जानिए क्यों भगवान गणेश ने श्रीकृष्ण पर लगाए थे चोरी के आरोप, जुड़ी है ये पौराणिक कथा

By धीरज पाल | Published: January 28, 2018 10:03 AM2018-01-28T10:03:58+5:302018-01-28T10:24:40+5:30

एक बार पार्वती पुत्र गणेश जी को चंद्रलोक से भोज का आमंत्रण आया। गणेश जी को मोदक अत्यंत प्रिय हैं।

Know why Lord Ganesha Curse to Krishna mythology story | जानिए क्यों भगवान गणेश ने श्रीकृष्ण पर लगाए थे चोरी के आरोप, जुड़ी है ये पौराणिक कथा

जानिए क्यों भगवान गणेश ने श्रीकृष्ण पर लगाए थे चोरी के आरोप, जुड़ी है ये पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में तकरीबन 33 करोड़ देवी-देवता हैं। हर देवी-देवताओं के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं में श्राप, वरदान व आशीर्वाद की कई कथाएं प्रचलित है। श्राप व वरदान की एक ऐसी कथा भगवान गणेश व श्रीकृष्ण के बीच में प्रचलित है जिसकी वजह से भगवान श्रीकृष्ण पर चोरी का आरोप लगा था। जिस प्रकार से त्रेता युग में माता सीता को आरोप की वजह से कई वर्षों तक वन में काटे थे। 

भगवान विष्णू के अवतार हैं श्रीकृष्ण

श्रीकृष्ण भगवान विष्णू के अवतार माने जाते है। लेकिन एक वाकया ने श्रीकृष्ण को चोरी के आरोप को सहन करना पड़ा था। विघ्नहर्ता गणेश जी द्वारा दिए गए एक श्राप की वजह से श्रीकृष्ण जी पर चोरी का आरोप लगा था।

ये है पौराणक कथा 

एक बार चंद्रलोक से गणेश जी को भोज का आमंत्रण आया। गणेश जी को मोदक प्रिय हैं। गणेश जी ने वहां पेटभर कर मोदक खाए और वापस लौटते समय बहुत से मोदक साथ भी ले आए। मोदक बहुत ज्यादा थे, जो उनसे संभाले नहीं गए। उनके हाथ से मोदक गिर गए, जिसे देखकर चंद्र देव अपनी हंसी नहीं रोक पाए। चंद्रदेव को हंसता देख गणेश जी क्रोधित हो उठे। क्रोध के आवेग में आकर उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि जो भी उन्हें देखेगा उस पर चोरी का इल्जाम लग जाएगा

चंद्रदेव घबरा गए, उन्होंने गणेश जी के चरण पकड़ लिए और यह श्राप वापस लेने का आग्रह किया। चंद्रदेव घबरा गए, उन्होंने गणेश जी के चरण पकड़ लिए और यह श्राप वापस लेने का आग्रह किया। दिया गया श्राप वापस ले पाना तो स्वयं गणेश जी के हाथ में नहीं था।

एक मणि की चोरी का लगा था आरोप

द्वापर युग में एक सत्राजित नाम का राजा था जिसने सूर्यदेव को प्रसन्न कर स्यमंतक मणि प्राप्त की थी। वह मणि चमत्कारी थी। इसके अलावा वह मणि रोज आठ भरी सोना भी देती थी। एक दिन सत्राजित के मुकुट पर श्रीकृष्ण ने वह मणि देख ली। श्रीकृष्ण ने कहा कि इस मणि के असली हकदार राजा उग्रसेन हैं। राजा सत्राजित ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया और वापस महल लौटकर उस मणि को महल के मंदिर में स्थापित कर दिया।

गणेश चतुर्थी के दिन श्रीकृष्ण अपने महल में थे, उनकी नजर चंद्र पर पड़ गई। यह देख रुक्मिणी डर गईं और सोचने लगीं कि कहीं उनके पति पर कोई आंच ना आ जाए। उसी रात राजा सत्राजित के भाई स्यमंतक मणि को धारण किए शिकार पर चले गए, जहां एक शेर ने उन्हें मार गिराया। स्यमंतक मणि भी उस शेर के पेट में चली गई।
उस शेर का शिकार जामवंत ने किया और वह मणि हासिल कर ली। जामवंत वह मणि लेकर अपनी गुफा में चले गए। जामवंत उस मणि को समझ नहीं पाए और उन्होंने वह मणि अपने पुत्र को खेलने के लिए दे दी।

सत्राजित को अपने भाई की मौत की असल वजह नहीं मालूम थी, उन्होंने श्रीकृष्ण पर अपने भाई की हत्या और मणि की चोरी का आरोप लगा दिया। श्रीकृष्ण इस बात से बहुत आहत थे, वे अपने घोड़े पर बैठकर वन की ओर चले गए जहां उन्होंने सत्राजित के भाई प्रसेनजित के शव को देखा। उन्हें शव के आसपास मणि नहीं मिली।

कृष्ण गुफा में दाखिल हुए और उन्होंने देखा कि जामवंत का पुत्र उस बहुमूल्य मणि से खेल रहा है। इस मणि को पाने के लिए जामवंत और कृष्ण के बीच 28 दिनों तक युद्ध चला जिसका कोई परिणाम नहीं निकल पा रहा था। युद्ध के दौरान जामवंत ने यह महसूस कर लिया कि कृष्ण ही राम हैं। श्रीराम ने जामवंत से पुन: जन्म लेने का वायदा किया था। कृष्ण को देखकर जामवंत को प्रभु राम के दर्शन हुए। उन्होंने वह मणि कृष्ण को लौटा दी और जामवंत ने अपनी पुत्री जामवंती का हाथ श्रीकृष्ण को सौंप दिया। श्रीकृष्ण वापस महल लौट आए और उन्होंने वह मणि राजा सत्राजित को लौटा दी। सत्राजित को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। पश्चाताप करने के लिए सत्राजित ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह भगवान कृष्ण से संपन्न किया।

Web Title: Know why Lord Ganesha Curse to Krishna mythology story

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