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MP चुनावः कांग्रेस ने जानबूझकर किया BSP, SP और गोंगपा से किनारा, इस चीज का सता रहा था डर

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Updated: October 11, 2018 05:43 IST

2013 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में बसपा, सपा और गोंगपा को तकरीबन सवा आठ फीसदी मत मिले थे। मध्यप्रदेश में बसपा को सबसे ज्यादा 6.29 फीसदी, तो सपा को 1.20 और गोंगपा को लगभग 1 फीसदी वोट पिछले विधानसभा में मिले थे।

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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने किसी अप्रत्याशित घटनाक्रम के तहत नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और गोडवाना गणतंत्र पार्टी से सीटों को लेकर समझौता नहीं किया। मध्यप्रदेश ही नहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कांग्रेस ने इसी कारण तीसरे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने से दूरी बनाई।

कांग्रेस पहले चाह रही थी कुछ ऐसा

विधानसभा के आगामी चुनाव को लेकर शुरूआती दौर में लग रहा था कि कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और जयस जैसे दलों के साथ गठबंधन में जाकर भाजपा का मुकाबला करेगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी लगातार यही कह रहे थे कि वोटों का बिखराव रोकने के लिए कांग्रेस, बसपा, सपा, गोंगपा और जयस जैसे संगठनों के साथ गठबंधन करना चाह रही है। 

कांग्रेस हो गई सतर्क

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जिन क्षणों में तीसरे दलों के साथ गठबंधन की वकालत कर रहे थे, उसी दौर में आरक्षण को लेकर उभरे आंदोलन एवं ध्रुवीकरण ने कांग्रेस को सतर्क कर दिया। इस आंदोलन के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने अपने तर्इं जो सर्वेक्षण करवाए उसमें एक बात उभर कर सामने आई कि अगर वह बसपा, सपा, गोंगपा और जयस के साथ गठबंधन कर चुनाव के मैदान में उतरेगी तो उसे अनारक्षित वर्गों का समर्थन नहीं मिल पाएगा। इसके साथ ही उसे 1996 में उत्तर प्रदेश में बसपा के साथ हुआ समझौता भी याद आ रहा था जिसके बाद वह उत्तरप्रदेश में खिसककर काफी नीचे चली गई।

गठबंधन के नाम पर ऐसे मांगी जा रही थीं सीटें 

दरअसल, मध्यप्रदेश में बसपा लगभग 50 सीटें गठबंधन के नाम पर मांग रही थी तो सपा की एक दर्जन सीटों पर दावेदारी थी। वहीं गोंगपा और जयस भी 30-40 सीटों पर दावेदारी कर रहे थे ऐसे में अगर 230 में से उसके पास चुनावी मैदान में उतरने के लिए 130-40 सीटें ही बच रही थीं। जाहिर है इतनी कम सीटों पर चुनाव लड़ने की स्थिति में उसे उन क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के पलायन अथवा निष्क्रिय होने का सामने करना पड़ता। जिन सीटों को वह गठबंधन में दे रही थी। 

इस वजह से किया अकेले चुनाव लड़ने का फैसला

एक वरिष्ठ कांग्रेस ने अनाम रहने की शर्त पर बताया कि पार्टी के द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में कार्यकर्ताओं और नेताओं ने कहा था कि गठबंधन के लिए सीट छोडे़ जाने पर उनमें से अधिकांश लोग दूसरे दलों की तरफ चले जाएंगे। ऐसी स्थिति मैदान खाली करने जैसी होती जिसका खामियाजा कांग्रेस को विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ता। कांग्रेस के भीतरी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी नेतृत्व को यह बात समझ आ गई कि विधानसभा चुनाव में समझौता करने के बाद बसपा, सपा, गोंगपा और जयस लोकसभा चुनाव में भी बड़ी संख्या में सीटें मांग सकते थे। ऐसे में उसने विधानसभा चुनाव में अकेले ही उतरने का फैसला किया है। अब कांग्रेस नेतृत्व की रणनीति है कि किसी तरह वोटों के बिखराव को रोका जाए। 

ये है वोटों का आंकड़ा

2013 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में बसपा, सपा और गोंगपा को तकरीबन सवा आठ फीसदी मत मिले थे। मध्यप्रदेश में बसपा को सबसे ज्यादा 6.29 फीसदी, तो सपा को 1.20 और गोंगपा को लगभग 1 फीसदी वोट पिछले विधानसभा में मिले थे। 2013 में इन तीनों दलों में से सिर्फ बसपा के ही 4 प्रत्याशी जीत पाए थे। सपा और गोगपा का कोई भी प्रत्याशी 2013 के चुनाव में विधानसभा नहीं पहुंच पाया था। पिछले चुनाव के आधार पर रणनीति तैयार करते हुए कांग्रेस, बसपा, सपा और गोंगपा के प्रभाव वाले इलाकों में जातिगत समीकरणों के अनुरूप ऐसे प्रत्याशी खड़े करना चाह रही है जिससे कि इन दलों की भूमिका को सीमित करने के साथ ही मतों के बिखराव को रोका जा सके।(मध्य प्रदेश से शिवअनुराग पटैरया की रिपोर्ट)

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