बिहार में टूटी 26 साल पुरानी परंपरा, जदयू, राजद, भाजपा और कांग्रेस ने दही-चूड़ा भोज से बनाई दूरी, जानिए कारण

By एस पी सिन्हा | Published: January 14, 2021 07:42 PM2021-01-14T19:42:01+5:302021-01-14T19:43:34+5:30

कोरोना महामारी के चलते दही-चूड़ा परंपरा नहीं निभाई, लेकिन राजद नेता तेज प्रताप यादव अपनी मां राबड़ी देवी से आशीर्वाद लेने के बाद लोगों को दही-चूड़ा बांटते नजर आए.

bihar makar sankranti 26 year old tradition rjd jdu congress bjp not organize dahi chuda patna | बिहार में टूटी 26 साल पुरानी परंपरा, जदयू, राजद, भाजपा और कांग्रेस ने दही-चूड़ा भोज से बनाई दूरी, जानिए कारण

सत्तापक्ष हो या विपक्ष दोनों में किसी भी दलों ने दही-चूड़ा भोज का आयोजन नहीं किया. (file photo)

Highlightsबिहार की राजनीति में मकर संक्रांति के दौरान दही-चूड़ा का भोज देने की परंपरा वर्षों पुरानी है.लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी तथा जदयू के वरिष्‍ठ नेता बशिष्ठ नारायण सिंह के भोज की कमी खल रही है. तिलकुट और दही-चूड़ा के बहाने नेताओं के घर हजारों लोगों की भीड़ इस बार नहीं दिखी.

पटनाः बिहार में दही-चूड़ा भोज की राजनीति की चली आ रही 26 साल पुरानी परंपरा इसबार कोरोना के कहर ने तोड़वा दी है.

कोरोना संक्रमण के इस दौर में इस बार सियासी गलियारों में मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा भोज का आयोजन नहीं हुआ. साल के पहले बडे़ पर्व मकर संक्रांति के दिन बिहार का सियासी माहौल बदला-बदला नजर आया. बिहार की राजनीति में मकर संक्रांति के दौरान दही-चूड़ा का भोज देने की परंपरा वर्षों पुरानी है.

मकर संक्रांति के मौके पर यहां प्रतिवर्ष सियासी दही-चूड़ा भोज का आयोजन होता आया है. लेकिन इसबार किसी भी राजनीतिक दलों के यहां गहमागहमी नही देखी गई. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी तथा जदयू के वरिष्‍ठ नेता बशिष्ठ नारायण सिंह के भोज की कमी खल रही है. हर साल मनाए जाने वाले दही-चूड़ा के भोज से कई दलों में मिठास घुलती रही है तो कई दलों में आलू-दम के स्वाद से तीखापन भी तय कर जाता है. कोरोना संकट के कारण तिलकुट और दही-चूड़ा के बहाने नेताओं के घर हजारों लोगों की भीड़ इस बार नहीं दिखी.

दही-चूड़ा भोज के बहाने सियासी खिचड़ी भी खूब पकती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. सत्तापक्ष हो या विपक्ष दोनों में किसी भी दलों ने दही-चूड़ा भोज का आयोजन नहीं किया. हालांकि व्यक्तिगत तौर पर कई नेताओं ने दही-चूड़ा भोज का आयोजन किया.

बिहार में दही-चूड़ा भोज की शुरुआत लालू प्रसाद यादव ने 1994-95 में की थी. तब वे मुख्यमंत्री थे. लालू प्रसाद यादव ने आम लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए दही-चूड़ा भोज का आयोजन शुरू किया था. इसकी खूब चर्चा हुई. फिर यह राजद की परंपरा बन गई. चारा घोटाला में लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद भी पार्टी ने यह परंपरा कायम रखी.

हालांकि, इस बार न तो राजद कार्यालय में और न ही राबड़ी देवी आवास पर दही-चूडा भोज का आयोजन हो सका. लेकिन राजद ने अपने विधायकों और पार्टी के अन्य नेताओं को गरीबों को दही-चूडा खिलाने का निर्देश जारी किया था. ऐसे में राबड़ी आवास पर सूना पड़ा दिखा. जबकि लालू की उपस्थिति में यहां हर साल बड़ा आयोजन होता रहा है.

लेकिन यह लगातार चौथा साल है जब मकर संक्रांति के मौके पर यहां सन्नाटा है और सुरक्षाकर्मियों के अलावा शायद ही कोई नजर आ रहा है. इस बीच लालू प्रसाद यादव के बडे़ बेटे तेज प्रताप यादव अपनी मां राबड़ी देवी से मिलने पहुंचे और मकर संक्रांति के मौके पर उनका आशीर्वाद लिया. वहीं, कोरोना की वजह से जदयू ने भी संक्रांति पर भोज आयोजित नहीं किया. पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष बशिष्ठ नारायण सिंह ने औपचारिक रूप से संदेश जारी कर इसकी जानकारी दे दी थी.

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