Basant Panchami 2023: कब है बसंत पंचमी का पावन पर्व, जानें मां सरस्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त और पौराणिक महत्व

By रुस्तम राणा | Published: January 23, 2023 02:31 PM2023-01-23T14:31:18+5:302023-01-23T14:31:18+5:30

इस साल बसंत पंचमी पर्व 26 जनवरी गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन माता सरस्वती की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी।

Basant Panchami 2023 date puja muhurat vidhi and religious significance | Basant Panchami 2023: कब है बसंत पंचमी का पावन पर्व, जानें मां सरस्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त और पौराणिक महत्व

Basant Panchami 2023: कब है बसंत पंचमी का पावन पर्व, जानें मां सरस्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त और पौराणिक महत्व

Basant Panchami 2023: हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का पर्व का विशेष महत्व है। यह पावन पर्व ज्ञान और सुरों की देवी मां सरस्वती से संबंधित है। प्रति वर्ष माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस साल बसंत पंचमी पर्व 26 जनवरी गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन माता सरस्वती की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी। इसी दिन से ही बसंत ऋतु प्रारंभ होती है।   

बसंत पंचमी में सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त

पंचमी आरंभ: 25 जनवरी 2023, बुधवार दोपहर 12:34 बजे से
पंचमी समाप्त- 26 जनवरी 2023, गुरुवार सुबह 10:28 बजे तक
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त- 26 जनवरी 2023, गुरुवार सुबह 07:12 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक

बसंत पंचमी की विधि

बसंत पंचमी के दिन साधक को सुबह जल्दी उठें।
साफ-सफाई के बाद स्नान आदि के बाद पूजा की तैयारी करें। 
माता सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। 
पीले चंदन, अक्षत, हल्दी, रोली सहित पीले या सफेद रंग के फूल और पीली मिठाई माता को अर्पित करें। 
पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को माता के सामने रखें। 
इसके बाद मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें। 
मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।

बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तु सब कुछ दिख रहा था। इसके बावजूद वे अपने सृजन से बहुत खुश नहीं थे। उन्हें कुछ कमी महसूस हो रही थी। इसके बाद उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं। इनके एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ आशीर्वाद देने के मुद्रा में था। वहीं, अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। मान्यताओं के अनुसार इन सुंदर देवी ने जब वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के सभी जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई। 

इससे ब्रह्माजी अति प्रसन्न हुए और उन्होंने सरस्वती को वीणा की देवी के नाम से संबोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया। हाथों में वीणा होने के कारण उनका एक नाम वीणापाणि भी पड़ा। मां सरस्वती को शारदा, शतरूपा, वाणी, वाग्देवी, वागेश्वरी और भारती भी कहा जाता है। वैसे माता सरस्वती के जन्म को लेकर 'सरस्वती पुराण' और 'मत्सय पुराण' में भी अलग-अलग उल्लेख मिलते हैं। 

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