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राजस्थान में मुद्दा-मुक्त बीजेपी, केंद्र सरकार बनी गहलोत सरकार की सियासी ढाल?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: September 24, 2020 15:33 IST

बीजेपी का सियासी आक्रमण तो दूर, आमजन और किसान संगठनों को यह समझाना भारी पड़ रहा है कि यह उनके हित में है, जबकि इससे पहले किसानों की समस्याओं को लेकर बीजेपी प्रदेश सरकार को बार-बार घेर रही थी.

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ठळक मुद्देकिसानों की समस्याओं, बिजली के बिलों की परेशानी आदि को लेकर बीजेपी ने कुछ राजनीतिक हलचल दिखाई थी.कोरोना संकट से निपटने के लिए गहलोत सरकार की तारीफ तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही कई बार कर चुके हैं.दूसरा- विभिन्न राज्य सरकारों को केन्द्र की ओर से दी जा रही मदद को लेकर भी पक्षपात पूर्ण तौर-तरीका सामने आ रहा है.

जयपुरः राजस्थान में आपरेशन लोटस ढेर होने के बाद से ही प्रदेश बीजेपी में सियासी सुस्ती छाई हुई हैं. इसके बाद किसानों की समस्याओं, बिजली के बिलों की परेशानी आदि को लेकर बीजेपी ने कुछ राजनीतिक हलचल दिखाई थी, लेकिन विभिन्न मुद्दों को लेकर केन्द्र सरकार के फैसले और लापरवाही ही गहलोत सरकार की ढाल बन गई है.

सबसे ताजा मुद्दा किसान विधेयकों का है, जिसे लेकर बीजेपी का सियासी आक्रमण तो दूर, आमजन और किसान संगठनों को यह समझाना भारी पड़ रहा है कि यह उनके हित में है, जबकि इससे पहले किसानों की समस्याओं को लेकर बीजेपी प्रदेश सरकार को बार-बार घेर रही थी.

इसी तरह बिजली के बिलों को लेकर भी बीजेपी ने गहलोत सरकार को घेरने की कोशिश की थी, परन्तु बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि केन्द्र सरकार की ओर से जारी बिजली राहत पैकेज का पैसा कहां गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. कोरोना संकट को लेकर तो प्रदेश बीजेपी पहले दिन से ही राजनीतिक तौर पर बेबस नजर आ रही है, क्योंकि कोरोना संकट से निपटने के लिए गहलोत सरकार की तारीफ तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही कई बार कर चुके हैं.

बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है, परन्तु रोजगार तो दूर, कोरोना संकट के दौरान कई लोगों की नौकरियां ही चली गई हैं और इसके लिए केन्द्र सरकार पहले से ही युवाओं के निशाने पर है, इसलिए इस मुद्दे पर खामोशी ही बेहतर है. राजस्थान सरकार का आर्थिक ढांचा लगातार कमजोर हो रहा है और यही हालात रहे तो भविष्य में सरकारी कर्मचारियों को वेतन देना और अन्य आवश्यक प्रशासनिक, सरकारी खर्चे करना सरकार को भारी पड़ेगा, किन्तु यहां भी सियासी पेच है, एक तो प्रदेश के हक और हिस्से का पैसा केन्द्र सरकार, प्रदेश सरकार को नहीं दे रही है और दूसरा- विभिन्न राज्य सरकारों को केन्द्र की ओर से दी जा रही मदद को लेकर भी पक्षपात पूर्ण तौर-तरीका सामने आ रहा है.

इन सबसे हटकर सबसे बड़ा सवालिया निशान यह है कि सियासी तौर पर बीजेपी दो खेमों में बंटी है और जो खेमा प्रभावी है वह खामोश है और जो खेमा सक्रिय है, वह उतना प्रभावी नहीं है. सियासी सारांश यही है कि गहलोत सरकार को घेरने के लिए जो राजनीतिक चक्रव्यूह प्रदेश बीजेपी मजबूत कर सकती है, उसे तो केन्द्र सरकार ने ही जाने-अनजाने क्षतिग्रस्त कर दिया है, तो फिर मुद्दा-मुक्त बीजेपी, गहलोत सरकार पर सियासी निशाना कैसे साधेगी? 

टॅग्स :राजस्थानजयपुरकांग्रेसभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)नरेंद्र मोदीअशोक गहलोतवसुंधरा राजे
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