वाल्मीकि जयंती 2019: कल है रामायण रचयिता महर्षि वाल्मीकि की जयंती, पढ़िए कैसे डकैती छोड़ राम की भक्ति में हुए लीन
By मेघना वर्मा | Published: October 12, 2019 05:04 PM2019-10-12T17:04:23+5:302019-10-12T17:04:23+5:30
Maharishi Valmiki Jayanti: माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने ही राम को अपने कुटिया में शरण दी थी। उनकी जंयती पर आइए जानते हैं वाल्मीकि के जीवन से जुड़े कुछ रोचक मान्यताएं।
हिन्दी धर्मग्रंथों में रामायण का बेहद महत्व होता है। रामायण की कहानियों को सुनकर सभी बड़े भी होते हैं। इस प्राचीन ग्रंथ की रचना महर्षि वाल्मिकी ने की थी। हिन्दू धर्म में संतों में सबसे अव्वल दर्जा महर्षि वाल्मीकि को ही दिया गया है। बताया जाता है कि संस्कृत भाषा के सबसे पहले कवि वाल्मीकि ही थे जिन्होंने रामायण की रचना की थी।
रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी की याद में हर साल उनकी जयंती मनायी जाती है। हिंदी तिथि के अनुसार हर साल अश्विन मास की पूर्णिमा को ये जंयती मनाई जाती है। इस साल वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा। वाल्मीकि ने हिन्दी की सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ रामायण की रचना की थी जिसमें कुल 24 हजार छंद है।
रामायण ग्रंथ ने हमें जीने का सलीका और तरीका सिखाया है। रामायण से हम ना सिर्फ भगवान राम के आदर्श जान सके बल्कि रावण वध के बाद इस बात का भी पता चलता है कि बुराई चाहे जितनी भी ताकतवर हो अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती। हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण जगह रखने वाले रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की निजी जिंदगी की बात करें तो उसमें भी बहुत से उतार-चढ़ाव रहे हैं।
माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि ने ही राम को अपने कुटिया में शरण दी थी। उनकी जंयती पर आइए जानते हैं वाल्मीकि के जीवन से जुड़े कुछ रोचक मान्यताएं।
डकैत थे महर्षि वाल्मीकि
हिन्दू मान्यताओं में ये बताया जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का पहला नाम रत्नाकर था। वह डकैत हुआ करते थे। लोगों को मारना उन्हें नुकसान पहुंचाना आदि रत्नाकर का पेशा था। एक दिन उनकी मुलाकात नारद मुनी से हुई जिसके रत्नाकर, वाल्मीकि बन गए और उनकी जिंदगी बदल गई।
नारद मुनि ने उन्हें जीने का सलीका बताया। नारद मुनि ने उन्हें भगवान श्रीराम के बारे में बताया और पूजा-पाठ की महत्ता से भी रूबरू करवाया। जिसके बाद महर्षि वाल्मीकि की जिंदगी बदल गई। गलत रास्ता छोड़कर वाल्मिकि श्रीराम के चरणों में आ गए। उनकी ही प्रार्थना करने लगे।
माता सीता को दी शरण
एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि जब भगवान राम ने मां सीता को त्याग दिया था तो महर्षि वाल्मीकि ने ही उन्हें शरण दी थी। अपनी कुटिया में ना सिर्फ उन्होंने सीता को स-सम्मान रखा बल्कि उनके बेटे लव-कुश को भी शरण दी। साथ ही लव-कुश को शिक्षा भी दी। आज भी भगवान लव-कुश के गुरूओं को रूप में महर्षि वाल्मीकि को ही जाना जाता है।
आदि कवि बन गए महर्षि वाल्मीकि
हिन्दू धर्म में वाल्मीकि जयंती को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। पुराणों में उनके लिखे गए ग्रंथ रामायण पूजनीय है। महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि के नाम से भी जानते हैं। भारत में ज्यादातर उत्तरी हिस्से में इनकी जयंती को मनाया जाता है। इन शहरों में चड़ीगढ़, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश आदि शामिल हैं।