गोबिंद सिंह के जन्म पर दरवाजे पर आए मुसलमान पीर को मां गुजरी ने वापस क्यों भेज दिया, पढ़ें एक सच्ची कहानी
By गुलनीत कौर | Published: January 9, 2019 11:44 AM2019-01-09T11:44:35+5:302019-01-09T11:44:35+5:30
गोबिंद राय (गोबिंद सिंह) का जन्म 22 दिसंबर, सन् 1666 को पटना (बिहार) में हुआ था। इस साल 13 जनवरी, 2019 को देश-दुनिया में बड़े उत्साह के साथ उनका जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
सिखों के दसवें नानक, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर, सन् 1666 को पटना (बिहार) में हुआ था। किन्तु सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार यह तारीख हर साल बदलती रहती है। इस साल 13 जनवरी, 2019 को यह गुरुपर्व देश दुनिया में बैठे सिख श्रद्धालुओं द्वारा मनाया जाएगा। गुरु गोबिंद सिंह सिखों के 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी की इकलौती संतान थे। आइए आपको उनके जन्म से जुड़ी एक रोचक कहानी बताते हैं:
भीखन शाह, उस समय मुसलमानों के जाने माने संत हुआ करते थे। हजारों की तादाद में उनके मानने वाले थे। ये लोग उनके उपदेशों को सुनते और उनकी राह पर चलते थे। एक दिन अचानक भीखन शाह ने अपने शिष्यों से कहा कि हो ना हो किसी ऐसे अवतार ने जन्म लिया है जो अल्लाह का फ़रिश्ता नहीं, बल्कि उसी का रूप है। उन्हें ऐसा आभास होने लगा कि बेहद पाक रूह ने इस धरती पर जन्म लिया है और उसके एक दीदार के लिए वे सफर पर निकल पड़े।
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म
कुछ रास्ता बीतने के बाद किसी ने उन्हें बताया कि पटना में गुरु नानक के 9वें अवतार गुरु तेग बहादुर के यहां पुत्र ने जन्म लिया है। उसका नाम 'गोबिंद राय' रखा गया है। नाम सुनते ही भीखन शाह के मन में उत्सुकता की एक लहर दौड़ पड़ी और वे पटना की ओर उस बच्चे से मिलने के लिए निकल गए।
लंबा सफर तय करते हुए भीखन शाह पटना पहुंचे। वहां पहुँचते ही उन्हें गोबिंद राय की तारीफें सुनने को मिलीं। उन्हें यकीन हो गया कि यही वह अवतार है जिसकी उन्हें तलाश थी। वे फ़ौरन हाथ में दो मटके लिए हुए गुरु तेग बहादुर के घर की ओर निकल दिए। मगर वहां पहुँचते निराशा उनके हाथ लगी।
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माता गुजरी ने बंद कर दिया दरवाजा
एक मुसलमान फ़कीर को पास आता देख गोबिंद राय की मां गुजरी ने दरवाजा जोर से बंद कर लिया। भीखन शाह ने दरवाजे पर पहुंच उसे खोल देने की गुजारिश की और कहा कि मैं गोबिंद राय को देखने आया हूं। वह एक पाक रूह है। कृप्या दरवाजा खोल दें। मगर माता गुजरी ने दरवाजा खोलने से इनकार कर दिया।
दरअसल यह वह बुरा समय था जब हिन्दू और सिखों के दिल में मुगलों का खौफ था। सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिन्द जब मात्र एक वर्ष की आयु के भी नहीं थे, तब मुगलों ने उनपर चोरी से हमला किया था। कुछ ऐसा ही गोबिंद राय के साथ ना हो, इसलिए माता गुजरी ने दरवाजा खोलने से मना किया और भीक्खन शाह को वापस लौट जाने को कहा।
भीखन शाह ने किए गोबिंद राय के दर्शन
वहां मौजूद रिश्तेदारों ने भी गोबिंद राय की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली और भीखन शाह को वहां से जाने को कहा। किन्तु भीखन शाह वापस ना लौटे और कई दिनों तक बाहर बैठकर इन्तजार करते रहे। घर के अन्दर आने जाने वाले रिश्तेदार कभी कभी उनसे बातें किया करते। इस बीच उन्हें यह एहसास हुआ कि भीखन शाह अच्छे इंसान हैं। उनसे गोबिंद राय को कोई नुकसान नहीं होगा। आखिरकार उन्हें घर के भीतर जाने की अनुमति मिली।
अन्दर जाते ही उन्होंने गोबिंद राय को माता गुजरी की गोद में देखा। बच्चे के चेहरे की चमक देख भीखन शाह चकित रह गए। वे गोबिंद राय के सामने बैठ गए और उनके आगे दो मटके रख दिए। फिर कुछ देर इन्तजार किया। अचानक गोबिंद राय ने अपने हाथ उठाए और दोनों मटकों पर रख दिए। यह देखते ही भीखन शाह खुशी से फूले ना समाए और मटके उठाकर वहां से चल दिए।
माता गुजरी और उनके रिश्तेदारों को यह दृश्य बेहद अजीब लगा। उन्होंने जब भीखन शाह से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि इन दो मटकों में से एक हिन्दू और दूसरा मुस्लिम कौम का था। मैं ये देखना चाहता था कि अल्लाह का भेजा हुआ यह अवतार मुसलामानों की रक्षा के लिए आया है या हिन्दूओं की। मगर जो मैंने देखा उसके बाद मैं चकित रहा गया।
इंसानियत का रक्षक गुरु गोबिंद
गोबिंद राय ने दोनों मटकों पर हाथ रखा और यह साबित कर दिया कि वे किसी एक धर्म या जाति की नहीं, बल्कि 'इंसानियत' की रक्षा के लिए आए हैं। आगे चलकर गोबिंद राय से गोबिंद सिंह बने इस सिख गुरु ने यह करके भी दिखाया। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, सिख फ़ौज तैयार की जिसने हर जाति और हर धर्म की रक्षा की।