आमलकी एकदशी: विष्णु नहीं शिव जी को समर्पित है ये एकादशी, बनारस का है खास पर्व

By धीरज पाल | Published: February 26, 2018 09:30 AM2018-02-26T09:30:13+5:302018-02-26T09:35:25+5:30

होली के 6 दिन पहले रंगभरी एकादशी का त्यौहार मनाया जाता है। वाराणसी में इसका खास महत्व होता है।

aamlaki Ekadashi: date, time and significance of worshiping lord shiva in banaras | आमलकी एकदशी: विष्णु नहीं शिव जी को समर्पित है ये एकादशी, बनारस का है खास पर्व

आमलकी एकदशी: विष्णु नहीं शिव जी को समर्पित है ये एकादशी, बनारस का है खास पर्व

होली का त्योहार पूरे देश में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार होली 2 मार्च को पड़ रही है। होली से पहले और भी कई त्योहार पड़ते हैं जिनमें रंगभरी या आमलकी एकादशी एक है। यह होली से 5 दिन पहले पड़ता है। रंगभरी एकादशी की धूम उत्तर भारत में देखी जाती है। वैसे इसकी धूम उत्तर भारत के कई हिस्सों में दिखती है लेकिन वाराणसी में इसका खास महत्व दिखता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है। 

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ज्योतिष उत्थान संस्थान के संस्थापक पंडित दिवाकर त्रिपाठी ने बताया कि बहुत कम लोग जानते हैं कि इस दिन लोग भगवान शिव की उपासना और उपवास दोनों रखते हैं। रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहते हैं। वैसे भी सोमवार का दिन भगवान शिव का माना जाता है। इस दिन भक्त शिव के नाम का उपवास भी करते हैं। इस दिन भोले बाबा का पूजन कर अबीर गुलाल से अभिषेक किया जाता है।  दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो भगवान शिव की शादी से जुड़ा हुआ है। 

शादी के बाद पहली बार वाराणसी पधारे थे भगवान शिव

काशी विश्वनाथ वाराणसी की सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए लोग दूर-दराज से आते हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। धर्म की की नगरी काशी में फाल्गुन शुक्ल एकादशी को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शिव माता पार्वती के विवाह के बाद पहली बार काशी नगरी में पधारे थे। इस उपलक्ष्य में भगवना शिव के भक्त उनपर जमकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। 

इस दिन से वाराणसी में होली का पावन पर्व शुरू हो जाता है। इस दिन काशी विश्वनाथ को अच्छे से सजाया जाता है और उन्हें काशी के गलियों में घुमाया जाता है। चारों ओर से बाबा विश्वनाथ के पर चंदन, अबीर, गुलाल उड़ाते हैं और एक दूसरे को लगाते हैं। नजारा देखने लायक होता है, लोग भगवान शिव की भक्ति में लीन हो जाते हैं।

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आवंले के वृक्ष की किया जाता है पूजा

जैसा कि रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहते हैं । इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि इस दिन  आंवले के वृक्ष की पूजा करने से उत्तम स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस दिन सुबह उठकर स्नान के बाद आंवले के वृक्ष पर जल चढ़ाएं। साथ ही दीपक भी जलाएं। इसके अलावा वृक्ष की 9 या 27 बार परिक्रमा करनी चाहिए। 

आमलकी एकादशी के दिन ऐसे करें भगवान शिव को प्रसन्न 

इस दिन सुबह स्नान करके घर से एक पात्र में जल भरकर शिव मंदिर में जाएं। इसके साथ में अबीर गुलाल चन्दन और बेलपत्र भी ले जाएं। सबसे पहले आप शिवलिंग पर चन्दन लगाएं , फिर बेल पत्र और जल अर्पित करें। उसके बाद अबीर गुलाल शिव को अर्पित करें। 

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