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किसान आंदोलन को शांत करेगी सरकार, यूपी चुनाव से पहले किसानों को दे सकती है ये खुशखबरी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 23, 2021 14:51 IST

केन्द्र सरकार की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी जामा पहनाने के संकेत मिल रहे हैं। बताया जा रहा है कि भाजपा के किसान छवि वाले नेताओं ने गन्ना मूल्य बढ़ाने और एमएसपी पर कानून बनाने का सुझाव हाईकमान को दिया है।

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ठळक मुद्देकेन्द्र की तरफ से एमएसपी को कानूनी जामा पहनाने के संकेत मिल रहे हैं।भाजपा के किसान छवि वाले नेताओं ने हाईकमान को इस संबंध में सुझाव दिए हैं।27 सितंबर को संयुक्त किसान मोर्चा का भारत बंद का आवाह्न

मेरठ:किसान आंदोलन को शांत करने और यूपी सहित अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव से पहले केन्द्र सरकार किसानों को बड़ी खुशखबरी दे सकती है। दरअसल, केन्द्र की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी जामा पहनाने के संकेत मिल रहे हैं। बताया जा रहा है कि भाजपा के किसान छवि वाले नेताओं ने गन्ना मूल्य बढ़ाने और एमएसपी पर कानून बनाने का सुझाव हाईकमान को दिया है। महत्वपूर्ण बात ये है कि आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ ने भी एमएसपी पर गारंटी कानून बनाए जाने का सुझाव दिया है। 

चुनाव और किसान आंदोलन का दबाव

किसान आंदोलन के दबाव और उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर एवं गोवा में होने वाले चुनाव को देखते हुए केन्द्र सरकार एमएसपी पर बड़ा फैसला ले सकती है। वहीं किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी कानून बनाने की बजाय सी2 प्लस 50 प्रतिशत की मांग कर रहे हैं। किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग द्वारा दिए गए सी2 फार्मूले को ही मान्य करेंगे। 

क्या है सी2 फॉर्मूला?

सी2 एक प्रकार का एमएसपी से जुड़ा फॉर्मूला है, जिससे एमएसपी का आंकलन किया जाता है। इस फॉर्मूले को स्वामीनाथ आयोग ने दिया था। इसके तहत खेती के व्यावसायिक मॉडल को अपनाया गया है। जिसके हिसाब से समर्थन मूल्य में कुल नकद लागत और किसान के पारिवारिक पारिश्रमिक के साथ-साथ खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल होता है।

किसान नेताओं का भारत बंद का आवाह्न

संयुक्त किसान मोर्चा ने तीन कृषि कानूनी की वापसी और एमएसपी कानून बनाने की मांग को लेकर 27 सितंबर को भारत बंद का आवाह्न किया है। पिछले कई महीनों से सरकार द्वारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों को लगातार किसान आंदोलन के नेताओं द्वारा इन्हें काले कानून बताया जा रहा है और वे इन कानूनों को रद्द करने मांग कर रहे हैं। 

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