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Pitru Paksha 2020: श्राद्ध में गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा को ही क्यों खिलाया जाता है आहार का अंश?

By गुणातीत ओझा | Updated: September 4, 2020 15:03 IST

पितृपक्ष शुरू हो चुका है और ऐसा माना जाता है कि इस दौरान हमारे पितृ धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

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ठळक मुद्देपितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।श्राद्ध न किया जाए तो पितर गृहस्थ को दारुण शाप देकर पितृलोक लौट जाते है।

पितृपक्ष शुरू हो चुका है और ऐसा माना जाता है कि इस दौरान हमारे पितृ धरती पर आकर हमें आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। हमारे पितृ पशु पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आते हैं और गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी के माध्यम से पितृ आहार ग्रहण करते हैं।

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि श्राद्ध के समय पितरों के लिए भी आहार का एक अंश निकाला जाता है, तभी श्राद्ध कर्म पूरा होता है। श्राद्ध करते समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए। 

कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है, चींटी अग्नि तत्व का, कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्व का और देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं। इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है।

कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी

 पितरों को खुश रहने के लिए श्राद्ध के दिनों में विशेष कार्य करना चाहिए वही इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।

1. श्राद्ध करने के लिए ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे शास्त्रों में बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। 

2. पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाये कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।

3. कई ऐसे पितर भी होते है जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतान हीन होते हैं। ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई भतीजे, भांजे या अन्य चाचा ताउ के परिवार के पुरूष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते है तो पितर की आत्मा को मोक्ष मिलता है। 

4. ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए। जिसमें उड़द की दाल, बड़े, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है। आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती हैं।

5. श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरो पर पड़ने लग जाए यानी दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है।

पितरों के लिए श्रद्धा एवं कृतज्ञता प्रकट करने वाले को कोई निमित्त बनाना पड़ता है। यह निमित्त है श्राद्ध। पितरों के लिए कृतज्ञता के इन भावों को स्थिर रखना हमारी संस्कृति की महानता को प्रकट करता है। देवस्मृति के अनुसार श्राद्ध करने की इच्छा करने वाला व्यक्ति परम सौभाग्य पाता है।

एकादशी का श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ दान

श्राद्ध न किया जाए तो पितर गृहस्थ को दारुण शाप देकर पितृलोक लौट जाते है। एकादशी का श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ दान है। वह समस्त वेदों का ज्ञान प्राप्त कराता है। उसके सम्पूर्ण पापकर्मों का विनाश हो जाता है तथा उसे निरंतर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

वहीं, द्वादशी तिथि के श्राद्ध से राष्ट्र का कल्याण तथा प्रचुर अन्न की प्राप्ति कही गई है। त्रयोदशी के श्राद्ध से संतति, बुद्धि, धारणाशक्ति, स्वतंत्रता, उत्तम पुष्टि, दीर्घायु तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। 

ऐसे करें श्राद्ध

-श्राद्ध करने के लिए किसी ब्राह्मण को आमंत्रित करें, भोज कराएं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा भी दें।

-श्राद्ध के दिन अपनी सामर्थ्‍य या इच्छानुसार खाना बनाएं।

-आप जिस व्‍यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं जो उचित रहेगा।

-मान्‍यता है कि श्राद्ध के दिन स्‍मरण करने से पितर घर आते हैं और अपनी पसंद का भोजन कर तृप्‍त हो जाते हैं।

-खाने में लहसुन-प्‍याज का इस्‍तेमाल न करें।

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