दुर्योधन अगर नहीं करता ये काम तो महाभारत की लड़ाई में मारे जाते सभी पांडव!
By विनीत कुमार | Published: March 2, 2020 02:18 PM2020-03-02T14:18:44+5:302020-03-03T08:27:55+5:30
महाभारत: दुर्योधन पांडवों से जलता था और हर हाल में उनकी मौत चाहता था। वह कई बार उनके खिलाफ साजिश बना चुका था लेकिन जब असल मौका आया तो उसने पांडवों को मारने से उलट अपना एक वचन निभाया।
महाभारत में दुर्योधन के पांडव से ईर्ष्या की कहानी सभी जानते हैं। दुर्योधन इस कदर अर्जुन, भीम समेत पांचों भाईयों से नफरत करता था कि उसने विवाद के हल के लिए एक कदम भी पीछे करने से मना कर दिया। श्रीकृष्ण ने युद्ध टालने के लिए पांडवों के लिए केवल पांच गांव के प्रस्ताव रखे थे। इसके बावजूद दुर्योधन नहीं माना और युद्ध टालने की सभी कोशिशें बेकार हुईं।
इसके बावजूद इस पूरी कहानी में एक ऐसा प्रसंग भी आता है जो दुर्योधन के एक अलग व्यक्तित्व की तस्वीर पेश करता है। दरअसल, महाभारत की ही लड़ाई में एक ऐसा मौका आता है जब पांडव मारे जाते लेकिन दुर्योधन की वजह से उनकी जान बच गई। यह प्रसंग दिलचस्प और हैरान करने वाला है क्योंकि दुर्योधन की जिद ही महाभारत के युद्ध का सबसे अहम कारण बना।
महाभारत: दुर्योधन ने कैसे बचाई पांडवों की जान!
कौरवों ने अपना पहला सेनापति युद्ध शुरू होने के साथ भीष्म पितामह को बनाया था। पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। इसलिए पांडव चाहकर भी अपने बल पर उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। वहीं, पितामह के बाणों के सामने पांडवों की सेना का लगातार नुकसान हो रहा था।
युद्ध के जब कुछ दिन गुजर गये तो दुर्योधन नाराजगी जताने पितामह के पास गया और कहने लगा कि आप अपनी पूरी शक्ति से यह युद्ध नहीं लड़ रहे हैं। वह जानता था पितामह पांडवों की सेना को तो मार रहे हैं लेकिन पांडव को हाथ लगाने से बच रहे हैं।
बहरहाल, दुर्योधन की बात भीष्म पितामह क्रोधित हो गए और तुरंत पांच तीर निकाले और कुछ मंत्र पढ़े। इसके बाद उन्होंने दुर्योधन से कहा कि कल इन्ही तीरों से वे पांडवों का वध कर देंगे। दुर्योधन यह सुनकर खुश तो हुआ लेकिन उसे पितामह पर भरोसा नहीं हुआ। वह ये कहते हुए तीर अपने साथ वापस लेकर चला गया कि अगले दिन वह युद्ध के समय इन्हे पितामह को लौटा देगा।
महाभारत: श्रीकृष्ण की सूझबूझ और बच गई अर्जुन समेत सभी पांडव की जान
पांडवों को मारने के लिए विशेष तीरों को तैयार किये जाने की यह बात पांडव शिविर में पहुंची। भगवान श्रीकृष्ण को जब तीरों के बारे में पता चला तो उन्होंने अर्जुन को बुलाया और कहा कि वे दुर्योधन के पास जाएं और पांचो तीर उससे मांग कर ले आएं। अर्जुन को यह सुनकर अचरज हुआ और उन्होंने कृष्ण से पूछा कि भला दुर्योधन इसे वापस क्यों करेगा।
श्रीकृष्ण ने इस पर अर्जुन द्वारा एक बार गंधर्वों से दुर्योधन की जान बचाने की बात याद दिलाई। यह उस समय की बात थी जब पांडव वनवास काट रहे थे। दुर्योधन ने तब बुरी मानसिकता से एक गंधर्व कुमारी के हरण की कोशिश की थी। इस पर गंधर्वों ने दुर्योधन को ही बंदी बना लिया और उसे मारना चाहते थे। उसी वन में उस समय पांडव भी भ्रमण कर रहे थे। उन्हें इस बात की जब जानकारी मिली तो युधिष्ठर के आदेश पर अर्जुन ने जाकर दुर्योधन को बचाने का काम किया था।
श्रीकृष्ण ने इसी बात की याद दिलाते हुए अर्जुन से कहा, 'तुमने एक बार गंधर्व से दुर्योधन की जान बचायी थी। इसके बदले उसने कहा था कि कोई एक चीज जान बचाने के लिए मांग लो। समय आ गया है कि अभी तुम उन पांच तीरों को उससे मांग लो।'
अर्जुन को झिझक तो हुई लेकिन श्रीकृष्ण की बात सुनकर वे समझ गये कि यही अभी एक रास्ता है। अर्जुन आखिरकार दुर्योधन के पास गये और उसके वादे को याद दिलाते हुए पांचों तीर मांगे। दुर्योधन पांडवों से जलता था लेकिन साथ ही वह क्षत्रिय भी था। इसलिए उसके लिए अपने वचन से पीछे हटना अब मुश्किल था। दुर्योधन के पास कोई चारा अब नहीं बचा था। आखिरकार उसने अपना वचन निभाया और पांचों तीर अर्जुन को दे दिये। इस तरह पांडवों की जान बच गई।