों अथवा जो ऊंचा सुनता हो।
4. ऐरावत हाथी
समुद्र मंथन में चौथे नंबर पर ऐरावत हाथी निकला था। ऐरावत देवताओं के राजा इन्द्र के हाथी का नाम है। इसे भी देवराज इन्द्र को दे दिया गया था। ऐरावत को शुक्लवर्ण और चार दांतों वाला बताया जाता है।
5. कौस्तुभ मणि
समुद्र मंथन के दौरन पांचवे नंबर पर कौस्तुभ मणि निकला था। जिसे भगवान विष्णु ने धारण किया था। इसे चमकदार और चमत्कारिक मणि माना जाता है। कहते जहां ये मणि होती है वहां किसी भी तरह का संकट नहीं होता।
6. कल्पवृक्ष
समुद्र मंथन में सातंवे नंबर पर प्रकट हुआ था कल्पवृक्ष। कहते हैं ये एक ऐसा वृक्ष था जो लोगों की मनोकामना पूरी करता ता। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार देवताओं के द्वारा इसे स्वर्ग में स्थापित कर दिया गया था। इसे कल्पद्रूम और कल्पतरू नाम से भी जाना जाता है।
7. रंभा(अप्सरा)
समुद्र मंथन के समय सातवें नंबर पर संभा नामक अप्सरा प्रकट हुई थी। उसके सुंदर वस्त्र और आभूषण लोगों को खूब आकर्षित कर रहे थे। उसकी चाल लुभाने वाली थी। वह स्वयं ही देवताओं के पास चली गई। देवताओं ने रंभा को इन्द्र को सौंप दिया।
8. देवी लक्ष्मी
समुद्र मंथन में देवी लक्ष्मी भी स्वंय प्रकट हुई थी। क्षीरसमुद्र से जब देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थी। लक्ष्मी जी खिले हुए श्वेत कमल पर विराजमान थीं। उनके हाथों में कमल था। सभी देवता चाहते थे कि वो उन्हें प्राप्त करें। मगर लक्ष्मी जी खुद विष्णु भगवान के पास चली गईं।
9. वारूणी या मदिरा
समुद्र मंथन में इसके बाद वारूणी अथवा मदिरा प्रकट हुआ था। इसे भगवान विष्णु की अनुमति में दैत्यों को दे दिया गया। इसीलिए माना जाता है कि दैत्य हमेशा मदिरा में डूबे रहते हैं।
10. चंद्रमा
समुद्र मंथन के दौरान दसवें नवंबर पर चन्द्रमा स्वंय प्रकट हुए थे। जिन्हें भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया था।
11. पारिजत वृक्ष
समुद्र मंथन में पारिजात वृक्ष प्रकट हुआ था। कहते हैं इस वृक्ष को छूने मात्र से थकान मिट जाती थीं। ये वृक्ष देवताओं के हिस्से में चला गया था।
12. पांचजन्य शंख
समुद्र मंथन के दौरान पांचजन्य शंख भी प्राप्त हुआ था। जिसे विजय का प्रतीक माना जाता है। इसकी ध्वनि को बेहद शुभ माना जाता है। विष्णु पुराण की मानें तो माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। ऐसी मान्यता है कि इस शंख में लक्ष्मी जी का वास होता है।
13. भगवान धनवंतरि
समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में हाथ में अमृतपूर्ण स्वर्ण कलश लिये श्याम वर्ण, चतुर्भुज रूपी भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुएl अमृत-वितरण के पश्चात देवराज इन्द्र की प्रार्थना पर भगवान धन्वन्तरि ने देवों के वैद्य का पद स्वीकार कर लिया और अमरावती उनका निवास स्थान बन गया।
14. अमृत
समुद्र मंथन के अंत में प्रकट हुआ अमृत। अमृत को देखकर दानव आपस में लड़ने लगे। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर छल पूर्वक देवताओं को अमृत पान करवा दिया।