राजस्थान सियासी संग्रामः सरकार गिराना मुश्किल, लेकिन नई बनाना तो और भी मुश्किल!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: August 1, 2020 10:01 PM2020-08-01T22:01:32+5:302020-08-01T22:02:27+5:30
सीएम अशोक गहलोत के समक्ष केवल एक ही चुनौती है कि उनके पास जो बहुमत है, उसे बचाए रखना और विधानसभा में बहुमत साबित करना, ताकि छह महीने के लिए सियासी सुकून मिल जाए. पायलट खेमा सीएम गहलोत को हटाना चाहता है और इसमें उसे बीजेपी का सियासी समर्थन मिलने की पूरी-पूरी संभावना है.
जयपुरः राजस्थान में सियासी जंग जारी है. एक खेमा है सीएम गहलोत का, जिसे सरकार बचानी है, दूसरा खेमा है सचिन पायलट का जिसे सरकार बदलनी है और तीसरा खेमा है बीजेपी का जिसे सरकार गिरानी है. एक चौथा अप्रत्यक्ष-अघोषित खेमा है पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का, जो फिलहाल तो खामोशी से सारा सियासी तमाशा देख रहीं हैं.
सीएम अशोक गहलोत के समक्ष केवल एक ही चुनौती है कि उनके पास जो बहुमत है, उसे बचाए रखना और विधानसभा में बहुमत साबित करना, ताकि छह महीने के लिए सियासी सुकून मिल जाए. पायलट खेमा सीएम गहलोत को हटाना चाहता है और इसमें उसे बीजेपी का सियासी समर्थन मिलने की पूरी-पूरी संभावना है.
राजनीतिक रस्साकशी के इस खेल का पूरा परिणाम दो-चार विधायकों की संख्या पर निर्भर है. सीएम गहलोत खेमे के दो-चार विधायक कम हुए तो सरकार गई और पायलट खेमे के दो-चार एमएलए पाॅलिटिकल पलटी मार गए, तो सीएम गहलोत के विरोधियों के सारे सियासी सपने ढेर हो जाएंगे. हालांकि, विधायकों का संख्याबल देखें तो सीएम गहलोत सरकार को गिराना जरा मुश्किल है, परन्तु यदि सरकार गिर भी गई तो नई सरकार बनना तो बेहद मुश्किल है.
सरकार गिरने के बाद सबसे बड़ा सवाल होगा कि मुख्यमंत्री कौन?
राजस्थान में बीजेपी अगर सरकार बनाती है, तो समर्थकों के हिसाब से सबसे मजबूत दावा वसुंधरा राजे का बनता है, लेकिन उनको मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व शायद ही राजी होगा.
दावा तो सचिन पायलट का भी तगड़ा है, क्योंकि उप-मुख्यमंत्री तो वे पहले ही थे, अब तो उनके लिए केवल मुख्यमंत्री का पद ही बचता है. परन्तु, बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता, जिनमें से कई सीएम पद के दावेदार भी हैं, इसके लिए तैयार नहीं होंगे.
सबसे बड़ा प्रश्न तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को लेकर है. उन्होंने इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम के दौरान बीजेपी के सियासी अभियान में किसी भी तरह की दिलचस्पी नहीं दिखाई है. यही नहीं, जिन सचिन पायलट ने वसुंधरा राजे के कार्यकाल में पांच साल तक राजे सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया हो उन्हें, वे मुख्यमंत्री तो दूर, बीजेपी सदस्य के रूप में भी शायद ही स्वीकार करेंगी. सियासी सारांश यही है कि- राजस्थान में सरकार गिराना तो मुश्किल है ही, सरकार गिराकर नई सरकार बनाना तो और भी मुश्किल है!