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सचिन पायलटः क्या समर्थकों को राजस्थान मंत्रिमंडल में अपेक्षित जगह मिल पाएगी?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: September 4, 2020 20:54 IST

बगावत का नतीजा यह रहा कि न तो वे कांग्रेस अध्यक्ष रहे और न ही उप-मुख्यमंत्री. इस वक्त बड़ा सियासी सवाल यह है कि राजस्थान मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में सचिन पायलट के कितने समर्थकों को जगह मिल पाती है. सितारों के समीकरण पर भरोसा करें तो फिलहाल तो अपेक्षा के अनुरूप परिणाम मिलना मुश्किल है.

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ठळक मुद्देराजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी और वे उप-मुख्यमंत्री बने, लेकिन राजनीतिक धैर्य के अभाव में वे अनुभवी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बागी होकर उलझ गए.सितंबर- 2022 से उनकी सियासी स्थिति फिर से मजबूत होने लगेगी और 2023 से उनकी नई राजनीतिक पारी शुरू होगी.इन दो वर्षों के दौरान सियासी भ्रम की स्थिति बनी रहेगी और मिलेजुले नतीजे भी मिलते रहेंगे.

जयपुरः राजस्थान में सचिन पायलट ने सियासी मेहनत के दम पर अपनी खास जगह बनाई थी, जिसके नतीजे में बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पायलट सफल रहे, राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी और वे उप-मुख्यमंत्री बने, लेकिन राजनीतिक धैर्य के अभाव में वे अनुभवी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बागी होकर उलझ गए.

बगावत का नतीजा यह रहा कि न तो वे कांग्रेस अध्यक्ष रहे और न ही उप-मुख्यमंत्री. इस वक्त बड़ा सियासी सवाल यह है कि राजस्थान मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में सचिन पायलट के कितने समर्थकों को जगह मिल पाती है. सितारों के समीकरण पर भरोसा करें तो फिलहाल तो अपेक्षा के अनुरूप परिणाम मिलना मुश्किल है.

पायलट की सियासी गाड़ी पटरी पर आने में लंबा वक्त लगेगा

यही नहीं, स्वयं सचिन पायलट की सियासी गाड़ी पटरी पर आने में लंबा वक्त लगेगा. वर्ष 2021 और 2022 उनके सियासी धैर्य की परीक्षा लेंगे, लेकिन सितंबर- 2022 से उनकी सियासी स्थिति फिर से मजबूत होने लगेगी और 2023 से उनकी नई राजनीतिक पारी शुरू होगी. हालांकि, इन दो वर्षों के दौरान सियासी भ्रम की स्थिति बनी रहेगी और मिलेजुले नतीजे भी मिलते रहेंगे.

यह बात अलग है कि उनका सरकारी पक्ष भले ही कमजोर रहे, जनता के बीच कमजोर नहीं रहेंगे. सितंबर से दिसंबर 2020 के बीच अक्टूबर माह थोड़ी राहत प्रदान करेगा, लेकिन 2020-21 में राजस्थान से बाहर की कोई जिम्मेदारी मिल सकती है, मतलब- राजस्थान से उन्हें दूर करने के प्रयास हो सकते हैं.

पायलट के लिए सियासी फायदे का संदेश लेकर आएगा

विधानसभा चुनाव वर्ष- 2023 सचिन पायलट के लिए सियासी फायदे का संदेश लेकर आएगा. इससे पहले यदि उन्हें राजनीतिक तौर पर अपेक्षित महत्व नहीं मिला, तो वे कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं. उल्लेखनीय है कि सचिन पायलट के पिता केन्द्रीय मंत्री रहे राजेश पायलट कांग्रेस के दिग्गज नेता थे.

अपने समय में वे भी राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, वर्ष 2000 में एक सड़क दुर्घटना में राजेश पायलट का निधन हो गया. वर्ष 2002 में अपने पिता के जन्मदिन पर सचिन कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. उन्होंने बहुत कम समय में बड़ी उपलब्धियां हांसिल की, 26 साल की उम्र में सांसद, 32 साल में केन्द्रीय मंत्री, 34 की उम्र में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और 40 की उम्र में उप-मुख्यमंत्री बन गए.

वर्ष 2004 में सचिन चौदहवीं लोकसभा के लिए दौसा सीट से पहली बार सांसद चुने गये

वर्ष 2004 में सचिन चौदहवीं लोकसभा के लिए दौसा सीट से पहली बार सांसद चुने गये. केन्द्र में मंत्री रहे सचिन पायलट को वर्ष 2014 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया और उन्होंने संगठन को सक्रिय रखने में बहुत मेहनत की, उनके सक्रिय योगदान के कारण 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई और प्रदेश में अशोक गहलोत के नेतृत्व में सरकार बनी.

सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, किन्तु उन्हें उप-मुख्यमंत्री पद पर संतोष करना पड़ा. सबकुछ सामान्य हो जाने के बावजूद सीएम गहलोत से उनके सियासी रिश्ते असामान्य ही रहे, जिसके कारण उन्होंने अपने समर्थकों के साथ बगावत कर दी. लेकिन, बहुमत की गणित ने उनका साथ नहीं दिया और वे फिर से लौट आए. राजस्थान में मंत्रिमंडल का पुनर्गठन होने जा रहा है, इससे साफ होगा कि सचिन पायलट के सियासी भविष्य की दशा और दिशा क्या होगी?  

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