गंगा सप्तमी 2020: मां गंगा ने अपने 7 पुत्रों को किया था नदी में प्रवाहित, जानिए क्या है पौराणिक कथा

By मेघना वर्मा | Published: May 1, 2020 09:08 AM2020-05-01T09:08:45+5:302020-05-01T09:08:45+5:30

लोक कथाओं के अनुसार मां गंगा ने अपनी संतान, भीष्म से पहले बाकी की 7 संतानों को जीवित ही नदी में प्रवाहित कर दिया था।

ganga saptami 2020 before bhishma maa ganga had given her 7 sons in the river know about mahabharat katha in hindi | गंगा सप्तमी 2020: मां गंगा ने अपने 7 पुत्रों को किया था नदी में प्रवाहित, जानिए क्या है पौराणिक कथा

गंगा सप्तमी 2020: मां गंगा ने अपने 7 पुत्रों को किया था नदी में प्रवाहित, जानिए क्या है पौराणिक कथा

Highlightsमां गंगा से जुड़े कई प्रसंग पुराणों में मिलते हैं। मां गंगा हस्तिनापुर के महाराज शांतनु की पत्नी थीं।

गंगा नदी को देव नदी कहा जाता है। इस साल गंगा सप्तमी 29 अप्रैल को मनाी गई थी। माना जाता है कि इसी दिन मां गंगा धरती पर आयीं थीं। गंगा सप्तमी वाले दिन लोग गंगा में स्नान करते हैं तथा घाटों पर भव्य गंगा आरती होती है। मगर इस बार लॉकडाउन के चलते ऐसा संभव नहीं।

मां गंगा से जुड़े कई प्रसंग पुराणों में मिलते हैं। इन्हीं में से एक मिलता है महाभारत में। मां गंगा हस्तिनापुर के महाराज शांतनु की पत्नी थीं। महाभारत में दोनों के प्रेम प्रसंग का उल्लेख मिलता है। वहीं बताया जाता है मां गंगा ने अपनी संतान, भीष्म से पहले बाकी की 7 संतानों को जीवित ही नदी में प्रवाहित कर दिया था।

आइए आपको बताते हैं क्या है इस पौराणिक मान्यता के पीछे की कहानी-

शापित थे मां गंगा के पुत्र

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पृथु के पुत्र जिन्हें वसु कहा जाता है वे अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर घूमने गये थे। यहीं पर महर्षि ऋषि का आश्रम था। इसी आश्रम में नंदिनी नाम की गाय थी। बताया जाता है कि उस समय वसु ने सब चीजों के साथ नंदिनी गाय का भी हरण कर लिया।

वसु की हरकत से ऋषि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने सभी वुसओं को इंसान योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। वसु ने तुरंत ही अपने पापों की क्षमा मांग ली। इस पर ऋषि का क्रोध थोड़ा कम हुआ तो वो बोले कि तुममें से घौ नामक वसु को पृथ्वीलोक पर लंबे समय तक रहकर कर्म भोगना होगा।

ऋषि के इस श्राप की बात वसुओं ने देवी गंगा को बताई। जिस पर मां गंगा ने कहा कि तुम सभी को अपने गर्भ में धारण करूंगी और तुरंत ही मनुष्य योनी से मुक्त भी कर दूंगी। गंगा ने ऐसा ही किया जिस पर सांतनु को दखल देने के लिए मां गंगा ने पहले ही मना कर दिया था।

जब इनकी आठवीं संतान की बारी आई तब महाराज शांतनु ने गंगा को ऐसा करने से रोक दिया। तब गंगा ने अपने इस पुत्र को जीवित रखा जो भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मां गंगा के इस पुत्र को पृथ्वी पर रहकर जीवन भर दुख भोगने पड़े।

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