Raksha Bandhan 2020: कब है रक्षाबंधन, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व राशियों पर क्या होगा असर

By गुणातीत ओझा | Published: July 30, 2020 03:14 PM2020-07-30T15:14:17+5:302020-07-30T15:34:21+5:30

इस वर्ष रक्षा बंधन का पर्व 3 अगस्त 2020 सोमवार को मनाया जाएगा। इस रक्षाबंधन पर्व पर राहु शुक्र के साथ मिथुन राशि में केतु, गुरु के साथ धनु राशि में वक्रि रहेगा।

Raksha Bandhan 2020: When is Rakshabandhan know the auspicious time what will be the effect on your zodiac signs worship method | Raksha Bandhan 2020: कब है रक्षाबंधन, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व राशियों पर क्या होगा असर

जानें कब है रक्षाबंधन व इस पर्व का शुभ मुहूर्त।

Highlightsइस वर्ष रक्षा बंधन का पर्व 3 अगस्त 2020 सोमवार को मनाया जाएगा।इस रक्षाबंधन पर्व पर राहु शुक्र के साथ मिथुन राशि में केतु, गुरु के साथ धनु राशि में वक्रि रहेगा।

Rakhi 2020: इस वर्ष रक्षा बंधन का पर्व 3 अगस्त 2020 सोमवार को मनाया जाएगा। इस रक्षाबंधन पर्व पर राहु शुक्र के साथ मिथुन राशि में केतु, गुरु के साथ धनु राशि में वक्रि रहेगा। शनि अपनी स्वयं की राशि मकर में वक्रि रहेगा। शनि एवं चंद्र की युति मकर राशि में विषयोग का निर्माण करेगी। गुरु की अपनी स्वयं की राशि धनु में वक्रि एवं शनि की अपनी स्वयं की राशि शनि में वक्रि रहते रक्षाबंधन का यह पर्व 558 वर्ष पूर्व 20 जुलाई 1462 को मनाया गया था। उस समय भी राहु मिथुन में एवं केतु धनु राशि में था। शनि एवं चंद्र की युति ने मकर राशि में विषयोग का निर्माण किया था।

रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त

 उज्जैन के पंडित मनीष शर्मा के अनुसार पूर्णीमा तिथि को रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाएगा। इसमें पराव्यापिनी तिथि ली जाती है। यदि वह दो दिन हो, या दोनों दिन न हो तो पूर्वा लेनी चाहिए। यदि इसमें भद्रा आ जाए तो उसका त्याग किया जाता है। भद्रा में श्रावणी एवं फाल्गुनी दोनों वर्जित है, क्योंकि श्रावणी में राजा का एवं फाल्गुनी में प्रजा का नाश होता है। इस बार भद्रा सुबह 9 बजकर 29 मिनट तक रहेगी उसके बाद ही रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाएगा। रक्षा बंधन के इस दिन सुबह 9-29 के पश्चात पूरे दिन मुहूर्त है।

रक्षा बंधन की पूजा विधि

इस व्रत को करने वालों को प्रात: स्नान के पश्चात देवता, ऋषी एवं पितरों का तर्पण करें दोपहर के बाद ऊनी, सूती, रेशमी पीला वस्त्र लेकर उसमें सरसों, केसर, चंदन, चावल, दूर्वा एवं स्वर्ण रखकर बांध ले। एक कलश की स्थापना कर उसपर रक्षासूत्र को रख विधिवत पूजन करें तथा उसके बाद विद्वान ब्राह्मण से रक्षासूत्र को दाहिने हाथ में बंधवा लें। यह रखा सूत्र एक वर्ष पर्यंत उसकी रक्षा करता है।

रक्षा बंधन की कथा

पूरातन समय कई वर्षों तक देवासुर संग्राम चलता रहा। जिसमें आखिरकार देवताओं को पराजित होना पड़ा। असुरों का आधिपत्य स्वर्ग पर हो गया। इन्द्र एवं अन्य देवता दुखी एवं चिन्तित हो देवगुरू बृहस्पति के पास गए। इन्द्र ने कहा न तो मैं यहां सुरक्षित हुं ना यहां से जा सकता हूं। ऐसी दशा में मेरा युद्ध करना भी अनिवार्य है जबकी हमारी लगातार हार हो रही है। यह बातें इन्द्राणी ने भी सुनी तब उसने कहा कल श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णीमा है मै विधिविधान से रक्षा सूत्र तैय्यार करूंगी, उसे आप ब्राह्मणों से बंधवा लेना इससे आप की अवश्य विजय होगी। दूसरे दिन इन्द्र से विधिविधान से उस रक्षा सूत्र को धारण किया जिसके प्रभाव से उसकी विजय हुई। तब से यह पर्व मनाया जाने लगा। इस दिन बहनें भाईयों को रक्षासूत्र बांधती है जिसे ही राखी कहते है।

श्रावणी उपाकर्म

श्रावणी विशेषकर ब्राह्मणों या पण्डितों का पर्व है वेदपरायण के आरंभ को उपाकर्म कहते है। इस दिन यज्ञोपवित धारण करना पर्व का विशेष काम है। ब्राह्मण शिष्य यह कर्म अपने गुरूओं के साथ करते है। स्वाध्याय करते है। पढऩा पढ़ाना, यज्ञ करना एवं करवाना, दान लेना एवं देना यह ब्राह्मण का कर्तव्य है एवं इसकी शुद्धि के लिए हर वर्ष वह हेमाद्रिसंक ल्प एवं दशविध स्नान करते हुए यज्ञोपवितपूजन तथा नवीन यज्ञोपवित धारण करते है।

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