सिख क्यों पहनते हैं हाथ में कड़ा और सिर पर पगड़ी, गुरु गोबिंद से जुड़ी है इसकी कहानी

By गुलनीत कौर | Published: January 13, 2019 09:39 AM2019-01-13T09:39:29+5:302019-01-13T09:39:29+5:30

सिखों के दसवें नानक, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर, सन् 1666 को पटना (बिहार) में हुआ था। किन्तु सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार यह तारीख हर साल बदलती रहती है। इस साल 13 जनवरी, 2019 को यह गुरुपर्व देश दुनिया में बैठे सिख श्रद्धालुओं द्वारा मनाया जाएगा।

Guru Gobind Singh guruparv: Why sikh wear kada and turban, meaning of 5 kakar in sikhism | सिख क्यों पहनते हैं हाथ में कड़ा और सिर पर पगड़ी, गुरु गोबिंद से जुड़ी है इसकी कहानी

सिख क्यों पहनते हैं हाथ में कड़ा और सिर पर पगड़ी, गुरु गोबिंद से जुड़ी है इसकी कहानी

सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह को हर सिख अपना 'बादशाह' मानता है। उन्हें पिता की उपाधि भी दी जाती है। इनका जन्म 22 दिसंबर, सन् 1666 को पटना (बिहार) में हुआ था। किन्तु सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार यह तारीख हर साल बदलती रहती है। इस साल 13 जनवरी, 2019 को यह गुरुपर्व देश दुनिया में बैठे सिख श्रद्धालुओं द्वारा मनाया जाएगा।

गुरु गोबिंद सिंह के गुरुपर्व के उपलक्ष्य में हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसके बाद आप यह जान पाएंगे कि हर सिख पगड़ी क्यों बांधता है और हाथ में कड़ा क्यों पहनता है। आपने शायद सिखों को कृपान (छोटी तलवार) पहने हुए भी देखा होगा। यह भी गुरु गोबिंद सिंह की दें है। आइए जानते हैं पूरी कहानी।

1699 की बैसाखी

13 अप्रैल, सन् 1699 को गुरु गोबिदं सिंह द्वारा बैसाखी का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया गया। दूर दूर से संगत को न्योता भेजा गया। लाखों की संख्या में लोग एकत्रित भी हुए। उसदिन गुरु गोबिंद  ने 'खालसा पंथ' की स्थापना की। 'पांच प्यारों' को अमृत छका कर सिख से 'सिंह' बनाया और उन्हें ‘पांच ककार’ धारण कराये।

सिख धर्म के पांच ककार

ये पांच ककार इस प्रकार हैं - कंघा, कड़ा, किरपान, केश (बाल) और कच्छहरा। यह एक पूर्ण सिख द्वारा धारण किए जाते हैं। एक ऐसा सिख जिसने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा प्रदान किए गए ‘खंडे बाटे’ का अमृत पान किया हो और नियमानुसार सिख धर्म का पालन कर रहा हो। सिख धर्म में अमृत चखने वाले सिख को ‘अमृतधारी सिख’ भी कहा जाता है।

1) कंघा

पांच ककारों में प्रथम है कंघा। एक अमृतधारी सिख साधारण प्लास्टिक का नहीं, बल्कि लकड़ी के कंघे का इस्तेमाल करता है और इसे अपने बालों में पगड़ी के नीचे धारण भी करता है। अमृत पान कराने के बाद ही लकड़ी का एक कंघा दिया जाता है। यह 5 ककारों में अहम माना गया है। कहते हैं कि जब लकड़ी का यह कंघा बालों और स्कैल्प पर इस्तेमाल किया जाता है तो यहां रक्त का प्रवाह बढ़ता है। इसके अलावा बालों का टूटना, रूखापन, आदि भी कम होता है।

2) कड़ा

आम लोगों की नजर में भले ही यह एक लोहे की या अन्य धातु की बनी चूड़ी जैसा हो, लेकिन एक सिख के लिए ये किसी सम्मान से कम नहीं है। यह कड़ा दाहिने हाथ में पहना जाए और केवल एक ही कड़ा पहना जाए, यह नियम है। सिख धर्म में लोहे के कड़े को सुरक्षा का प्रतीक माना गया है। कहते हैं यह कड़ा एक सिख को कठिनाईयों से लड़ने की हिम्मत प्रदान करता है, सिख को किसी प्रकार का कोई भय नहीं होने देता।

3) कच्छहरा

साधारण जिस तरह के अंदरूनी वस्त्र आम लोग पहनते हैं, यह कच्छहरा उससे काफी अलग है। परंपरा है कि यह कच्छहरा सूती कपड़े का ही होना चाहिए। इस कच्छहरे को एक खास उद्देश्य से बनाया गया था। उस जमाने में जब सिख योद्धा युद्ध के मैदान में जाते थे तो घुड़सवारी करते समय या युद्ध करते समय उन्हें एक ऐसी चीज की जरूरत थी जो तन को भी ढके और परेशानी भी ना दे। तब कच्छहरा पहनने की रीति बनाई गई। आज के समय में भी एक अमृतधारी सिख कच्छहरा पहनता है। इसकी सहायता से आसानी से चला जा सकता है, यह बेहद आरामदायक होता है और ‘सेवा’ करते समय भी कोई परेशानी नहीं होती।

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4) केश

केश या बाल, सिख धर्म में होने की पहचान है। गुरु गोबिंद सिंह जी के अनुसार केश ‘अकाल पुरख’ द्वारा एक सिख को दी गई देन है, एक सम्मान है जिसे कभी भी खुद से अलग नहीं करना चाहिए। इसलिए एक अमृतधारी सिख या कायदे से किसी भी सिख को अपने बाल नहीं कटवाने चाहिए। यहां केश केवल सिर के बाल नहीं, वरन् पूरे शरीर के बाल हैं। सिर के, दाढ़ी के या शरीर के जिस भी भाग पर बाल हैं, उन्हें काटने या हटाने की मनाही है।

5) किरपान

शायद कभी आपने ध्यान भी दिया हो, एक अमृतधारी सिख हर समय अपने कमर की बाईं ओर एक छोटी सी किरपान या कटार पहने रखता है। यह पांच ककारों में से ही एक ककार है, जिसे 24 घंटे पहने रखना जरूरी होता है, यहां तक कि सोते समय भी। अगर स्नान किया जा रहा है, तो उस समय इस किरपान को सिर पर पगड़ी के साथ बांध लिया जाता है, लेकिन कभी भी अपने तन से अलग नहीं किया जाता। गुरु गोबिंद सिंह जी के वचन अनुसार उनके सिख को 'बुराई' से लड़ने के लिए हर समय तैयार रहना चाहिए। और यह किरपान उसका हथियार है जिसे सिर्फ और सिर्फ अहिंसा पर जीत पाने के लिए ही इस्तेमाल करें।

Web Title: Guru Gobind Singh guruparv: Why sikh wear kada and turban, meaning of 5 kakar in sikhism

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