चारधाम के सबसे महत्वपूर्ण धाम बदरीनाथ के कपाट कल यानी 15 मई को खोले जाने हैं। उत्तराखंड के जोशीमठ नृसिंह मंदिर में वैदिक पूजा संपन्न होने के बाद शंकराचार्य की प्राचीन गद्दी को बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल की अगुवाई में बदरीपुरी के लिए रवाना कर दी गई है। बताया जा रहा है कि बदरीनाथ धाम के कपाट 15 मई को ब्रह्म मुहूर्त में साढ़े चार बजे खोले जाएंगे।
उत्तराखंड में भगवान शिव और विष्णु का निवास माना जाता है। क्योंकि उत्तराखंड में ही हिन्दू धर्म के दो महत्वपूर्ण धाम बदरीनाथ और केदारनाथ स्थित है। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। मगर इस बार लॉकडाउन की वजह से किसी को भी अभी यहां आने की इजाजत नहीं है। बदरीनाथ को भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है। मगर मान्यताएं हैं कि विष्णु भगवान ने ये स्थान माता पार्वती से छलपूर्वक हासिल किया था।
आइए आपको बताते हैं क्या है ये पौराणिक कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार बदरीनाथ धाम भगवान शिव और माता पार्वती का विश्राम गृह हुआ करता था। यहां भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे। भगवान विष्णु एक बार शिव से मिलने यहां गये और उन्हें यह स्थान इतना पसंद आ गया कि इसे प्राप्त करने की योजना बनाई।
जब श्री विष्णु ने धरा बालक का रूप
लोक कथा के अनुसार सतयुग में जब भगवान शिव अपनी पत्नी माता पार्वती के साथ यहां रहते थे तो एक दिन श्रीहरि विष्णु बालक का रूप लेकर यहां आए और जोर-जोर से उनके घर के सामने रोने लगे। एक बालकर का रुदन रूप देखकर माता पार्वती को पीड़ा हुई। वह सोचने लगीं कि इस बीहड़ वन में कौन बालक रो रहा है। यही सोचकर उनको बालक पर दया आ गई और वो उस बालक को अपने घर ले आईं।
शिव समझ गए सारी मनसा
भगवान शिव, श्री हरि की लीला देखकर सारी चीजें समझ गए। उन्होंने माता पार्वती से आग्रह किया कि यह थोड़ी देर रोने के बाद वापिस चला जाएगा। माता पार्वती ने भगवान शिव की बात नहीं मानी और बालक को घर में लाकर सुलाने लगीं। भगवान विष्णु के बाल रूप को सुलाने के बाद माता पार्वती और भगवान शिव बाहर घूमने चले गए।
दरवाजा कर लिया अंदर से बंद
भगवान विष्णु ने इसी इच्छा के साथ शिव जी के घर आए थे। उन्होंने शिव और माता पार्वती के घर को अंदर से बंद कर लिया। जब वे लोट कर वापिस आए और बालक से द्वार खोलने के लिए कहा तो भगवान विष्णु ने कहा आप भूल जाएं कि यहां आपका कोई स्थान था। यह मुझे पसंद आ गया। मुझे यहीं विश्राम करने दें। इसके बाद भगवान विष्णु का स्थान बदरीनाथ और भगवान शिव का स्थान केदारनाथ हो गया।