Amalaki Ekadashi: हिंदू मान्यताओं में वैसे तो हर एकादशी का महत्व है लेकिन फाल्गुन शुक्ल की एकादशी को बेहद खास माना गया है। होली से ठीक पहले पड़ने वाले इस एकादशी व्रत के बारे में कहा जाता है कि ये भगवान विष्णु के साथ-साथ शिव को भी बहुत प्रिय है। मान्यता है कि विवाह के बाद इसी दिन भगवान शिव माता गौरी को विदा कराकर ले आये थे। इस एकादशी पर आंवले के पौधे के साथ भगवान विष्णु की पूजा का विधान है।
Amalaki Ekadashi: आमलकी एकादशी दिन में 11.47 बजे तक
मार्च में दो बड़े एकादशी व्रत पड़ रहे हैं। इसमें पहला एकादशी व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष को है। इसे आमलकी एकदशी कहा गया है। वहीं, दूसरा पापमोचिनी एकादशी व्रत होगा। महाशिवरात्रि और होली के बीच पड़ने वाले इस एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु को पूजने की परंपरा है।
शास्त्रों के अनुसार इस पेड़ को खुद भगवान विष्णु ने उत्पन्न किया था। इस व्रत को करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार एकादशी तिथि की शुरुआत 5 मार्च को दोपहर 1.18 बजे के बाद हो रही है। हालांकि, उदया तिथि के कारण एकादशी का व्रत 6 तारीख (शुक्रवार) को किया जाएगा। एकादशी तिथि का समापन 6 मार्च को दिन में 11.47 बजे हो रहा है। पारण का समय 7 मार्च को सुबह 6 बजे के बाद होगा।
Amalaki Ekadashi: आमलकी एकादशी पर पूजा विधि
आमलकी एकादशी पर तड़के उठे और स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा एक चौकी पर स्थापित करें। उससे पहले चौकी को अच्छे से धो लें। उस पर लाल या पीला कपड़ा बिछा दें। साथ ही गंगा जल से उसे शुद्ध कर लें। प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करने के बाद हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर व्रत का संकल्प करें।
अब विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु को पुष्प, तुलसी पत्ते आदि चढ़ाएं। साथ ही मिष्ठान भी चढ़ाएं। इसके बाद विष्णु जी की आरती उतारें और उनकी प्रतिमा को भोग लगाएं। विष्णु जी की पूजा के बाद आंवले के वृक्ष की पूजा करें। शाम के समय भी विष्णु जी की पूजा करें और द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन कराएं। साथ ही यथाशक्ति दान भी दें। इसके बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करें। एकादशी के दिन उपवास या फलाहार करें। गलत चीजों से दूर रहें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
Amalaki Ekadashi: आमलकी एकादशी की व्रत कथा
आमलकी एकादशी की व्रत कथा के अनुसार एक बार वैदिश नाम के नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण के लोग रहते थे। सभी आनंद में थे और उनका जीवन अच्छा व्यतीत हो रहा था। उस नगर में हमेशा वेद ध्वनि गूंजती थी और सभी अच्छी प्रकृति के थे। उस नगर का राजा चैतरथ था। वह भी बहुत विद्वान और धर्म का पालन करने वाला था।
एक बार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी का मौका था। उस दिन राजा समेत पूरी प्रजा ये व्रत किया। सभी ने मंदिर में जाकर रात्रि जागरण भी किया। उसी रात को वहां एक बहेलिया आया। वह पापी और दुराचारी था। भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल वह बहेलिया मंदिर के कोने में छिप कर बैठ गया। वहां विष्णु भगवान और एकादशी के महत्व की कथा हो रही थी तो वह भी सुनने लगा। इस प्रकार उसने भी सारी रात जागकर बिता दी।
सुबह सब लोग अपने घर चले गए तो बहेलिया भी चला गया। उसने घर जाकर भोजन किया। कुछ समय के पश्चात उस बहेलिए की मृत्यु हो गई। आमलकी एकादशी के व्रत और जागरण के प्रताप से उसने अगले जन्म में राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया। वह अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी विष्णु भक्त बना।
कथा के अनुसार एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए गया। वह मार्ग भूल गया और दिशा ज्ञान न रहने के कारण उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद वहां कुछ दुष्ट लोग आ गए और राजा को मारने की कोशिश करने लगे।
उन्होंने राजा को मारने के लिए अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र उसके ऊपर फेंके। वे सब अस्त्र-शस्त्र राजा के शरीर पर गिरते ही नष्ट हो जाते। अब वे शस्त्र उन लोगों के अस्त्र-शस्त्र पर उलटा प्रहार करने लगे जिससे वे मूर्छित होकर गिरने लगे।
उसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई। वह स्त्री अत्यंत सुंदर थी लेकिन साथ ही उसकी आंखों से लाल-लाल अग्नि निकल रही थी जिससे वह काल के समान प्रतीत होती थी। वह स्त्री उन लोगों को मारने दौड़ी और थोड़ी ही देर में उसने सबको काल का ग्रास बना दिया।
राजा जब सोकर उठा तो उसने उन लोगों को मरा हुआ देखा और अचरज में पडड गया। वह सोचने लगा कि इस वन में उसका कौन हितैषी हो सकता है? उसी समय एक आकाशवाणी हुई, 'हे राजा! इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन तेरी सहायता कर सकता है।'
इस आकाशवाणी को सुनकर राजा पूरी बात समझ गया और खुशी-खुशी अपने राज्य में आ गया और एक बार फिर अपनी प्रजा की सेवा में जुट गया।