Dev Uthani Ekadashi 2021 Date: देवउठनी एकादशी कब है? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और कथा
By रुस्तम राणा | Published: November 8, 2021 01:10 PM2021-11-08T13:10:30+5:302021-11-08T13:17:38+5:30
देवउठनी एकादशी के दिन से ही शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी सच्चे मन से आराधना करने से वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।
देवउठनी एकादशी कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कहते हैं। इस बार देवउठनी एकादशी 14 नवंबर को है। शास्त्रों में इसे प्रबोधिनी या फिर देव उत्थानी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह के निद्रा काल से जागते हैं और पुनः सृष्टि के पालन का कार्यभार संभालते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन से ही शादी-विवाह जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु जी सच्चे मन से आराधना करने से वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।
देवउठनी एकादशी मुहूर्त 2021
एकादशी तिथि प्रारंभ - 14 नवंबर को सुबह 05:48 बजे से
एकादशी तिथि का समापन - 15 नवंबर को सुबह 06:39 बजे तक
व्रत पारण का समय- 15 नवंबर को दोपहर 01:10 बजे से दोपहर 03:19 बजे तक
देवउठनी एकादशी व्रत विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प करें। भगवान विष्णु जी के समक्ष दीप प्रज्जवलित करें। गंगा जल से अभिषेक करें। विष्णु जी को तुलसी चढ़ाएं। जगत के पालनहार को सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। शाम को तुलसी के समक्ष दीप जलाएं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। अगले दिन द्वादशी के दिन शुभ मुहूर्त पर व्रत खोलें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर प्रसाद वितरण करें।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत सती थी। शंखचूड़ को परास्त करने के लिए वृंदा के सतीत्व को भंग करना जरूरी था। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और उसके बाद भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध कर दिया। इस छल के लिए वृंदा ने भगवान विष्णु को शिला रूप में परिवर्तित होने का शाप दे दिया। उसके बाद भगवान विष्णु शिला रूप में तब्दील हो गए और उन्हें शालिग्राम कहा जाने लगा।