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रामायण: ब्रह्मा जी ने दिया था मेघनाद को सदैव विजयी होने का वरदान, अपनी ही इस एक गलती से गई उसकी जान-पढ़िए ये रोचक कथा

By मेघना वर्मा | Updated: April 17, 2020 08:33 IST

राम और लक्ष्मण से युद्ध करने से पहले मेघनाद ने अपनी कुल देवी को मनाने के लिए निकुंभिला मंदिर में यज्ञ शुरु किया।

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ठळक मुद्दे लक्ष्मण जी को पता चला कि मेघनाद को हराने का सिर्फ एक ही रास्ता है।रामायण की कथा के अनुसार मेघनाद के पास कई सिद्धियां होने का वर्णन मिलता है।

करोना वायरस के चलते पूरे देश में इस समय लॉकडाउन का माहौल है। वहीं सरकार ने लोगों के मनोरंजन के लिए रामानंद सागर की रामायण का प्रसारण एक बार फिर शुरू कर दिया है जिसे लेकर लोग काफी चर्चा भी करते रहे हैं। रामायण में इस समय राम और रावण के सैनिकों के बीच युद्ध चल रहा है। वहीं लक्ष्मण जी ने मेघनाद का वध कर दिया है।

रामायण की कथा के अनुसार मेघनाद के पास कई सिद्धियां होने का वर्णन मिलता है। बताया जाता है कि वो हर युद्ध से पहले यज्ञ करके अपनी कुल देवी को प्रसन्न करता था। सिर्फ यही नहीं ब्रह्मा का उसे वरदान भी था कि वो हर युद्ध में विजयी भी होगा। इसके बाद भी लक्ष्मण जी ने उसका वध किया, कैसे और क्या है ये रोचक कथा आइए हम बताते हैं आपको।

गुरु शुक्राचार्य से मिली शिक्षा

मेघनाद की शिक्षा दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के निर्देश में हुई थी। गुरु की ही सहायता से उसने सप्तयज्ञ किये। वहीं इस यज्ञ से खुश होकर भगवान शिव ने उसे दिव्य अस्त्र और मायावी शक्तियां दीं। मेघनाद इन्हीं दिव्य शक्तियों का प्रयोग हर युद्ध में किया करता था। राम से युद्ध में भी उसने यही मायावी शक्तियों का इस्तेमाल किया।

इंद्र को छुड़ाने के लिए ब्रह्मा जी ने दिया था वरदान

मेघनाद ने अपनी माया से इंद्र को बंधक बना लिया था। इंद्र के गायब होने के बाद हाहाकार मच गया। सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे गुहार लगाई। उसके बाद ब्रह्मा जी मेघनाद के पास इंद्र को छुड़ाने गए। बताया जाता है कि ब्रह्मा जी ने ही मेघनाद को इंद्रजीत का नाम दिया और विशेष वरदान दिया जो उसकी मौत का कारण बना। ब्रह्मा जी ने मेघनाद को वरदान स्वरूप दिया कि वह हमेशा अपराजेय रहेगा, लेकिन अगर यत्र में बाधा हुई तो मेघनाद मारा जाएगा। 

राम-लक्ष्मण से युद्ध की तैयारी

राम और लक्ष्मण से युद्ध करने से पहले मेघनाद अपनी कुल देवी को मनाने के लिए निकुंभिला मंदिर में यज्ञ शुरु किया। युद्ध में जाने से पहले मेघनाद ने राक्षसी हवन भी किया। रीति के मुताबिक एक काले बकरे को अग्नि में प्रवाहित किया। इससे प्रसन्न होकर अग्नि ने खुद उसको जीत का वरदान दिया। युद्ध में उसने नागपाश से लक्ष्मण जी पर हमला किया। जिससे वो मूर्छित हो गए। इस घटना के बाद युद्ध कुछ देर के लिए बंद हो गया। जहां हनुमान, लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी लाने गए तो वहीं मेघनाद ने एक बार फिर से यज्ञ पूरा करने में लग गया। 

एक बार फिर जब लक्ष्मण जी सही हुए तो युद्ध प्रारंभ हो गया। लक्ष्मण जी को पता चला कि मेघनाद को हराने का सिर्फ एक ही रास्ता है उसका यज्ञ ना पूरा होने देना। मेघनाद युद्ध के पहले एक विशालकाय वृक्ष के पास भूतों की बलि भी देता था जिससे वह युद्ध के दौरान अदृश्य हो सके। लक्ष्मण जी उसी वृक्ष के पास उसका इंतजार करते रहे। 

ऐसे हुआ मेघनाद का वध

जब मेघनाद वहां पहुंचा तो लक्ष्मण ने यज्ञ से निकले घोड़े और सारथी पर प्रहार कर मार डाला। गुस्से में मेघनाद अपने महल वापस लौटा और फिर वहां से दूसरे रथ पर रणभूमि में पहुंचा। एक बार फिर दोनों का युद्ध हुआ मेघनाद मारा गया।

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