Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत की कथा क्या है और क्यों भगवान शिव के इस व्रत को कहते हैं प्रदोष, कैसे पड़ा ये नाम, जानिए सबकुछ

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 26, 2019 08:32 AM2019-09-26T08:32:52+5:302019-09-26T08:32:52+5:30

Pradosh Vrat: एकादशी की तरह हर महीने में दो प्रदोष व्रत भी पड़ते हैं। हर मास के दोनों पक्ष में एक-एक बार प्रदोष पड़ता है। दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत की महिमा और इसका महत्व भी अलग-अलग होता है।

Pradosh Vrat Katha in hindi, pradosh vrat significance and why Lord Shiva worshiped on Pradosh | Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत की कथा क्या है और क्यों भगवान शिव के इस व्रत को कहते हैं प्रदोष, कैसे पड़ा ये नाम, जानिए सबकुछ

प्रदोष व्रत की कथा और महिमा, जानिए (फाइल फोटो)

Highlightsप्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा का है विशेष महत्वइस दिन प्रदोष काल में होती है भगवान शंकर की पूजा, इसके पीछे है एक पौराणिक कथा

Pradosh Vrat: आज प्रदोष व्रत है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार एकादशी की तहर हर मास में दो प्रदोष व्रत भी आते हैं। यह व्रत हर मास के कृष्ण पक्ष और फिर शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में पड़ता है। ऐसे में आज अश्विन मास के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत है। एकादशी में जिस प्रकार भगवान विष्णु की पूजा का विशेष विधान है, उसी प्रकार प्रदोष में भगवान शिव की अराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के लिए समर्पित इस व्रत को करने से मानव जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उस पर आने वाला संकट भी टल जाता है। 

Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत के तरह-तरह के नाम

मान्यताओं के अनुसार हर मास के पक्षों में जिस दिन भी प्रदोष व्रत पड़ता है, उसकी महिमा दिन के हिसाब से अलग-अलग होती है। सभी का महत्व और लाभ भी अलग-अलग होता है। वैसे तो हर दिन का प्रदोष शुभ है लेकिन कुछ विशेष दिन बेहद शुभ और लाभदायी माने जाते हैं।

इसमें सोमवार को आने वाले प्रदोष, मंगलवार को आने वाले भौम प्रदोष और शनिवार को पड़ने वाले शनि प्रदोष का महत्व अधिक है। ऐसे ही रविवार के प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष और बुधवार के प्रदोष व्रत को सौम्यवारा प्रदोष कहते हैं। गुरुवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष कहा जाता है। शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष को भ्रुगुवारा प्रदोष कहते हैं।

Pradosh Vrat Katha: प्रदोष व्रत की कथा

स्कंद पुराण के एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी रोज अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती। ऐसे ही एक दिन वह जब भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे एक अत्यंत सुन्दर बालक दिखा। वह बालक उदास था और अकेला बैठा हुआ था। वह विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। हालांकि, ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है।

एक युद्ध में शत्रुओं ने धर्मगुप्त के पिता को मार दिया था और उसका राज्य हड़प लिया था। इसके बाद उसकी माता की भी मृत्यु हो गई। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और अच्छे से उसका पालन-पोषण किया। 

कुछ समय बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देव मंदिर गई। यहीं उनकी भेंट ऋषि शांडिल्य से हुई। ऋषि ने बताया कि जो बालक मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है। यह सुनकर महिला उदास हो गई। इसे देख ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। 

दोनों बालक कुछ दिनों बाद जब बड़े हुए तो वन में घूमने निकले गये। वहां उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त 'अंशुमती' नाम की गंधर्व कन्या पर मोहित हो गया। 

कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को पता चला कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा और आशीर्वाद से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से करा दिया। राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर फिर से अपना शासन स्थापित किया।

मान्यता है कि ऐसा ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंद पुराण के अनुसार जो कोई प्रदोष व्रत करता है और इसकी कथा सुनता या पढ़ता है उसकी तमाम समस्याएं दूर होती हैं।

Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत क्यों कहते हैं

इस व्रत को प्रदोष क्यों कहते हैं? इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है। एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र देव एक बार क्षय रोग से पीड़ित हो गये थे। इसके चलते उन्हें कई कष्टों का सामना करना पड़ रहा था। भगवान शिव ने चंद्र देव के उस 'दोष' का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी (तेरस) के दिन ही एक तरह से नया जीवन प्रदान किया। इसलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा। प्रदोष का एक अर्थ गोधूलि बेला भी होता है। इसलिए प्रदोष व्रत की पूजा शाम को की जाती है।

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