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बिहार विधान परिषद चुनावः नौ सीट पर मतदान, 6 जुलाई को पड़ेंगे वोट, अभी 29 सीटें खाली, सभापति और उपसभापति पद भी रिक्त

By एस पी सिन्हा | Updated: June 15, 2020 18:36 IST

भारतीय निर्वाचन आयोग ने सोमवार को बिहार विधान परिषद की रिक्त नौ सीटों के लिए छह जुलाई को चुनाव की घोषणा की है. निर्वाचन आयोग के अनुसार 18 जून से नामांकन शुरू होगा जो 25 जून तक चलेगा. नामांकन की जांच 26 जून को होगी और नाम वापसी की तिथि 29 जून तय की गई है. 

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ठळक मुद्देचुनाव आयोग के मुताबिक, रिक्त पदों के लिए 18 जून, गुरुवार को अधिसूचना जारी होगी. इसके बाद नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी.नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 25 जून, गुरुवार होगी. नामांकन पत्रों की जांच 26 जून को होगी।नामांकन वापसी की अंतिम तिथि 29 जून होगी. नौ रिक्त पदों के लिए छह जुलाई, सोमवार को सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक मतदान होगा.

पटनाः कोरोना संकट के बीच बिहार विधान परिषद की 9 सीटों के लिए होनेवाले चुनाव की घोषणा कर दी गई है. इस तरह बिहार विधानमंडल के मॉनसून सत्र से पहले विधान परिषद के रिक्त पदों को भरने की कवायद भारतीय निर्वाचन आयोग ने शुरू कर दी है.

भारतीय निर्वाचन आयोग ने सोमवार को बिहार विधान परिषद की रिक्त नौ सीटों के लिए छह जुलाई को चुनाव की घोषणा की है. निर्वाचन आयोग के अनुसार 18 जून से नामांकन शुरू होगा जो 25 जून तक चलेगा. नामांकन की जांच 26 जून को होगी और नाम वापसी की तिथि 29 जून तय की गई है. 

चुनाव आयोग के मुताबिक, रिक्त पदों के लिए 18 जून, गुरुवार को अधिसूचना जारी होगी. इसके बाद नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 25 जून, गुरुवार होगी. नामांकन पत्रों की जांच 26 जून को होगी और नामांकन वापसी की अंतिम तिथि 29 जून होगी. नौ रिक्त पदों के लिए छह जुलाई, सोमवार को सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक मतदान होगा.

बिहार विधान परिषद की 29 सीटें खाली पड़ी हैं

वहीं, शाम पांच बजे मतों की गिनती की जायेगी. आठ जुलाई, बुधवार के पहले चुनाव की सभी प्रक्रिया पूरी कर ली जायेगी. विधान परिषद की रिक्त सीटों पर जल्द चुनाव कराये जाने को लेकर राज्य सरकार ने चुनाव आयोग से अनुरोध किया था. संसदीय कार्य विभाग ने इस संबंध में मुख्य निर्वाचन कार्यालय को पत्र भेज कर कहा था कि बिहार विधान परिषद की 29 सीटें खाली पड़ी हैं.

लॉकडाउन में ढील के बाद महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी चुनाव कराया जा सकता है. 75 सदस्यीय बिहार विधान परिषद की 29 सीटें रिक्त हैं. हालांकि, इनमें मनोनयन कोटे की 12 सीटें भी शामिल हैं. विधान परिषद में सभापति और उपसभापति के पद भी वर्तमान में रिक्त हैं.

मनोनयन कोटे के 10 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद ऊपरी सदन में जदयू के सदस्यों की संख्या 15 रह गयी है, जबकि सहयोगी भाजपा के 17 सदस्य हैं. विधानसभा कोटे की खाली नौ सीटों में पांच पर ही एनडीए की जीत की उम्मीद है. इन पांच सीटों में जदयू को तीन और भाजपा को दो सीटें मिलने की संभावना है.

विधानसभा कोटे से 9 सीटों का कार्यकाल गत 6 मई को ही समाप्त हो चुका है

विधानसभा कोटे से 9 सीटों का कार्यकाल गत 6 मई को ही समाप्त हो चुका है. उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी के कारण चुनाव आयोग ने विधान परिषद की खाली सीटों के लिए चुनाव को अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया था. चुनाव आयोग के घोषणा के मुताबिक जिन विधान परिषद के नौ सदस्यों का कार्यकाल 6 मई को खत्म हुआ था उनमें नीतीश सरकार में जदयू कोटे के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी समेत जदयू कोटे से विधान परिषद सदस्य और विधानपरिषद के सभापति हारून रशीद हैं.

इसके अलावा पूर्व मंत्री पीके शाही, सतीश कुमार, हीरा प्रसाद बिंद और सोनेलाल मेहता की सीट भी खाली हो गई है. ये सभी जदयू के नेता विधानसभा कोटे से विधानपरिषद के सदस्य रहे हैं. वहीं, भाजपा की तरफ से पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी संजय प्रकाश मयूख, राधा मोहन शर्मा और कृष्ण कुमार सिंह की सीट खाली हुई है. बिहार विधान परिषद के 10 सदस्यों का कार्यकाल 23 मई को समाप्त हो गया था. सभी सदस्य मनोआनयन कोटे से थे. बिहार विधान परिषद के इतिहास में यह पहली बार हुआ जब कुल संख्या में एक तिहाई से अधिक सीटें खाली हो गईं. 

परिषद के 75 सदस्यीय इस सदन में कुल 29 सदस्यों का कार्यकाल 23 मई को समाप्त हो गया

परिषद के 75 सदस्यीय इस सदन में कुल 29 सदस्यों का कार्यकाल 23 मई को समाप्त हो गया. 23 मई को जिन सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हुआ, उसमें रामलषण राम रमण, राणा गंगेश्वर सिंह, जावेद इकबाल अंसारी, शिवप्रसन्न यादव, संजय कुमार सिंह उर्फ गांधीजी, रामवचन राय, ललन सर्राफ, रणबीर नंदन, विजय कुमार मिश्रा औऱ रामचन्द्र भारती शामिल हैं.

बताया जाता है कि विधान परिषद में श्रीकृष्ण सिंह के कार्यकाल में पहली बार 1958-59 में विधान परिषद बिना सभापति और उप सभापति के हुआ था. इसके बाद 1970 और 80 के दशक में भी ऐसा हो चुका है. चूंकि सभापति के नहीं होने से कोई संवैधानिक संकट नहीं है, इसलिए किसी को इसका प्रभार नही दिया जाता.

उधर, सरकार में शामिल दो मंत्री नीरज कुमार और अशोक चौधरी भी सदन के सदस्य के बगैर ही सरकार में शामिल हैं. हालांकि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी सदन का सदस्य रहे बगैर भी 6 महीने तक मंत्री रहा जा सकता है. इस कारण इन दोनों मंत्रियों पर कोई संकट नहीं है.

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