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भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ! क्या आप जानते हैं ये सबसे दिलचस्प कहानी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 14, 2019 10:22 IST

पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव इस ब्रह्मांड में हमेशा से मौजूद हैं और रहेंगे। इस ब्रह्मांड में जब कुछ भी नहीं था तब भी शिव थे और जब भविष्य में कुछ भी नहीं बचेगा, तब भी शिव होंगे।

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ठळक मुद्देभगवान शिव की उत्पत्ति से जुड़ी कई कहानियां और मान्यताएं हैं भगवान शिव के बारे में ये भी कहा जाता है कि वे हमेशा से इस ब्रह्मांड में मौजूद रहे हैंभगवान शिव को आदि-देव' भी कहा जाता है, इसका मतलब ये हुआ कि सबसे पुराने भगवान!

सनातन परंपरा में भगवान शिव का महत्व बेहद विशेष है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जहां भगवान ब्रह्मा सृजनकर्ता और भगवान विष्णु पालनहार हैं तो वहीं, शिव विनाशक हैं। ये तीनों देवता मिलकर एक-तरह से प्रकृति के नियमों को दर्शाते हैं। इसके मायने हुए कि जिसका भी सृजन हुआ उसे एक दिन मिट जाना है। हिंदू धर्म के इन तीनों देवताओं का जन्म अपने आम में एक रहस्य है और इसके पीछे कई कहानियां मिल जाती है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति भगवान शिव से हुई थी। हालांकि, इस मत के पीछे कोई ठोस सबूत नहीं है। इस से आगे एक बड़ी उलझन ये भी है कि आखिर भगवान शिव का जन्म फिर कैसे हुआ। कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव 'स्वयंभू' हैं- जिसका मतलब ये हुआ वह किसी मानवी शरीर से नहीं जन्में और अपने आप उनकी उत्पत्ति हुई।

हमेशा से इस ब्रह्मांड में मौजूद हैं शिव

पुराणों के अनुसार शिव इस ब्रह्मांड में हमेशा से मौजूद हैं और रहेंगे। इस ब्रह्मांड में जब कुछ भी नहीं था तब भी शिव थे और जब भविष्य में कुछ भी नहीं बचेगा, तब भी शिव होंगे। इसलिए उन्हें 'आदि-देव' भी कहा जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि सबसे पुराने भगवान!

भगवान शिव के जन्म से जुड़ी एक कहानी

एक कथा के अनुसार भगवान शिव दरअसल भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच हुए एक विवाद के बाद आये। ये दोनों देवता इस बात पर बहस कर रहे थे कि सर्वोपरि कौन है। इस विवाद के बीच अचानक एक चमकदार खंभा या स्तम्भ जैसी चीज प्रकट हो गई। इस खंभे का न तो शीर्ष भाग दिखाई दे रहा था और न ही इसकी जड़ ही नजर आ रही थी। तभी एक आवाज भगवान ब्रह्मा और विष्णु को सुनाई दी जिसने कहा कि दोनों में से जो कोई भी इस खंभे का आदि और अंतिम हिस्सा खोज लेगा, वही बड़ा माना जाएगा।

इसके बाद फिर क्या था, भगवान ब्रह्मा ने तत्काल एक पक्षी का रूप लिया और खंभे के ऊपर वाले हिस्से की ओर उड़ने लगे, ताकि वे इसका शीर्ष भाग खोज सकें। दूसरी ओर भगवान विष्णु ने वराह का रूप लिया और धरती में खुदाई करते हुए इस स्तंभ के नीचे के हिस्से की खोज के लिए निकल पड़े। काफी देर तक यह सिलसिला चलता रहा लेकिन वे सफल नहीं हो सके। आखिरकार दोनों को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी।

इसके बाद इन दोनों देवताओं को अहसास हुआ कि इनसे भी शक्तिशाली कोई और बड़ी शक्ति मौजूद है जो ब्रह्मांड पर राज करती है, और वह भगवान शिव हैं। स्तंभ का ओर-छोर नहीं मिलना दरअसल भगवान शिव के आदि और अंत नहीं होने को दर्शाता है।

भगवान शिव का जन्म, एक रहस्य!

भगवान शिव का जन्म अपने आप में वाकई एक रहस्य है। ऐसे ही भगवान शिव के विभिन्न अवतार भी इतने हैरान करने वाले हैं, जिसका कोई मुकाबला नहीं है। हिंदू मान्यताओं में शिव लिंग की पूजा का भी विशेष महत्व है। यह पूरे देश में ज्योतिर्लिंगों के रूप में फैला है। मान्यताओं के अनुसार शिव लिंग भगवान शिव के ब्रह्मांड के सृजन, भरण-पोषण और विनाश में भूमिका को दर्शाता है। 

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