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विधान सभा चुनाव:  सफल मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, असफल प्रधानमंत्री क्यों बनते जा रहे हैं?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 9, 2018 05:32 IST

वर्ष 2014 में भाजपा में ही नरेन्द्र मोदी समेत करीब आधा दर्जन वरिष्ठ नेता बतौर पीएम उम्मीदवार चर्चा में थे, लेकिन गुजरात में उनकी सफल पारी ने उन्हें सबसे आगे खड़ा कर दिया।उन्हें अकल्पनीय बहुमत मिला और वे प्रधानमंत्री बने।

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ठळक मुद्देपीएम मोदी इन साढ़े चार साल में कभी यह साबित नहीं कर पाए कि वे देश के तमाम राजनेताओं से एकदम अलग हैंमोदी मैजिक खत्म होने का ही परिणाम है कि विस चुनाव में कांग्रेस, भाजपा की टक्कर में आ कर खड़ी हो गई है।

गुजरात में लंबे समय तक सफल रहने वाले मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी केन्द्र की सत्ता में आने के बाद वैसा जादू क्यों नहीं दिखा पा रहे हैं? यह सवाल राजनीतिक जानकारों के लिए उलझन बना हुआ है। वर्ष 2014 में भाजपा में ही नरेन्द्र मोदी समेत करीब आधा दर्जन वरिष्ठ नेता बतौर पीएम उम्मीदवार चर्चा में थे, लेकिन गुजरात में उनकी सफल पारी ने उन्हें सबसे आगे खड़ा कर दिया।उन्हें अकल्पनीय बहुमत मिला और वे प्रधानमंत्री बने। उनके सामने तीन प्रमुख कार्य थे- देशहित के कार्य, जनहित के कार्य और दलहित के कार्य। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक बार तो भाजपा संगठन में ही नहीं, विपक्ष में भी सियासी खामोशी छा गई थी।

भाजपा में बैठे पीएम मोदी के मौन विरोधियों को मुखर होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा

कहते हैं, राजनीति नहीं करना सबसे अच्छी राजनीति होती है, लेकिन सियासी जंग जीत जाने के बावजूद उन्होंने प्रत्यक्ष-परोक्ष राजनीति जारी रखी जिसके नतीजे में धीरे-धीरे भाजपा में ही उनके विरोधी बढ़ते गए तो जनहित के कार्यों में देरी ने अच्छे दिन का सपना तोड़ दिया। यदि पांच राज्यों के विस चुनाव के नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं आए तो भाजपा में बैठे पीएम मोदी के मौन विरोधियों को मुखर होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

पीएम मोदी टीम ने देशहित के कार्य किए, दलहित के कार्य भी किए और भाजपा संगठन के आर्थिक विकास पर भी खास ध्यान दिया, परन्तु जनहित के कार्यों के मामले में कुछ खास नहीं हो पाया, बल्कि पीएम मोदी सरकार के नोटबंदी, जीएसटी, गैस-पेट्रोल के रेट जैसे निर्णयों ने भाजपा के सबसे बड़े वोट बैंक- शहरी मतदाता और सामान्य वर्ग को ही नाराज कर दिया।

नाराजगी ही पीएम मोदी के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है

अब यह नाराजगी ही पीएम मोदी के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है। जिन्होंने उन्हें 2014 के चुनाव में समर्थन दिया था, उनको नजरअंदाज कर दूसरे क्षेत्रों में विस्तार की महत्वकांक्षा के नतीजे में नए मतदाता तो जुड़े नहीं, पुराने समर्थक जरूर दूर हो गए।अनुभव ही अमृत होता है और अनुभव ही जहर भी होता है। देश में हर क्षेत्र के मतदाताओं की सोच और जरूरतें अलग-अलग हैं, लेकिन पीएम मोदी ने जो गुजरातीकरण किया, उसका कई जगहों पर फायदे के बजाय नुकसान हो गया।

जिस बहुमत के साथ केन्द्र में भाजपा सरकार आई थी, पीएम मोदी चाहते तो बतौर सर्वोच्च सम्मान, भाजपा को बुलंदियों पर ले जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति बना सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, बल्कि उनके साथ जिस तरह का सियासी व्यवहार किया गया, उसकी चर्चा आमजन में भी रही।

पीएम मोदी टीम ने कांग्रेस और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर जिस तरह के सियासी वार किए, जिस तरह से कांग्रेस का इतिहास बदलने की कोशिश की उसका शुरूआत में तो अच्छा असर रहा, किन्तु इसकी अति होना जनता को रास नहीं आया।

उपलब्धियों के अभाव में अपनी कमियों को, कमजोरियों को ढकने के लिए कांग्रेस के सत्तर सालों पर बार-बार सवाल उठाना भी जनता की समझ से परे था। कांग्रेस मुक्त भारत की कोशिश में भाजपा के ही कदम लड़खड़ा गए!

यदि 2019 में भाजपा को 272 सीटें नहीं मिलती हैं तो गठबंधन की सरकार बनेगी

सबसे बड़ी परेशानी यह रही कि पीएम मोदी इन साढ़े चार साल में कभी यह साबित नहीं कर पाए कि वे देश के तमाम राजनेताओं से एकदम अलग हैं, जबकि जनता ने उन्हें एक श्रेष्ठ और आदर्श नेता मान कर मत और समर्थन दिया था।

मोदी मैजिक खत्म होने का ही परिणाम है कि विस चुनाव में कांग्रेस, भाजपा की टक्कर में आ कर खड़ी हो गई है।अब पीएम मोदी टीम के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या 2019 के चुनाव में भाजपा एकल बहुमत- 272 सीट, प्राप्त कर पाएगी? गुजरात विस चुनाव से लेकर अब तक जो बदलाव आया है, विभिन्न चुनावों के जो नतीजे आए हैं, उनको देख कर तो नहीं लगता कि भाजपा अपने प्रभाव वाले राज्यों में 2014 दोहरा सकेगी।

यदि 2019 में भाजपा को 272 सीटें नहीं मिलती हैं तो गठबंधन की सरकार बनेगी और जिस तरह की पीएम मोदी की सियासी प्रकृति है, गठबंधन सरकार चलाना उनके लिए आसान नहीं है। यही नहीं, गठबंधन के सहयोगी दल पीएम मोदी का नेतृत्व स्वीकार कर लें, इस पर भी प्रश्नचिन्ह है।

पीएम मोदी टीम सियासी प्रबंधन में एक्सपर्ट जरूर है, लेकिन अब अपने ही दल में बैठे विरोधियों का सक्रिय समर्थन जुटाना, उसके लिए आसान नहीं है। सीएम वसुंधरा राजे, सीएम शिवराज सिंह चौहान आदि की सियासी परीक्षा का समय गुजर चुका है, नतीजे जो भी हों, 2019 में प्रादेशिक नेताओं का कितना सक्रिय सहयोग और समर्थन पीएम मोदी टीम को मिलता है, यह तो 2019 के चुनावी नतीजों के बाद ही साफ होगा!

जाने-अनजाने, इन चार सालों में जो भी सियासी घटनाक्रम रहे हैं, जो भी निर्णय हुए हैं, वे न तो नेताओं को संतुष्ट कर पा रहे हैं और न ही जनता को समझ आ रहे हैं, यही वजह है कि गुजरात के सफल मुख्यमंत्री- नरेन्द्र मोदी, असफल प्रधानमंत्री साबित होते जा रहे हैं!

टॅग्स :विधानसभा चुनावनरेंद्र मोदीभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
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