नईम क़ुरैशी का ब्लॉग: रमज़ान में इस बार सब्र की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद

By नईम क़ुरैशी | Published: April 14, 2021 10:37 AM2021-04-14T10:37:21+5:302021-04-14T10:40:59+5:30

Ramadan 2021: रमज़ान का पवित्र महीना शुरू हो गया है। कोरोना महामारी काल में इस रमज़ान के दौरान संयम और धैर्य की दोहरी परीक्षा हो रही है। इस जिम्मेदारी को निभाना है।

Naeem Qureshi blog: Happy Ramadan 2021, Ramjan significance and history | नईम क़ुरैशी का ब्लॉग: रमज़ान में इस बार सब्र की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद

रमज़ान का पवित्र महीना और इसके मायने (फाइल फोटो)

Highlightsदुनिया भर में कोरोना वायरस की दूसरी-तीसरी लहर के बीच रमजान का मौकाइतिहास में पहले ऐसा कोई मौका नही आया जब रमज़ान में मस्जिदों के दरवाज़े बंद हुएपिछले 1440 साल में ये रमज़ान सबसे अधिक कठिन होकर संयम और धैर्य की परीक्षा लेने वाला

रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा मुसलमानों का अल्लाह की तरफ़ से इम्तिहान है। भूखे रहकर ग़रीबों, भूखों का दुख दर्द समझना, बुरी आदतों से दूर होकर संयम के साथ बुरे विचारों को त्याग सच्चे मन से अल्लाह से तौबा और अपने को पवित्र करना ही रमज़ान में रोज़े का असली मक़सद है।

मगर इस बार के रमज़ान बीते 1440 रमज़ानों से ज़्यादा कठिन होकर संयम और धैर्य की दोहरी परीक्षा के साथ शुरू हुए हैं। पहली बार ऐसे रमज़ान से सामना हो रहा है, जिसका उल्लेख किताबों में पढ़ा और धर्म गुरुओं से सुना था कि बेहद कड़े इम्तिहान का नाम रमज़ान है। 

भारत सहित विश्व के अनेक देश कोविड-19 कोरोना वायरस की दूसरी-तीसरी लहर के कहर से दहशत में हैं। इस्लाम धर्म के केंद्र पवित्र क़ाबा मस्जिद ए हरम के साथ मदीना मुनव्वरा में मस्जिद ए नबवी के दरवाज़े भी अवाम के लिए बंद कर दिए गए हैं। भारतीय मुसलमानों से इस महामारी के दौरान रमज़ान में संयम की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद हैं।

इस्लाम धर्म के इतिहास में ऐसी कोई दलील सामने नही आई है, जब रमज़ान के पवित्र और इबादत के महीने में मस्जिदों के दरवाज़े बंद कर दिए गए हों, अज़ान की सदायें सन्नाटों में खो गई हों और इबादतगाहों की रौनक़ वीरानों में तब्दील हो गई हों। 

Ramadan 2021: रमज़ान का क्या है संदेश

पहला ईमान, दूसरा नमाज, तीसरा रोज़ा, चौथा हज और पांचवां ज़कात। इस्लाम में बताए गए इन पांच कर्तव्य इस्लाम को मानने वाले इंसान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा पैदा कर देते हैं। 

रमज़ान में रोज़े को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से परहेज़ करना। यह ख़ुद पर नियंत्रण एवं संयम रखने का महीना होता है? मुस्लिम समुदाय का रोज़े रखने का मुख्य उद्देश्य है ग़रीबों के दुख दर्द को समझना। 

इस दौरान संयम का तात्पर्य है कि आंख, नाक, कान, ज़ुबान को नियंत्रण में रखा जाना। क्योंकि रोजे के दौरान बुरा न सुनना, बुरा न देखना, बुरा न बोलना और ना ही बुरा एहसास किया जाता है। रमज़ान के रोज़े मुस्लिम समुदाय को उनकी धार्मिक श्रद्धा के साथ बुरी आदतों को छोड़ने और आत्म संयम रखना सिखाते हैं। 

Ramadan: रमज़ान की शुरुआत कब होती है?

रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने में आता है। इस महीने की आख़िरी की दस रातों में क़ुरान नाज़िल हुआ और पैगम्बर ए इस्लाम मोहम्मद सल्ललाहो अलैहि व सल्लम को पवित्र क़िताब कुरआन शरीफ़ का ज्ञान हुआ। 

क़ुरआन शरीफ़ की सूरह बक़रा पारा नंबर 2 पर आयत नंबर 185 के मुताबिक़ सऊदी अरब के मदीना में 2 हिजरी में शाबान के महीने में अल्लाह का हुक़्म हुआ कि अब से रोज़ा मुसलमानों पर फ़र्ज़ होगा। मुसलमान इबादत के साथ पूरा दिन भूखा रहकर अपने संयम का परिचय देंगे और ज़रूरतमंदों की इमदाद करेंगे। 

इस बार सन 2021 हिजरी 1442 में 1441 वें रमज़ान के रोज़े मुसलमानों को रमज़ान की कठिन इबादत का मक़सद समझा रहे हैं। रमज़ान माह की ख़ास बात ये भी है कि इसमें सभी मसलक के मुसलमान कड़ी इबादत के साथ रोज़ा रखते हैं। 

बच्चों, बुजुर्गों, मुसाफ़िरों, गर्भवती महिलाओं और बीमारी की हालत में रोज़े से छूट है। जो लोग रोज़ा नही रखते उन्हें रोज़ेदार के सामने खाने से मनाही है। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मोहम्मद (सअवस) ने अपने जीवन काल में 9 वर्ष पवित्र रमज़ान के रोज़े रख संयमित इबादत का संदेश दिया।

Ramadan 2021: विशेष नमाज़ तरावीह 

पैग़म्बर मुहम्मद सल्ललाहो अलैहि व सल्लम और उनके बाद ख़लीफ़ा हज़रत अबु बक़र सिद्दीक़ रज़ि. के समय तक तरावीह की नमाज़ सामूहिक रूप में नहीं पढ़ी जाती थी। दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर बिन अल ख़त्ताब रज़ि. ने तरावीह की नमाज़ को मस्जिदों में सामुहिक पढ़ाना शुरू कराया। 

उसके बाद से ये पहला मौक़ा है, जब विश्व में कोरोना महामारी की वजह से मस्जिदों में सामूहिक नमाज़ और तरावीह पर पाबंदी है। इस विशेष नमाज़ में पवित्र क़ुरआन शरीफ़ हाफ़िज़ ए क़ुरआन बुलंद आवाज़ में पढ़ते हैं। 

दूसरी नमाज़ों से अलग 20 रक़ाअत नमाज़ पढ़ी जाती है, जिसमें क़ुरआन शरीफ़ के 30 पारों को सुनने के लिए मस्जिदों में बड़ी संख्या में मुसलमान एकत्रित होते हैं। पिछले वर्ष कोरोना की वजह से मस्जिद सुनी थी, जबकि इस बरस भी इंसानों के अदृश्य शत्रु कोरोना वायरस की वजह से इबादत-गाहों में सन्नाटों का वास है।

Web Title: Naeem Qureshi blog: Happy Ramadan 2021, Ramjan significance and history

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