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मरते समय रावण ने श्रीराम के भाई लक्ष्मण को बताए थे उसके जीवन से जुड़े ये 3 राज

By गुलनीत कौर | Updated: October 17, 2018 15:16 IST

श्रीराम ने लक्ष्मण को रावण के पास जाकर हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर खड़े होने के लिए कहा।

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श्रीराम के वार से लंकापति रावण घायल होकर धरते पर गिर चुका था। रावण की राक्षसी सेना अपनी जान बचाकर भाग चुकी थी। चारों ओर सन्नाटा छाया था। रावण अपनी अंतिम साँसे ले रहा था। तभी श्रीराम ने अपने अनुज लक्ष्मण को बुलाया और उससे कहा, 'अनुज, जाओ रावण के पास जाओ। उसके सामने हाथ जोड़कर, सिर को झुकाकर खड़े हो जाओ और उससे सफल जीवन के अनमोल मंत्र ले लो'।

बड़े भाई की यह बात सुनकर लक्ष्मण अचंभित हो उठा। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि जिस क्रूर प्राणी ने उनकी सीता माता को बंधी बनाया, इतने समय तक अपने पास रखा, पति श्रीराम से दूर रखा, आखिर उसके सामने हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर खड़े क्यूं होना है।

व्याकुल होकर लक्ष्मण ने इस बात को जब अपने बड़े भाई के समक्ष रखा तो श्रीराम ने समझाया कि रावण ने जो भी किया, वह निःसंदेह अपराध ही है। लेकिन वह परम ज्ञानी है, महापंडित है। उसने अपने जीवन से जो सीखा है, मरते समय वह उसका ज्ञान तुम्हें अवश्य देगा। 

परंतु ऐसे परम ज्ञानी के समक्ष तुम हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर खड़े होना। और भूल से भी उसके सिर के पास नहीं, बल्कि उसके चरणों के पास खड़े होकर उसने बोलने का इंजतार करना। यह एक महात्मा को सम्मान देना का तरीका है जो तुम्हें अपनाना होगा।

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श्रीराम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण ने ठीक वैसा ही किया। वह रावण के पैरों के पास सिर झुकाकर खड़ा हो गया। उसे देख रावण ने तीन बातें (सफलता के तीन मंत्र) कहीं, जो जीवन में सफलता की कुंजी मानी जाती हैं:

पहला मंत्र: शुभ कार्य में देरी ना करें

लंकापति रावण ने लक्ष्मण से कहा कि मनुष्य को शुभ कार्य करने में देरी नहीं करनी चाहिए। लेकिन अशुभ कार्य को जितना टाल सके, उसे टालना चाहिए। रावण ने लक्ष्मण से कहा कि वह श्रीराम में बसे प्रभु को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी। और परिणाम आज मृत्यु के रूप में मिल रहा है।

दूसरा मंत्र: शत्रु को खुद से कमजोर ना समझें

वार्तालाप को आगे बढ़ाते हुए रावण ने लक्ष्मण से कहा कि भूल से भी हमें अपने शत्रु को कभी खुद से कमजोर नहीं समझना चाहिए। शत्रु भी हमसे शक्तिशाली हो सकता है। रावण ने कहा कि मैंने श्रीराम और उसकी वानर सेना को खुद के सामने तुच्छ समझा और यही में हार का कारण बना।

तीसरा मंत्र: अपना राज किसी को ना बताएं

रावण ने लक्ष्मण से कहा कि भूल से भी अपने जीवन का कोई ऐसा राज, जो यदि किसी को पटा चल जाए तो बड़ी मुसीबत आ सकती है, इसे किसी को ना बताएं। वह इंसान आपना कितना ही बड़ा विश्वासपात्र क्यों ना हो, लेकिन एक बार राज जाहिर हो गया, तो वह कभी राज नहीं रहेगा। रावण ने उदाहरण देते हुए कहा कि मेरी मृत्यु कैसे होगी इसका राज मेरे अलावा केवल मेरा अनुज विभीषण ही जानता था। मैंने स्वयं उसे यह राज बताया था। उसने यह राज श्रीराम को बताया और आखिरकार मैं तुम्हारे समक्ष मरण अवस्था में पड़ा हूं। 

टॅग्स :रामायणभगवान रामदशहरा (विजयादशमी)
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