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Holika Dahan: होलिका की दहकती आग पर चलेगा आज ये शख्स, प्रह्लाद के गांव में जानिए कैसे किया जाता है होलिका दहन

By विनीत कुमार | Updated: March 9, 2020 11:26 IST

Holika Dahan: मथुरा के फालैन गांव में होलिका दहन के मौके पर जलती होलिका के बीच से निकलने की परंपरा निभाई जाती है। इस बार भी इसका पालन किया जाएगा।

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ठळक मुद्देमथुरा के फालैन गांव में होलिका दहन के मौके पर जलती होलिका पर चलने की परंपराएक पुजारी हर साल निभाता है ये परंपरा, 500 साल से जारी है ये परंपरा

रंगों के त्योहार होली से ठीक पहले होलिका दहन की परंपरा पूरे देश में निभाई जाती है। इस मौके पर देश भर के चौक-चौराहों और गली-मोहल्लों में होलिका रखी जाती है और पूरे विधि-विधान से पूजा के बाद उसे जलाया जाता है।

पूरे देश की तरह भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से करीब 40 किलोमीटर दूर फालेन गांव में भी होलिका जलाने की परंपरा है। हालांकि, ये इनकी अलग और विचित्र है जिसके बारे में जानकर आप भी चौंक जाएंगे। दरअसल, यहां होलिका दहन के मौके पर दहकती आग के बीच से गुजरने की परंपरा है। दावा है कि इस गांव में ये परंपरा पिछले 5 सदियों से चली आ रही है।

Holika Dahan: फालैन गांव की परंपरा 

मथुरा के फालैन गांव में होलिका दहन के मौके पर जलती होलिका के बीच से निकलने की परंपरा निभाई जाती है। इस बार भी इसका पालन किया जाएगा। मोनू पंडा ने इसे निभाने का संकल्प लिया है। वह नौ मार्च की रात होलिका दहन के अवसर पर अपने आकार से दोगुनी-तिगुनी ऊंची लपटों और धधकते अंगारों के बीच होली की अग्नि में से नंगे बदन निकलेगा। 

यह पहला मौका है कि जब इस कार्य के लिए समाज के लोगों ने भरी पंचायत में तीन अन्य प्रस्तावकों में से उसे चुना है। वैसे उसके पिता सुशील पण्डा विगत वर्षों में आठ बार यह चमत्कार करके दिखा चुके हैं। बता दें कि पिछले साल यह चमत्कार करके दिखाने वाले फालैन गांव के ही मूल निवासी एवं पंडा समाज के एक सदस्य बाबूलाल पण्डा (45) ने इस बार यह जिम्मेदारी उठाने का मौका किसी और सदस्य को देने का आग्रह किया था। 

Holika Dahan: परंपरा निभाने वाला अन्न का करता है त्याग

होलिका में गुजरने से पहले पंडा इसी गांव में मौजूद एक कुंड में स्नान करता है। इस कुंड को प्रह्लाद कुंड कहा गया है। यहां भक्त प्रह्लाद का एक प्राचीन मंदिर भी है।

स्थानीय लोगों के अनुसार आग से चल कर जाने की ये परंपरा करीब 500 साल पुरानी है। जिस पुजारी को इस परंपरा को निभाना होता है, वो होलाष्टक लगते ही अन्न का त्याग कर देता है। होलिका दहन के दिन इस गांव में मेला भी लगता है।

ऐसी मान्यता है कि इसी गांव में होलिका अपने भतीजे भक्त प्रह्लाद को जलाने के लिए गोद में लेकर अग्नि में बैठी थी। वैसे बिहार के पूर्णिया के सिकलीगढ़ के बारे में ऐसा दावा किया जाता रहा है कि ये हिरण्यकश्यप की राजधानी थी और यहीं प्रह्लाद को जलाने का प्रयास किया गया था।

(पीटीआई इनपुट)

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