Pradosh Vrat Ke Labh: कल है प्रदोष व्रत, उपवास रखने के होते हैं ये फायदे
By मेघना वर्मा | Published: November 23, 2019 03:27 PM2019-11-23T15:27:44+5:302019-11-23T15:27:44+5:30
एकादशी में जिस प्रकार भगवान विष्णु की पूजा का विशेष विधान है, उसी प्रकार प्रदोष में भगवान शिव की अराधना की जाती है।
हिंदू मान्यताओं में प्रदोष व्रत की काफी मान्यता है। भगवान शिव को समर्पित इस व्रत में लोग पूरे मन से भोले की उपासना करते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार एकादशी की तहर हर मास में दो प्रदोष व्रत भी आते हैं। इस बार नवंबर महीने में प्रदोष का ये 24 नवंबर को पड़ रहा है। यह व्रत हर मास के कृष्ण पक्ष और फिर शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में पड़ता है।
एकादशी में जिस प्रकार भगवान विष्णु की पूजा का विशेष विधान है, उसी प्रकार प्रदोष में भगवान शिव की अराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के लिए समर्पित इस व्रत को करने से मानव जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उस पर आने वाला संकट भी टल जाता है।
मान्यताओं के अनुसार हर मास के पक्षों में जिस दिन भी प्रदोष व्रत पड़ता है, उसकी महिमा दिन के हिसाब से अलग-अलग होती है। सभी का महत्व और लाभ भी अलग-अलग होता है। वैसे तो हर दिन का प्रदोष शुभ है लेकिन कुछ विशेष दिन बेहद शुभ और लाभदायी माने जाते हैं।
प्रदोष व्रत रखने से होते कई लाभ
1. माना जाता है कि रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
2. वहीं सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
3. मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
4. बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपासक की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
5. गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है।
6. शुक्रवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है।
7. संतान प्राप्ति की कामना हो तो शनिवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए।
प्रदोष व्रत पूजा-विधि
1. प्रदोष के दिन दिन सुबह सूर्य उदय से पहले उठना चाहिए।
2. नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान शिव के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
3. पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं।
4. पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है।
5. प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।
6. इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।
7. पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए।