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गणगौर पूजा कल, महिलाएं इस दौरान बिना किसी को बताए रखती हैं उपवास, जानिए कथा और पूजा विधि

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 26, 2020 10:34 IST

Gangaur Puja 2020 (गणगौर पूजा कब है? ): गणगौर व्रत पूजा की शुरूआत होली के शाम से ही हो जाती है। इसमें कुंवारी और विवाहित महिलाएं हर दिन गणगौर जी की पूजा करती हैं। इसका समापन कल होगा।

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ठळक मुद्देहोली से गणगौर पूजा की शुरुआत होती है, 27 मार्च को इस बार होगा खत्मराजस्थान और मध्य प्रदेश में इस व्रत का है बहुत महत्व, शिव और पार्वती जी से जुड़ी है पौराणिक कथा

Gangaur Puja 2020 Date: राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुख्य तौर पर मनाए जाने वाले गणगौर पूजा का समापन कल 27 मार्च को हो जाएगा। इस त्योहार की शुरुआत होली के दिन से ही हो जाती है। इन दिनों में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। पूजा के आखिरी दिन का सबसे ज्यादा महत्व है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को सदा सुहागन रहने का वरदान दिया था। वहीं, माता पार्वती ने सभी सुहागन स्त्रियों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया। महिलाएं ये पूजा अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं।

Gangaur Puja 2020: पूजा का महत्व और विधि

गणगौर व्रत पूजा की शुरूआत होली के शाम से ही हो जाती है। इसमें कुंवारी और विवाहित महिलाएं हर दिन गणगौर जी की पूजा करती हैं। विवाहित महिलाएं जहां पति की लंबी उम्र के लिए तो वहीं कुंवारी लड़कियां अच्छे वर के लिए इस पूजा को करती हैं। इसे चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तक रोज किया जाता है। चैत्र शुक्ल की द्वितीया को सिंजारा कहा जाता है। 

इस दिन महिलाएं किसी भी नदी, सरोवर, तालाब पर जाकर गणगौर को पानी पिलाती हैं और फिर तृतीया के दिन शाम में उनका विसर्जन करती हैं। मघ्य प्रदेश में यही प्रक्रिया तीसरे दिन की जाती है।

Gangaur Puja 2020: महिलाएं गुप्त रूप से रखती हैं उपवास

महिलाएं पूरे गणगौर पूजा के दौरान उपवास रखती हैं। खास बात ये है कि इसे वे गुप्त तौर पर रखती हैं और किसी को इस बारे में नहीं बताया जाता है। इसे लेकर एक कथा है।

क बार भगवान शिव शंकर और माता पार्वती भ्रमण के लिये निकल पड़े। उनके साथ नारद मुनि भी थे। सभी चलते-चलते एक गांव में पंहुच गये। यहां उनके आने की खबर पाकर गांव के सभी लोग उनकी आवभगत की तैयारियों में जुट गये। कुलीन घरों से स्वादिष्ट भोजन पकने की खुशबू गांव से आने लगी। लेकिन कुलीन स्त्रियां स्वादिष्ट भोजन लेकर पंहुचती उससे पहले ही गरीब परिवारों की महिलाएं अपने श्रद्धा सुमन लेकर अर्पित करने पंहुच गयी। 

माता पार्वती ने जब उनकी श्रद्धा और भक्ति को देखा तो सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वहीं, जब उच्च घरों स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान, पकवान लेकर वहां पहुंची तो शिवजी ने माता पार्वती से पूछ लिया कि अब वे उन्हें क्या देंगी क्योंकि सारा सुहाग रस तो उन्होंने पहले आई स्त्रियों को ही दे दिया था।

इस पर माता पार्वती ने कहा वे अब अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रस देंगी। माता ने कहा कि  जो भी जितनी सच्ची श्रद्धा से आयी है उस पर ही इस विशेष सुहागरस के रक्त के छींटे पड़ेंगे और वह सौभाग्यशालिनी होगी। पूजन के बाद उन्होंने ऐसा ही किया। माता पार्वती ने अपनी अंगुली चीरकर उस रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया। कहते हैं कि जिस पर जैसे छीटें पडे उसने वैसा ही सुहाग पा लिया।

पार्वती जी ने भगवान शिव से बोला झूठ 

इसके बाद पार्वती जी ने शिव जी से आज्ञा लेकर वहीं नदी में स्नान करने की इच्छा जताई। पार्वती जी ने स्नान के बाद वहां बालू की शिवजी की मूर्ति बनाकर उनका पूजन भी किया। यह सब करते-करते काफी देर हो गई। पूजन के बाद वे भगवान शिव जी के पास पहुंची। वहां नारद भी मौजूद थे।

शिवजी ने जब विलम्ब से आने का कारण पूछा तो पार्वती जी ने घबराकर झूठ बोल दिया कि वहां उनके मायके से भाई-भावज मिल गए थे। उन्हीं से बातचीत में देर हो गई। साथ ही माता ने कहा कि उनलोगों ने उन्हें दूध-भात खाने का आग्रह किया और यही सब कारण थे जिससे देर हुई। भगवान शिव तो अन्तर्यामी थे। वे सबकुछ जानते थे। इसके बावजूद उन्होंने दूध-भात खाने की जिद कर दी और उस ओर जाने लगे जहां पार्वती जी ने अपने मायके वालों से मिलने की बात कही थी।

अब भला पार्वती जी क्या करतीं। वे दुविधा में थीं। उन्होंने मन ही मन शिव जी की प्रार्थना की और कहा कि 'भगवान आप अपनी इस अनन्य दासी की लाज रखिए।' प्रार्थना करती हुई पार्वती जी उनके पीछे पीछे चलने लगी। 

कुछ दूर पहुंचने पर शिवजी और पार्वती जी को नदी तट पर एक महल दिखाई दिया। वहां महल के अन्दर शिवजी के साले तथा सहलज मौजूद थे। उन्होंने शिव-पार्वती का स्वागत किया। वे दो दिन वहां रहे। तीसरे दिन पार्वती जी ने शिवजी से चलने के लिए कहा तो भगवान शिव चलने को तैयार नहीं हुए। पार्वती जी तब अकेले ही रूठकर चलने लगीं।

ऐसे में भगवान शिव को भी पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारदजी भी साथ चल दिए। थोड़ी दूर जाने के बाद भगवान शंकर बोले मैं तो अपनी माला वहीं भूल आया। पार्वती जी लौटकर माला लाने के लिए पार्वतीजी तैयार हुई तो भगवान ने पार्वतीजी को न भेजकर नारद जी को भेज दिया। नारद जी के वहां पहुचने पर  कोई महल नजर नही आया। दूर-दूर तक वहां जंगल ही जंगल था। नारदजी को आखिरकार शिवजी की माला एक पेड़ पर टंगी दिखाई दी। 

नारदजी ने माला उतारी और शिवजी के पास पहुंच कर पूरी बात बताई। शिवजी हंसकर कहने लगे। पार्वती जी बोली- मैं किस योग्य हूं। महर्षि नारदजी को जब पूरी बात का ज्ञान हुआ तो उन्होंने माता पार्वती और उनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना की खूब प्रशंसा की। साथ ही उन्होंने कहा कि जो स्त्रियां गुप्त रूप से पूजन कर अपने पति की मंगल कामना करेंगी, उनकी इच्छा जरूर पूरी होगी। इसलिए तभी से गणगौर पूजा गुप्त तरीके से करने की परंपरा चली आ रही है।

टॅग्स :गणगौर पूजाराजस्थानमध्य प्रदेश
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