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कब से शुरू हुआ 'महाकुंभ' का मेला, जानें इतिहास एवं धार्मिक उत्सव से जुड़ी 10 बड़ी बातें

By गुलनीत कौर | Updated: January 3, 2019 16:50 IST

इतिहास में पहली बार एक महा उत्सव के रूप में कुंभ मेले की शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। उन्होंने ही चार मुख्य तीर्थों को कुंभ मेले के चार पीठ के रूप में स्थापित कराया था

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हजारों वर्षो पहले पवित्र अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया। इस मंथन के दौरान अनगिनत मूल्यवान वस्तुओं की उत्पत्ति हुई। इनके बाद अंत में भगवान धन्वंतरी प्रकट हुए जिनके हाथ में पवित्र अमृत का कुंभ था। इसे देखते ही देवता और राक्षस दोनों उसे पाने के लिए आगे बढ़े। 

यह पवित्र अमृत कुंभ कभी देवताओं तो कभी राक्षसों के हाथ लग जाता। इसे पाने के लिए दोनों गुटों में 12 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में कई बार पवित्र अमृत कुंभ हाथों से उछला और उसका अमृत छलक कर बाहर गिरा। कहा जाता है कि इस युद्ध में पृथ्वी के चार स्थानों पर भी अमृत की कुछ बूंदें आ गिरी थीं। आज के समय में उन्हीं चार स्थानों पर पवित्र महानादियाँ हैं और हर 12 वर्ष में यहां 'महाकुंभ' नाम के धार्मिक उत्सव का आयोजन किया जाता है।

कुंभ से जुड़ी 10 दिलचस्प बातें:

1) महाकुंभ का आयोजना अदेश्भर में केवल चार शहरों में किया जाता है। ये शहर हैं - प्रक्याग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक

2) महाकुंभ हर 12 वर्षों में इन चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और राक्षसों का युद्ध 12 दिनों तक चला था। स्वर्ग का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के समान होता है। इसलिए महाकुंभ 12 वर्षों में चार बार किया जाता है

3) इतिहास में पहली बार एक महा उत्सव के रूप में कुंभ मेले की शुरुआत आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। उन्होंने ही चार मुख्य तीर्थों को कुंभ मेले के चार पीठ के रूप में स्थापित कराया था

4) आदि शंकराचार्य द्वारा गठित किए गए इस मेले आयोजन के लिए साधुओं की भादीगारी होना भी सुनिश्चित कराया गया। जिसके बाद से कुंभ मेलों में शंकराचार्य मठ से संबद्ध साधु-संत अपने शिष्यों सहित शामिल होते हैं

5) कुंभ मेले के दौरान देश दुनिया से दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। सभी का एक ही मकसद होता है पवित्र स्नान में डुबकी लगाना। मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान पवित्र स्नान करने से पिछले और इस जन्म के सभी पाप धुल जाते हैं

6) चार अलग अलग स्थानों पर होने वाले कुंभ मेले के पीछे ज्योतिषीय योगों का योगदान होता है। कोई मेला कहाँ, कब और कितने समय के लिए होना है, उस दसमी के ज्योतिषीय योग को देखने के बाद ही तय किया जाता है

7) प्रयागराज कुंभ - जब सूर्य मकर में और गुरु वृषभ राशि में हो, उस समय उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में कुंभ का आयोजन किया जाता है। इस दौरान यदि माघ का महीना हो, अमावस्या हो और साथ ही ग्रहों का यह सा न्योग हो तो इसे इलाहबाद के कुंभ का सबसे दुर्लभ संयोग माना जाता है

8) हरिद्वार कुंभ - गुरु के कुंभ राशि और सूर्य के मेष राशि में एक साथ होने पर हरिद्वार में कुंभ के महापर्व का आयोजन किया जाता है

यह भी पढ़ें: ये हैं 2019 के शुभ मुहूर्त, जानें वाहन खरीदने से लेकर गृह प्रवेश और घूमने तक का शुभ समय

9) नासिक कुंभ - एक ही समय पर सूर्य और गुरु, दो विशाल ग्रह जब सिंह राशि में हों तो महाराष्ट्र के नासिक में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। इस दौरान कई दुर्लभ ज्योतिषीय संयोग बनते हैं

10) उज्जैन कुंभ - सिंह राशि के गुरु में और सूर्य के मेष राशि में होने पर उज्जैन में कुंभ का मेला लगता है। इन सभी पर्वों दौरान भारतीय रेल द्वारा श्रद्धालुओं के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई जाती हैं

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