चमत्कार: बिहार के इस मंदिर में बलि के बाद फिर जिंदा हो जाते हैं जानवर!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: July 8, 2019 10:03 AM2019-07-08T10:03:49+5:302019-07-08T10:03:49+5:30
मां मुंडेश्वरी मंदिर के बारे में सबसे रहस्यजनक बात यहां की बलि देने की प्रथा है। इसके अलावा इस मंदिर की संरचना और इसमें मौजूद शिवलिंग भी बेहद अनोखा है।
बिहार का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। फिर बात चाहे प्राचीन काल की करें या फिर आधुनिक इतिहास की, बिहार की भूमिका हर समय अहम रही है। इसी बिहार के कैमूर जिला में स्थित है मां मुंडेश्वरी का धाम, जिससे जुड़े बातें न केवल हैरान करती हैं बल्कि यहां होने वाले चमत्कार भक्तों को भी सोचने पर मजबूर कर देते हैं। इसमें सबसे हैरान करने वाला चमत्कार बलि के बाद जानवरों का जिंदा हो जाना है
कैमूर जिले के भगवानपुर में पवरा पहाड़ी पर स्थित मां मुंडेश्वरी का ये मंदिर बहुत प्राचीन है और इसके निर्माण को लेकर कई तरह की मान्यता है। हालांकि, मंदिर में लगे भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के बोर्ड के मुताबिक यह मंदिर 635 ई. पूर्व से अस्तित्व में है। आखिर किस मंदिर का रहस्य क्या है, क्या है मां मुंडेश्वरी धाम से जुड़ी कहानी और कैसे यहां बलि के बाद जानवर फिर जिंद हो जाते हैं, जानिए इसके बारे में सबकुछ...
मंदिर की हैरान करने वाली अष्टकोणिय संरचना
यह मंदिर कैमूर पर्वतश्रेणी की पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यहां जाने से पहले आपको करीब 500 सीढ़िया ऊपर चढ़नी होती हैं। इस मंदिर के सामने पहुंचते ही सबसे पहले आपको इसकी संरचना हैरान कर देगी। आमतौर पर किसी भी हिंदू मंदिर में एक शीर्ष स्थल होता है जो आसमान की ओर होता है और उस पर कोई पताका लगी होती है। मां मुंडेश्वरी धाम का ये मंदिर हालांकि इस मामले में सबसे जुदा है। इसका संरचना अष्टाकार है। यही हिस्सा मंदिर का गर्भगृह माना जाता है।
कहते हैं कि यह मंदिर पहले काफी बड़े हिस्से में फैला था लेकिन समय के साथ इससे जुड़ी कई संरचनाएं टूट गई जबकि गर्भगृह का हिस्सा सुरक्षित बना रहा। मंदिर के आसपास कई ऐसी मू्र्तियां और पत्थर के टूटे हुए हिस्से हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि ये पहले मंदिर का ही हिस्सा थे।
रक्तविहीन बलि है मंदिर की सबसे चौंकान वाली बात
मंदिर के बारे में सबसे रहस्यजनक बात यहां की बलि देने की प्रथा है। मान्यता के अनुसार माता मुंडेश्वरी यहां रक्तविहीन बलि लेती हैं। दरअसल, जब भी किसी जानवर (बकरे) को यहां बलि के लिए लाया जाता है तो उसे सबसे पहले माता के चरणों में रखा जाता है। ऐसा करते ही वह एकदम शांत हो जाता है। फिर मंदिर के पुजारी कुछ मंत्र पढ़कर जानवर पर कोई चावल और माता के चरणों से उठाया हुआ फूल छिड़कते हैं।
ऐसा करते ही बकरा आंखे बंद कर एकदम शांत हो जाता है। ऐसा लगता है कि जैसे उसके प्राण हर लिये गये हैं। कुछ बाद पुजारी एक बार फिर उस पर फूल डालते हैं और जानवर फिर से उछलकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है।
पुजारी इस प्रक्रिया को ही यहां सांकेतिक बलि कहते हैं। ऐसा क्यों होता है, यह रहस्य अब भी बरकरार है। इस मंदिर और यहां आसपास के पहाड़ पर कई पत्थर ऐसे हैं जिनमें कई प्रकार की कलाकृति बनी हुई है। इनका भी अपना रहस्य है। यहां कुछ पत्थरों पर ऐसी भाषा लिखी गई है जिसके बारे में आज तक कोई पता नहीं लगा सका।
मां मुंडेश्वरी के गर्भगृह में ही चतुर्मुखी शिवलिग भी भक्तों के लिए कौतुहल का विषय रहता है। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि इस शिवलिंग का रंग सुबह-दोपहर और शाम को अलग-अलग रंग का हो जाता है। नवरात्र के अलावा सावन के महीने और शिवरात्रि के मौके पर भी इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है।
मां मुंडेश्वरी धाम की कहानी
ऐसी मान्यता है कि चण्ड-मुण्ड नाम के दो असुरों ने जब देवलोक में पहुचकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया तो उनका संहार करने के लिए देवी ने माता काली का रूप लिया। माता ने पहले चण्ड का वध किया। यह देख मुण्ड भागकर कैमूर की इन्ही पहाड़ियों में छिप गया। इसके बाद माता ने यहीं मुण्ड का वध किया। श्रद्धालुओं के बीच मान्यता है कि मां मुंडेश्वरी की सच्चे मन से पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।