2001 से 2018 तक कितना बदला मैरी कॉम का खेल, बताया- कैसे बनीं 'बेहुनर' से 'बेहतरीन रणनीतिकार'

By भाषा | Published: November 26, 2018 03:14 PM2018-11-26T15:14:15+5:302018-11-26T15:14:15+5:30

एम सी मैरी कॉम ने कहा कि अब वह उस मुकाम पर पहुंच गई है कि एक भी पंच गंवाए बिना जीत दर्ज करना चाहती हैं।

Mary Kom journey: from no skills to master planner | 2001 से 2018 तक कितना बदला मैरी कॉम का खेल, बताया- कैसे बनीं 'बेहुनर' से 'बेहतरीन रणनीतिकार'

मैरी कॉम

नई दिल्ली, 26 नवंबर। पहली बार ‘हुनर के बिना सिर्फ ताकत के दम पर’ विश्व चैंपियनशिप खिताब जीतने वाली एम सी मैरी कॉम ने कहा कि अब वह उस मुकाम पर पहुंच गई है कि एक भी पंच गंवाए बिना जीत दर्ज करना चाहती हैं। 

तीन बच्चों की मां 36 बरस की मैरी कॉम ने हाल ही में छठा विश्व चैंपियनशिप खिताब जीता। यह विश्व चैंपियनशिप में उनका सातवां पदक है और टूर्नामेंट के दस सत्र के इतिहास में वह सबसे सफल मुक्केबाज बन गईं।

मणिपुर की इस मुक्केबाज ने 2001 से अब तक के विश्व चैंपियनशिप के सफर की यादें ताजा की। अमेरिका में 17 साल पहले रजत पदक के साथ इसका आगाज हुआ था और यहां घरेलू दर्शकों के सामने बीते सप्ताह उसने छठा स्वर्ण जीता।

मैरी कॉम ने कहा,‘‘2001 में मैं युवा और अनुभवहीन थी। कहा जा सकता है कि कोई कौशल नहीं था और सिर्फ दमखम पर निर्भर थी।’’

उन्होंने कहा,‘‘लेकिन 2018 में मेरे पास इतना अनुभव था कि मैने खुद पर दबाव नहीं बनने दिया। मैं अब पंच खाना नहीं चाहती और उसके बिना ही मुकाबले जीतना चाहती हूं। इस बार वही करने में कामयाब रही। मैं अब सोच समझकर खेलती हूं।’’

इससे पहले 2006 में भी मैरी कॉम ने दिल्ली में विश्व चैंपियनशिप जीती थी, लेकिन उस समय उनके आंसू नहीं छलके थे। उस समय वह जमकर मुस्कुराती नजर आई थीं, लेकिन इस बार तिरंगा लहराते समय और राष्ट्रगीत गाते समय उनके आंसू सभी ने देखे।

उन्होंने कहा,‘‘हो सकता है कि हाइप और दबाव के कारण ऐसा हुआ। उस समय महिला मुक्केबाजी इतनी लोकप्रिय नहीं थी। इस बार मैंने देखा के दर्शक दीर्घा से मेरा नाम पुकार रहे हैं। मैं भावविभोर हो गई।’’

मैरी कॉम ने कहा,‘‘आखिरी दिन लोगों में इतना उत्साह था, जिसने मुझे भावनाओं से भर दिया और यही वजह है कि मैं रो पड़ी।’’

तो क्या यह उनका सबसे खास विश्व खिताब है, यह पूछने पर उन्होंने कहा,‘‘मेरे करियर के सबसे खास पदकों में से है। मैं यह नहीं कह सकती कि कौन सा सबसे खास है, क्योंकि हर पदक के लिए मैने काफी मेहनत की है।’’

उन्होंने कहा,‘‘यह सबसे कठिन में से एक था, क्योंकि अपेक्षाएं बहुत थी। मैंने राष्ट्रमंडल खेल में 48 किलो वर्ग में भाग लेकर स्वर्ण जीता था, जिसकी वजह से विश्व चैंपियनशिप में काफी दबाव था।’’

ओलंपिक में 51 किलो भारवर्ग के आने और 48 किलो के बाहर होने के बाद से मैरी कॉम दोनों भारवर्ग में खेल रही है। उन्होंने सभी विश्व खिताब 48 किलो में और ओलंपिक कांस्य 51 किलो में जीता था।

टोक्यो ओलंपिक में उन्हें एक बार फिर क्वालिफायर में 51 किलो में खेलना होगा। उन्होंने कहा,‘‘यह आसान नहीं है, क्योंकि मैं भी इंसान हूं। इसमें अधिक परिश्रम लगता है, लेकिन मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करूंगी।’’

अपनी उपलब्धियों के बारे में मैरी कॉम ने कहा,‘‘यह सब हासिल करने वाली पहली महिला मुक्केबाज बनकर मैं बहुत खुश हूं। हर किसी के सपने होते हैं और मुझे खुशी है कि मैं अपने सपने पूरे कर सकी।’’

Web Title: Mary Kom journey: from no skills to master planner

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