पुरी की सड़कों पर भक्ति का रंग, श्री जगन्नाथ रथयात्रा के उत्सव में डूबा धरती का 'बैकुंठ'

By संदीप दाहिमा | Published: July 4, 2019 12:06 PM2019-07-04T12:06:15+5:302019-07-04T12:06:15+5:30

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ओडिशा का पुरी शहर भगवान जगन्नाथ की भक्ति में डूब गया है। 4 जुलाई से शुरू हो रहे रथयात्रा में हिस्सा लेने के लिए लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचे हैं।

पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने पुरी में पुरुषोतम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था।

रथयात्रा के मौके पर पुरी की सड़कों पर विभिन्न वेश-भूषा में भक्त जुटे हैं। ऐसी मान्यता है कि श्री जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के रथ खींचने से पुण्य मिलता है। तमाम भक्तों के बीच इसकी होड़ भी देखने को मिलती है।

इस आयोजन के तहत भगवान श्री जगन्नाथ सहित बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रथ पर सवार किया जाता है और नगर का भ्रमण कराते हुए उन्हें उनकी मौसी गुंडीचा देवी के मंदिर तक ले जाया जाता है। श्री जगन्नाथ यहां एक हफ्ते के लिए रहते हैं।

इस विशेष आयोजन के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये हैं। एक सप्ताह चलने वाले इस महोत्सव के दौरान पुरी में करीब दो लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है जो पिछले साल से 30 प्रतिशत से ज्यादा है।

आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को हर साल होने वाले इस विशेष आयोजन का समापन शुक्ल पक्ष के 11वें दिन वापस भगवान जगन्नाथ के अपने घर लौटने पर होता है। इसके लिए पिछले कई महीनों से रथ बनाने का भी काम शुरू हो जाता है।

रथ का निर्माण वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होता है। इसमें धातु की बजाय लकड़ी के टुकड़ों का ही इस्तेमाल किया जाता है। किसकी मूर्ति कितनी बड़ी होगी, यह भी तय होता है।

इस आयोजन के मौके पर सुरक्षा इंतजामों को बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। हर साल होने वाले इस आयोजन का हिंदू मान्यताओं में विशेष महत्व है। ऐसा कहते हैं कि जगन्नाथ रथयात्रा में रथ को खींचने से मुक्ति मिल जाती है।

पुरी के अलावा देश भर के दूसरे हिस्सों में भी प्रतीक के तौर पर रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। हालांकि, सबसे अधिक महत्व पुरी की रथयात्रा का ही है। हर साल होने वाले इस विशेष आयोजन का समापन शुक्ल पक्ष के 11वें दिन वापस भगवान जगन्नाथ के अपने घर लौटने पर होता है।