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Holashtak 2020: होलाष्टक कब से लगेगा? जानिए किस तारीख तक कर सकते हैं विवाह और दूसरे शुभ कार्य

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 20, 2020 17:02 IST

Holashtak 2020: पंचांग और हिंदी कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। इस बार होलाष्‍टक 3 मार्च, 2020 से लग रहा है।

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ठळक मुद्दे Holashtak 2020: होलाष्टक होली के 8 दिन पहले लग जाता हैहोलाष्टक में शुभ कार्य करने की होती है मनाही, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होगा होलाष्टक

Holashtak 2020:होली से पहले अगर आप शुभ कार्य आदि की योजना बना रहे हैं तो यह महीना बहुत महत्वपूर्ण है। इस महीने में इन शुभ कार्यों को जरूर निपटा लें। दरअसल, मार्च के पहले ही हफ्ते में होलाष्टक की भी शुरुआत हो रही है। होली से पहले ये आठ दिनों का समय अशुभ माना गया है। इसलिए इस अवधि में शुभ कार्य करने की मनाही होती है।  रंगों का त्योहार होली मौज मस्ती का प्रतीक है। इस दिन से हिंदी कैलेंडर के पहले माह चैत्र की शुरुआत होती है। यही नहीं, होली हिंदुओं के लिए दिवाली के बाद दूसरा सबसे बड़ा त्योहार भी है।

होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। पौराणिक कथाओं में होली का जुड़ाव भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद और उनकी भक्ति से नाराज असुर हिरण्यकश्यप की कहानी से है। इन सबके बीच होलाष्टक का भी अपना महत्व है।

Holashtak 2020: होलाष्टक क्या है और कब से शुरू हो रहा है

पंचांग और हिंदी कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है। इस बार होलाष्‍टक 3 मार्च, 2020 से लग रहा है। इस लिहाज से 3 मार्च से 9 मार्च तक होलाष्‍टक रहेगा।

इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाएगा। इसलिए होलाष्टक शुरू होने से पहले तक मंगल कार्य निपटा लें। बता दें कि होलाष्टक के शुरू होने के साथ ही होलिका दहन के लिए लकड़ियां और दूसरी चीजों को एकत्रित करने का काम भी आरंभ होता है।

Holashtak 2020: होलाष्टक की कथा क्या है

होलाष्टक से जुड़ी दो अहम कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार प्रह्लाद की भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने होली से पहले के आठ दिनों में उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट और यातनाएं दीं। इसलिए इसे अशुभ माना गया है।

वहीं, एक और कथा के अनुसार जब कामदेव ने प्रेम बाण चलाकर भगवान शिव की तपस्या को भंग किया तो वे क्रोधित हो गए। इसके बाद शिव ने क्रोध में अपना तीसरा नेत्र खोल दिया जिससे कामदेव भस्म हो गए। कामदेव के भस्म होते ही पूरी सृष्टि में शोक फैल गया।

इसके बाद अपने पति को जीवित करने के लिए कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव से प्रार्थना की। आखिरकार रति की प्रार्थना से इससे भगवान शिव प्रसन्न हो हुए और कामदेव को पुर्नजीवित कर दिया। इसके बाद पूरी सृष्टि में एक बार फिर चहल-पहल और खुशियां फैल गई।

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