Kamada Ekadashi 2020: भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युद्धिष्ठिर को सुनाई थी कामदा एकादशी की व्रत कथा, आप भी पढ़ें और जाने सम्पूर्ण पूजा विधि

By मेघना वर्मा | Published: April 3, 2020 09:41 AM2020-04-03T09:41:24+5:302020-04-03T09:41:24+5:30

कामदा एकादशी के दिन भी सृष्टि के पालनहार कहे जाने वाले भगवान विष्णु एवं उनके अवतारों की पूजा करने का महत्व है।

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Kamada Ekadashi 2020: भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युद्धिष्ठिर को सुनाई थी कामदा एकादशी की व्रत कथा, आप भी पढ़ें और जाने सम्पूर्ण पूजा विधि

Highlightsइस दिन व्रत-पूजन करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। कामदा एकादशी के दिन लोग दिन भर उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। 

हिन्दू नववर्ष के अनुसार इस साल की पहली एकादशी यानी कामदा एकादशी 4 अप्रैल को पड़ रही है। सनातन धर्म में एकादशी को महत्वपूर्ण बताया गया है। वैसे तो हर माह दो एकादशी आती है। पूरे साल में 24 एकादशी होती है। मगर अधिक मास लगने पर यह एकादशी बढ़कर 26 हो जाती है। 

कामदा एकादशी के दिन भी सृष्टि के पालनहार कहे जाने वाले भगवान विष्णु एवं उनके अवतारों की पूजा करने का महत्व है। मान्यता है कि कामदा एकादशी को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत-पूजन करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। कामदा एकादशी के दिन लोग दिन भर उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। 

आइए आपको बताते हैं क्या है कामदा एकादशी का शुभ मुहूर्त और व्रत कथा-

कामदा एकादशी - 4 अप्रैल

एकादशी तिथि प्रारंभ - 12:58 AM (04 अप्रैल)
एकादशी तिथि समाप्त - 10:30 PM (04 अप्रैल)
एकादशी पारण समय - 5 अप्रैल (06:06 AM - 08:37 AM)

कामदा एकादशी की व्रत कथा

एक बार धर्मराज युद्धिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के सामने चैत्र शुक्ल एकादशी का महत्व, व्रत कथा व पूजा विधि जानने की इच्छा की। भगवान कृष्ण ने कहा हे कुंते बहुत समय पहले वशिष्ठ मुनि ने यह कथा राजा दिलीप को सुनाई थी वही मैं तुम्हें सुनाने जा रहा हूं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार रत्नपुर नामक एक नगर था। जहां के राजा का नाम पुण्डरीक था। जहां पर कई ऐश्वर्य सुख-सुविधाएं थीं। उस नगर में अनेक अप्सराएं , किन्नर और गंधर्व वास करते थे। उस नगर में एक जगह पर ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में बहुत ही ज्यादा प्रेम था। जरा सी भी दूरी उन्हें बर्दाश्त नहीं होती थी।

एक बार राजा पुण्डरीक की सभा में गंर्धवो सहित ललित भी गा रहा था। ललित को गाते- गाते अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव को जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। इसके बाद राजा ने ललित से कहा कि तूने मेरे सामने गाते हुए स्त्री का स्मरण कर रहा है। अब तू मनुष्यों का मांस खाने वाला राक्षस बनकर अपने पापों की सजा भुगतेगा।

जिसके बाद ललित राक्षस बन गया। उसकी पत्नी ललिता भी अपने पति को ढूंढती हुई वन में चली गई। वन में जाकर उसे श्रृंगी ऋषि मिले। ललिता ने ऋषि श्रृंगी को पूरी बात बताई। जिसके बाद ऋषि बोले पुत्री अब कामदा एकादशी आने वाली है। तुम उस एकादशी का व्रत रखो। ऋषि की बात सुनकर ललिता ने कामदा एकादशी का व्रत रखा और भगवान से प्रार्थना की कि मेरे इस व्रत का फल मेरे पति को मिल जाए।

भगवान विष्णु के आशीर्वाद से ललिता का पति ललित राक्षस योनी से मुक्त हो गया और पुराने रूप में आ गया। जिसके बाद वह दोनों विमान में बैठकर अपने लोक को चले गए और सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

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