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Gudi Padwa 2019: गुड़ी पड़वा के ये 10 उपाय दिलाएंगे शांति, सुख समृद्धि, धन और मान-सम्मान

By उस्मान | Updated: April 3, 2019 15:17 IST

Gudi Padwa 2019: गुड़ी पड़वा दिन नीम के कोमल पत्तों, पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री और अजवाइन डालकर खाना चाहिए। इससे रुधिर विकार नहीं होता और आयोग्य की प्राप्ति होती है।

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हिन्दू कैलेंडर के अनुसार गुड़ी पड़वा या चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हिन्दू नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है। 'गुड़ी' का अर्थ होता है - 'विजय पताका' और पड़वा  संस्कृत शब्द से बना है जिसका अर्थ है चंद्रमा के उज्ज्वल चरण का पहला दिन। इसे संस्कृत में प्रतिपदा कहा जाता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 'उगादि' और महाराष्ट्र में यह पर्व 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है।

गुड़ी का महत्व (Significance Of The Gudi)

ऐसा कहा जाता है कि जब राजा शालिवाहन ने साकों को हराया और पैठण में वापस आए, तो लोगों ने गुड़ी फहराई क्योंकि इसे जीत का प्रतीक माना जाता है। कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की विजय के उपलक्ष्य में गुड़ी फहराते हैं। कुछ लोगों ने माना है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया था, गुड़ी को ब्रह्मध्वज (भगवान ब्रह्मा का ध्वज) भी माना जाता है। कुछ लोग इसे इंद्रध्वज (भगवान इंद्र का ध्वज) भी मानते हैं। इसलिए, कुछ के लिए, यह वसंत के मौसम की शुरुआत भी है। कुछ लोग 14 साल के वनवास के बाद भी भगवान राम के अयोध्या लौटने के प्रतीक के रूप में गुड़ी फहराते हैं।

भारत के किन-किन राज्यों में मनाया जाता है गुड़ी पड़वा (Which states celebrate Gudi Padwa or Ugadi)

गोवा और केरल के कोंकण में इसे संवत्सर पडवो (Samvatsar Padvo) के रूप में मनाया जाता है। कर्नाटक के बाकी कोंकणी प्रवासी इसे युगादी (Yugadi) के नाम से जानते हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोग उगादि (Ugadi) मनाते हैं। कश्मीरी इसे नवरेह ( Navreh) के रूप में मनाते हैं। मणिपुर में इसे साजिबू नोंग्मा पैन्बा (Sajibu Nongma Pānba) या मीटीई चेराओबा (Meetei Cheiraoba) के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारतीयों के लिए इसी दिन से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) शुरू होती है।

कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इसमें ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधवारें, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक की भी पूजा की जाती है। 

इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अत: इस तिथि को 'नवसंवत्सर' भी कहते हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है।

जीवन में शांति, सुख समृद्धि, धन और मान-सम्मान प्राप्ति के लिए इस दिन ये काम करें

1) पूजन का शुभ संकल्प कर नई बनी हुई चौरस चौकी या बालू की वेदी पर स्वच्छ श्वेतवस्त्र बिछाकर उस पर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल कमल बनाकर उस पर ब्रह्माजी की सुवर्णमूर्ति स्थापित करें।

2) गणेशाम्बिका पूजन के पश्चात्‌ 'ॐ ब्रह्मणे नमः' मंत्र से ब्रह्माजी का आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करें। 3) पूजन के अनंतर विघ्नों के नाश और वर्ष के कल्याण कारक तथा शुभ होने के लिए ब्रह्माजी से विनम्र प्रार्थना की जाती है : - 'भगवंस्त्वत्प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु में। संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः।'

4) पूजन के पश्चात विविध प्रकार के उत्तम और सात्विक पदार्थों से ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए।

5) नवीन पंचांग से उस वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष आदि का तथा वर्ष का फल श्रवण करना चाहिए।

6) सामर्थ्यानुसार पचांग दान करना चाहिए तथा प्याऊ की स्थापना करनी चाहिए।

7) इस दिन नया वस्त्र धारण करना चाहिए तथा घर को ध्वज, पताका, वंदनवार आदि से सजाना चाहिए।

8) गुड़ी पड़वा दिन नीम के कोमल पत्तों, पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री और अजवाइन डालकर खाना चाहिए। इससे रुधिर विकार नहीं होता और आयोग्य की प्राप्ति होती है।

9) इस दिन नवरात्रि के लिए घटस्थापना और तिलक व्रत भी किया जाता है। इस व्रत में यथासंभव नदी, सरोवर अथवा घर पर स्नान करके संवत्सर की मूर्ति बनाकर उसका 'चैत्राय नमः', 'वसंताय नमः' आदि नाम मंत्रों से पूजन करना चाहिए। इसके बाद पूजन अर्चन करना चाहिए।

10) नवमी को व्रत का पारायण कर शुभ कामनाओं के फल प्राप्ति हेतु मां जगदंबा से मन से प्रार्थना करनी चाहिए। 

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