महाभारत के युद्ध में दुर्योधन ने नहीं की होती ये तीन गलती तो बदल सकता था नतीजा, हर बार कौरवों को मिला था मौका
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 6, 2020 12:09 PM2020-01-06T12:09:43+5:302020-01-06T12:09:43+5:30
महाभारत के युद्ध की कहानी न केवल बेहद रोचक है बल्कि काफी कुछ सिखाती भी है। यह युद्ध 18 दिनों तक कौरव और पांडवों के बीच चला जिसमें कुरु वंश का नाश हो गया।
महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध कहानी को सभी जानते हैं। ये ऐसा युद्ध था जिसमें 18 दिन में कई महारथियों के साथ-साथ लाखों सैनिक भी मारे गये थे। इस पूरी कथा में पांडव बेशक धर्म के प्रतीक के तौर पर देखे गये और भगवान श्रीकृष्ण भी हर मौके पर उनके साथ थे। हालांकि, तीन ऐसे मौके भी आए जब कौरव हारी हुई बाजी भी जीत सकते थे। दुर्योधन ने लेकिन हर मौके पर गलती की और आखिरकार कुरु वंश का नाश हो गया।
दुर्योधन ने जब मांगी नारायणी सेना
दुर्योधन के पास युद्ध के नतीजे को अपने पक्ष में करने का सबसे आसान और बड़ा मौका लड़ाई शुरू होने से ठीक पहले आया। कथा के अनुसार लड़ाई शुरू होने से पहले कौरव और पांडवों दुनिया भर के राजाओं और उनके सैनिकों को अपने-अपने पक्ष में जुटाने की कोशिश में लगे थे। इसी क्रम में मामा शकुनि की सलाह पर दुर्योधन भगवान श्रीकृष्ण के पास गया। द्वापर नगरी उस समय के सबसे शक्तिशाली राज्यों में से एक थी।
दुर्योधन जब श्रीकृष्ण के पास गये तो वे सो रहे थे। दुर्योधन उन्हें सोता देख उनके सिर के पास एक आसन पर बैठ गया और उनके जगने का इंतजार करने लगा। इतने में पांडु पुत्र अर्जुन भी वहीं आ पहुंचे। उन्होंने श्रीकृष्ण को जब सोता हुआ देखा तो वहीं उनके पैर के पास खड़े रहकर उनके नींद से जगने की प्रतीक्षा करने लगे। श्रीकृष्ण जब उठे तो उनकी नजर सबसे पहले अर्जुन पर गई और उनसे हालचाल पूछा। इतने में अहंकारी दुर्योधन भी बोल उठा कि वह अर्जुन से पहले आया है।
श्रीकृष्ण बात समझ गये तो उन्होंने शरारत पूर्ण लहजे में कहा कि उन्होंने तो पहले अर्जुन को ही देखा है इसलिए कुछ भी मांगने का अधिकार अर्जुन का ही है। साथ ही श्रीकृष्ण ने ये भी साफ कर दिया कि वे युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे लेकिन उनकी सेना लड़ेगी।
श्रीकृष्ण ने इसके बाद अर्जुन से पूछा कि उन्हें निहत्थे नारायण चाहिए या नारायणी सेना? अर्जुन ने श्रीकृष्ण को चुना। यह सुन दुर्योधन खुश हो गया और उसने नारायणी सेना को चुन लिया। हालांकि, जब दुर्योधन हस्तिनापुर लौटा तो मामा शकुनि ने उसे उसकी गलती का अहसास कराया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
माता गांधारी के पास पत्तों से बना लंगोट पहनकर पहुंचा दुर्योधन
महाभारत की ये कहानी भी काफी प्रचलित है और ये दुर्योधन की दूसरी बड़ी गलती भी है। दुर्योधन के जब सभी साथी युद्ध में मारे गये तो वह माता गांधारी के पास पहुंचा। माता गांधारी ने ममतावश उसे बचाने के लिए एक युक्ति बताई। गांधारी ने उसे रात्रि में स्नान करने के बाद बिना किसी कपड़े के सामने आने को कहा। दुर्योधन को ये बात अजीब लगी लेकिन वह माता के आदेश का पालन करने के लिए तैयार हो गया।
श्रीकृष्ण ने जब दुर्योधन को नदी से स्नान कर नंगे ही माता गांधारी के भवन की ओर जाते देखा तो वे पूरी बात समझ गये। उन्होंने दुर्योधन को लज्जित करते हुए कहा कि इस उम्र में अगल वह बिना कपड़ों के अपनी माता के पास ऐसे जाता है तो ये भला कैसे संस्कार हैं। दुर्योधन ने कृष्ण की बात सुन अपने कमर के नीते पत्तों से बना लंगोट डाल लिया। गांधारी इस बात को नहीं जानती थी।
बहरहाल, उन्होंने अपने आंखों की पट्टी कुछ समय के लिए उतार दी। उनकी आंखों के तेज से दुर्योधन का पूरा शरीर लोहे का बन गया जबकि जांघ का हिस्सा वैसा ही रह गया। गांधारी इसे देख नाराज भी हुईं लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता था। आखिरकार भीम ने दुर्योधन के जांघों पर ही गदा से हमला कर उसे असहाय किया जिसके बाद उसकी मृत्यु हुई।
दुर्योधन ने मरने से पहले ये भी कहा कि अगर वह पहले दिन युद्ध में आगे उतर जाता तो वास्तविकता पता चलती और उसके भाई, मित्र और सैनिकों की मौत नहीं होती। ये दुर्योधन की तीसरी गलती थी। हालांकि, कृष्ण ने दुर्योधन को बताया कि उसकी हार का मुख्य कारण उसका अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का चीरहरण करवाना था। यह सुनकर दुर्योधन को अपनी असली गलती का अहसास हुआ।