शुक्रवार व्रत कथा: मां संतोषी को प्रसन्न कर जीवन में लाएं खुशहाली, तरक्की के लिए जान लें ये जरूरी बातें

By गुणातीत ओझा | Published: September 4, 2020 12:34 AM2020-09-04T00:34:10+5:302020-11-06T15:13:08+5:30

शुक्रवार का दिन संतोषी माता को समर्पित है। आसानी से प्रसन्न होने वाली संतोषी माता का व्रत हर तरह से गृहस्थी को धन-धान्य, पुत्र, अन्न-वस्त्र से परिपूर्ण रखता है।

Friday fast story: bring happiness to life by pleasing mother Santoshi know these important things for progress | शुक्रवार व्रत कथा: मां संतोषी को प्रसन्न कर जीवन में लाएं खुशहाली, तरक्की के लिए जान लें ये जरूरी बातें

शुक्रवार को ऐसे करें मां संतोषी की पूजा, मिलेगी बरकत।

Highlightsशुक्रवार के दिन मां संतोषी का व्रत रखने से हर मनोकामना पूरी होती है।आसानी से प्रसन्न होने वाली संतोषी माता का व्रत हर तरह से गृहस्थी को धन-धान्य, पुत्र, अन्न-वस्त्र से परिपूर्ण रखता है।

Shukrawar vrat katha: शुक्रवार का दिन संतोषी माता को समर्पित है। सरल और आसानी से प्रसन्न होने वाली संतोषी माता का व्रत हर तरह से गृहस्थी को धन-धान्य, पुत्र, अन्न-वस्त्र से परिपूर्ण रखता है। मां अपने भक्त को हर कष्ट से दूर करती है। आइये आपको बताते हैं संतोषी मां के व्रत की कथा और पूजा विधि.. 

व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है। एक बुढि़या के सात पुत्र थे। उनमें से 6 कमाते थे और एक निकम्मा था। बुढि़या अपने 6 बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को बाद में उनकी थाली की बची हुई जूठन खिला दिया करती। सातवें बेटे की पत्नी इस बात से बड़ी दुखी थी क्योंकि वह बहुत भोला था और ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता था। एक दिन बहू ने जूठा खिलाने की बात अपने पति से कही पति ने सिरदर्द का बहाना कर, रसोई में लेटकर स्वयं सच्चाई देख ली। उसने उसी क्षण दूसरे राज्य जाने का निश्चय किया। जब वह जाने लगा, तो पत्नी ने उसकी निशानी मांगी। पत्नी को अंगूठी देकर वह चल पड़ा। दूसरे राज्य पहुंचते ही उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और जल्दी ही उसने मेहनत से अपनी जगह बना ली। 

संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया

इधर, बेटे के घर से चले जाने पर सास-ससुर बहू पर अत्याचार करने लगे। घर का सारा काम करवा के उसे लकड़ियां लाने जंगल भेज देते और आने पर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी रख देते। इस तरह अपार कष्ट में बहू के दिन कट रहे थे। एक दिन लकडि़यां लाते समय रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और पूजा विधि पूछी। उनसे सुने अनुसार बहू ने भी कुछ लकडि़यां बेच दीं और सवा रूपए का गुड़-चना लेकर संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया। 

कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा

दो शुक्रवार बीतते ही उसके पति का पता और पैसे दोनों आ गए। बहू ने मंदिर जाकर माता से फरियाद की कि उसके पति को वापस ला दे। उसको वरदान देने माता संतोषी ने स्वप्न में बेटे को दर्शन दिए और बहू का दुखड़ा सुनाया। इसके साथ ही उसके काम को पूरा कर घर जाने का संकल्प कराया। माता के आशीर्वाद से दूसरे दिन ही बेटे का सब लेन-देन का काम-काज निपट गया और वह कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा।

 बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा

वहां बहू रोज लकडि़यां बीनकर माताजी के मंदिर में दर्शन कर अपने सुख-दुख कहा करती थी। एक दिन माता ने उसे ज्ञान दिया कि आज तेरा पति लौटने वाला है। तू नदी किनारे थोड़ी लकडि़यां रख दे और देर से घर जाकर आंगन से ही आवाज लगाना कि सासूवमां, लकडि़यां ले लो और भूसे की रोटी दे दो, नारियल के खोल में पानी दे दो। बहू ने ऐसा ही किया। उसने नदी किनारे जो लकडि़यां रखीं, उसे देख बेटे को भूख लगी और वह रोटी बना-खाकर घर चला। घर पर मां द्वारा भोजन का पूछने पर उसने मना कर दिया और अपनी पत्नी के बारे में पूछा। तभी बहू आकर आवाज लगाकर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी मांगने लगी। बेटे के सामने सास झूठ बोलने लगी कि रोज चार बार खाती है, आज तुझे देखकर नाटक कर रही है। यह सारा दृश्य देख बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा।

खट्टा खाने की मनाही

शुक्रवार आने पर पत्नी ने उद्यापन की इच्छा जताई और पति की आज्ञा पाकर अपने जेठ के लड़कों को निमंत्रण दे आई। जेठानी को पता था कि शुक्रवार के व्रत में खट्टा खाने की मनाही है। उसने अपने बच्चों को सिखाकर भेजा कि खटाई जरूर मांगना। बच्चों ने भरपेट खीर खाई और फिर खटाई की रट लगाकर बैठ गए। ना देने पर चाची से रूपए मांगे और इमली खरीद कर खा ली। इससे संतोषी माता नाराज हो गई और बहू के पति को राजा के सैनिक पकड़कर ले गए। बहू ने मंदिर जाकर माफी मांगी और वापस उद्यापन का संकल्प लिया। इसके साथ ही उसका पति राजा के यहां से छूटकर घर आ गया। अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बच्चों को भोजन करने बुलाया और दक्षिणा में पैसे ना देकर एक- एक फल दिया। इससे संतोषी माता प्रसन्न हुईं और जल्दी ही बहू को एक सुंदर से पुत्र की प्राप्ति हुई। बहू को देखकर पूरे परिवार ने संतोषी माता का विधिवत पूजन शुरू कर दिया और अनंत सुख प्राप्त किया। 

व्रत विधि 

इस व्रत में प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर संतोषी माता को स्मरण कर दंडवत प्रणाम करें। पूजा करते समय जल से भरा कलश रखकर उसके ऊपर गुड़ और चने से भरा कटोरा रखें। कथा कहने और सुनने वाले अपने हाथ में गुड़-चना अवश्य रखें और मन ही मन संतोषी माता की जय बोलते जाएं। पूजा के लिए गुड़-चना लेते समय सवाई का ध्यान रखें यानि अपने सामर्थ्य के अनुसार चना-गुड़ सवा रू., सवा पांच रू. या सवा ग्यारह रू. के बढ़ते क्रम के अनुरूप ही लें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ चना गाय माता को खिला दें और कलश पर रखा चना गुड़ प्रसाद के रूप में बांट दें और स्वयं भी प्रसाद लें।

उद्यापन अवश्य करें

इसी विधि से तब तक व्रत करते रहें, जब तक आपकी मनोकामना पूरी ना हो जाए। मनोकामना पूरी होने पर उद्यापन अवश्य करें। उद्यापन के लिए ढाई सेर खाजा, मोयनदार पूड़ी, खीर, चने की सब्जी और नैवेद्य रखें। घी का दीपक जला कर संतोषी माता की कथा कह, जयकारा लगाकर नारियल फोड़ें। इस दिन घर में कोई खटाई ना खाए, ना ही किसी को कुछ भी खट्टा दें। इस दिन 8 लड़कों को भोजन कराएं। लड़के अपने कुटुंब के हों तो अच्छा, ना हो तो ब्राह्मण बालकों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों के लड़कों को बुलाएं। भोजन कराके यथाशक्ति दक्षिणा दें, जिसमें पैसे के स्थान पर कोई फल देना अधिक अच्छा होता है। इस तरह विधिपूर्वक पूजा- उद्यापन से घर में संतोषी माता की कृपा सदैव बनी रहती है।

Web Title: Friday fast story: bring happiness to life by pleasing mother Santoshi know these important things for progress

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