लोकसभा चुनाव में हार-जीत की सियासी चाबी वसुंधरा राजे के पास?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 20, 2018 07:29 PM2018-12-20T19:29:04+5:302018-12-20T19:29:04+5:30

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का सियासी इम्तिहान समाप्त हो चुका है और आगे आम चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी की राजनीतिक परीक्षा है।

Lok Sabha election 2019 Rajasthan former minister Vasundhara Raje importance | लोकसभा चुनाव में हार-जीत की सियासी चाबी वसुंधरा राजे के पास?

लोकसभा चुनाव में हार-जीत की सियासी चाबी वसुंधरा राजे के पास?

राजस्थान में विस चुनाव के बाद जहां सीएम अशोक गहलोत ने सत्ता की कमान संभाल ली है और विभिन्न निर्णय लेना प्रारंभ कर दिया है, तो उधर भाजपा ने सड़कों पर संघर्ष शुरू कर दिया है, दोनों की सक्रि यता आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर है। पांच वर्षों के बाद बड़ा सियासी बदलाव आया है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों दलों की भूमिकाएं बदल गई हैं। विस का फैसला हो चुका है, लेकिन लोकसभा की चुनौती बरकरार है। पिछली बार भाजपा ने राजस्थान की 25 में से 25 सीटें जीत लीं थीं, जब प्रदेश में 163 एमएलए के साथ वसुंधरा राजे की सरकार थी।

नई सियासी तस्वीर में जहां भाजपा को 25 सीटें बचानी हैं, वहीं कांग्रेस को अधिकाधिक सीटें हासिल करनी हैं। वर्तमान विस चुनाव परिणाम पर भरोसा करें तो वोट प्रतिशत के हिसाब से इस वक्त कांग्रेस और भाजपा, दोनों बराबरी पर खड़ी हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब अगले लोस चुनाव में हार-जीत की सियासी चाबी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पास हैं। उनकी सक्रि यता भाजपा की सीटें बढ़ा सकती है, तो उदासीनता सीटें घटा सकती है।

वर्ष 2013 में विस चुनाव जीतने के बाद राजे ने 2014 के लोस चुनाव में पूरी ताकत लगाई थी और भाजपा को 25 में से 25 सीटें मिली थी, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही देश और प्रदेश के नेतृत्व के बीच नया सियासी अध्याय शुरू हो गया। राजे की टीम को केंद्र में पीएम मोदी टीम ने कुछ खास महत्व नहीं दिया। इसके बाद केंद्र और प्रदेश नेतृत्व के बीच कैसे सियासी संबंध रहे हैं, यह सबके सामने है। राजस्थान का उपचुनाव हारने के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने राजे के राज पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया था, इसके परिणाम में राजे के प्रमुख सहयोगी तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी की कुर्सी गई। 

केंद्रीय नेतृत्व यहां अपनी पसंद का प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहता था, लेकिन राजे ने इसका विरोध किया। कई दिनों तक प्रदेशाध्यक्ष का निर्णय अटका रहा, लेकिन जहां कर्नाटक की हार ने केंद्र को कमजोर कर दिया, वहीं विस चुनाव की आहट ने राजे को भी रोक दिया, जिसके परिणाम में दोनों पक्षों की सहमति से नए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति हो गई। विस चुनाव नतीजे आने के बाद राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि टिकट वितरण में ध्यान रखा जाता तो शायद इतने बागी खड़े नहीं होते और नतीजों की सियासी तस्वीर कुछ और होती।

उदासीनता दिखातीं हैं तो सीटों का बड़ा नुकसान होगा

बहरहाल, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का सियासी इम्तिहान समाप्त हो चुका है और आगे आम चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी की राजनीतिक परीक्षा है। यदि राजे लोकसभा चुनाव के दौरान सक्रि य सहयोग जारी रखती हैं तो भाजपा की आधे से अधिक सीटें बच सकती हैं और यदि उदासीनता दिखातीं हैं तो भाजपा को सीटों का बड़ा नुकसान होगा। लोस चुनावी नतीजों से ही साफ हो पाएगा कि केंद्र और प्रदेश के सियासी संबंधों की राजनीतिक कहानियों में कितनी सच्चाई थी!

Web Title: Lok Sabha election 2019 Rajasthan former minister Vasundhara Raje importance

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