राम नवमी 2019: जीवन में बनना है सफल तो अपनाएं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ये 5 गुण
By गुलनीत कौर | Published: April 13, 2019 11:09 AM2019-04-13T11:09:42+5:302019-04-13T11:09:42+5:30
श्रीराम चन्द्र का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था।यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।
भगवान विष्णु के 7वें मानव रूपी अवतार श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। जिसका तात्पर्य है कि वे जीवन में हमेशा ही मर्यादाओं से बंधे रहे हैं और इनके इस गुण ने उन्हें सफलता दिलाई है। हिन्दू धार्मिक शास्त्रों में श्रीराम के गुणों का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि यदि इन गुणों में से कुछ 2-3 गुण भी मनुष्य अपना ले तो उसे जीवन में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। आज 13 अप्रैल 2019, राम नवमी के अवसर पर हम आपको श्रीराम के 5 अहम गुणों के बारे में बताने जा रहे हैं। इन्हें विस्तार से समझें और खुद पर अमल करने की पूरी कोशिश करें।
1) सहनशीलता
श्रीहरि के सातवें अवतार श्रीराम में सहनशीलता का वास था। वे अपने जीवन के हर छोटे से बड़े फैसलों को पूर्ण सहजता एवं धैर्य से लेते थे। कभी जल्दबाजी नहीं की। जब माता कैकेयी ने उनसे राजपाट छोड़ 14 वर्षों के लिए वनवास जाने के लिए आग्रह किया तो उन्होंने पूरे धैर्य से माता की आज्ञा को सुना और सब कुछ त्यागते हुए महल से निकल गए।
2) दयालु
श्रीराम का हृदय बहुत बड़ा है। उन्हें दिल में हर किसी के प्रति दया भावना है। मित्र से दुश्मन तक को भी उन्होंने अपनी छत्रछाया में लिया। हर किसी की आगे बढ़कर सहायता की। मित्र सुग्रीव को उसका राज्य दिलाने से लेकर अपने शत्रु रावण के भाई विभीषण की भी मदद की। इसलिए कहते हैं कि श्रीराम की चौखट से कभी कोई खाली हाथ नहीं जाता है।
3) मित्रता
मित्रता क्या होती है, यह कोई श्रीराम से सीखे। श्रीराम ने अपने शत्रु के भाई विभीषण से मित्रता की और उसे आखिर तक निभाया भी। उन्होंने रावण के चंगुल से सीता माता को आजाद करने के बाद खुद अपने हाथों से विभीषण को राज्य के सिंहासन पर बैठाया। श्रीराम जिससे भी मित्रता करते थे, उसे दिल से निभाते थे।
4) प्रबंधक
जीवन में यदि सफलता चाहिए तो आपको एक बेहतर प्रबंधक बनना होगा। श्रीराम ने महल छोड़ने के बाद पूर्ण प्रबंधता से माता सीता और लक्षमण को वन में आश्रय दिया। सीता माता को लंका से वापस लाने के लिए भी सोच समझकर हर कदम रखा। अपने दूरदर्शिता और बेहतर प्रबंधक के गुण से ही उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त की।
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5) रिश्तों की समझ
रिश्ता पुत्र का हो या भाई का या फिर पति का। श्रीराम ने हर रिश्ते को गहराई से समझा और निभाया है। अयोध्या का राजपाट छोड़ वन में जाकर उन्होंने पुत्र का फर्ज निभाया। वन में पत्नी सीता की हर इच्छा का ख्याल रखा। युद्ध के दौरान भ्राता लक्ष्मण के घायल हो जाने पर उसे मौत के मुंह से बाहर निकालने का हर संभव प्रयास किया और इसमें सफल भी हुए।