PadMan Movie Review: सैनिटरी पैड की थीम पर एक 'पागल' सुपरहीरो का संघर्ष
By आदित्य द्विवेदी | Published: February 9, 2018 02:13 AM2018-02-09T02:13:29+5:302018-02-09T02:16:01+5:30
पैडमैन मूवी रिव्यूः बॉलीवुड फिल्मों में बॉयोपिक का एक सुनहरा दौर चल रहा है। 'पैडमैन' की कहानी अरुणाचलम मुरुगनथम की असल जिंदगी पर आधारित है। अक्षय कुमार की यह चर्चित फिल्म देशभर में 9 फरवरी को रिलीज हो रही है।
स्टारकास्टः अक्षय कुमार, सोनम कपूर, राधिका आप्टे
निर्देशकः आर. बाल्की
निर्माताः ट्विंकल खन्ना
संगीतः अमित त्रिवेदी
स्टारः 3/5
पैडमैन फिल्म के एक सीन में लक्ष्मीकांत (अक्षय कुमार) से परी (सोनम कपूर) कहती हैं- बहुत सस्ता है तुम्हारा ये पैड!
लक्ष्मीकांत हल्का मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं- सैकड़ों रातें, एक परिवार, एक बीवी, एक गांव, थोड़ा दिमाग और 90 हजार के कर्ज पर बना है ये एक पैड.
फिल्म के इस एक संवाद में लक्ष्मीकांत के जिंदगी का संघर्ष छलकता है। वो संघर्ष जो उसे समाज में स्थापित टैबू को तोड़ने के लिए करना पड़ा। वो टैबू जिसने भारत की आधी आबादी के हिस्से से साल के दो महीने खत्म कर दिए। वो दो महीने जब उसे घर में घुसने तक की इजाजत नहीं होती क्योंकि उसे पीरिएड्स हो रहे होते हैं। यहां इस बात का ख्याल रहे कि 'पैडमैन' महिलाओं के पीरिएड्स पर बहुत खुलकर बात ना करते हुए सिर्फ सैनिटरी पैड पर फोकस करती है। दरअसल, 'पैडमैन' फिल्म एक धुन के पक्के व्यक्ति के बिखरकर संवरने की ही कहानी है जिसके लिए सैनिटरी पैड का थीम चुन लिया गया है।
'पैडमैन' की कहानी अरुणाचलम मुरुगनथम के जीवन पर आधारित है। अरुणाचलम ने महिलाओं के पीरिएड्स की मुश्किल को हल करने के लिए पैड बनाने वाली सस्ती मशीन का अविष्कार किया। उन्होंने अपनी पत्नी और बहनों को पीरिएड्स के दिनों में घर से बाहर रहते और गंदे कपड़े का इस्तेमाल करते देखा। बाजार से सैनिटरी पैड खरीदना मुश्किल था तो उन्होंने सस्ता पैड बनाने की ठान ली। जिस समाज में पीरिएड्स को एक घिनौना और अपवित्र माना जाता हो वहां एक शख्स के लिए पैड बना लेना कतई आसान नहीं हो सकता। लिहाजा उनके रास्ते में भी मुश्किलें आई। बहनें छूट गई, घर छूट गया, गांव छूट गया, बीवी छूट गई, सम्मान चला गया... इसके बावजूद उसने संघर्ष जारी रखा और भारत का पैडमैन बन गया।
अरुणाचलम तमिलनाडु के रहने वाले हैं। दक्षिण भारतीय व्यक्ति के जीवन पर आधारित फिल्म को उत्तर भारतीय ट्रीटमेंट दिया गया है। ऐसा पहली बार नहीं किया गया। इससे पहले अक्षय कुमार ने 'एयरलिफ्ट' फिल्म बनाई थी। यह फिल्म कुवैत में रहने वाले दक्षिण भारतीय बिजनेसमैन मैथुनी मैथ्यू के जीवन पर आधारित थी। इस फिल्म का प्लॉट भी उत्तर भारतीय गढ़ा गया था। निर्माताओं को डर रहता है कि दक्षिण भारतीय किरदारों पर आधारित फिल्मों को उत्तर भारतीय दर्शक स्वीकार नहीं करेंगे। 'पैडमैन' के लिए साल 2001 में मध्यप्रदेश के महेश्वरपुर गांव का प्लॉट चुना गया है। अरुणाचल मुरुगनथम के किरदार को लक्ष्मीकांत चौहान नाम दे दिया गया है जिसे अक्षय कुमार निभा रहे हैं।
सैनिटरी पैड जैसे अनछुए विषय पर बॉयोपिक फिल्म बनाना दिलेरी का काम है। फिल्म के उपदेशात्मक अथवा अश्लील हो जाने की पूरी संभावना थी। पैडमैन के लेखक और निर्देशक आर. बल्की की तारीफ करनी होगी जिन्होंने बड़े ही मनोरंजक अंदाज में सहजता से पैडमैन की कहानी सुनाई है। अमित त्रिवेदी का संगीत अच्छा है। यहां बैकग्राउंड स्कोर की भी तारीफ करनी होगी जिसकी वजह से कई सीन और खिलकर सामने आए हैं और निश्चित रूप से दर्शकों के दिलों को छू जाएंगे।
पैडमैन फिल्म में दो अभिनेत्रियों ने काम किया है- सोनम कपूर और राधिका आप्टे। फिल्म का पहला हॉफ राधिका आप्टे और दूसरा हॉफ सोनम कपूर के हिस्से आया है। जाहिर है दोनों के अभिनय की तुलना की होगी। राधिका आप्टे की आंखों और चेहरे के हाव-भाव ही आधी अदाकारी कर देते हैं। सोनम कपूर शब्दों के सहारे संवाद करती हैं इसलिए थोड़ी उन्नीस साबित हुई हैं। राधिका आप्टे ने गायत्री का किरदार निभाया है जो लक्ष्मीकांत की पत्नी है। सोनम कपूर ने परी का किरदार निभाया है। लक्ष्मी के साथ परी के रिश्ते को शब्द नहीं दिया जा सकता। रिश्ते की इस बारीकी को फिल्म देखकर महसूस करना होगा।
अक्षय कुमार ने अपने अभिनय में असली अरुणाचलम की नकल करने की भरपूर कोशिश की है लेकिन उनका एक अलग ही वर्जन सामने आ गया है। कई मौकों पर उनका अभिनय कमजोर साबित हुुआ। कई डायलॉग में वो उलझ से गए और प्रभावी नहीं लगे। एक सीन में राधिका आप्टे कहती हैं, 'हम औरतों के लिए बीमारी से मरना शर्म के साथ जीने से बेहतर है।' पत्नी के इस तर्क पर गुस्साए अक्षय कुमार का जवाब होता है 'शरम को पकड़े बीमारी के नाले में गिर जाओ सब।' अक्षय का यह डायलॉग सुनकर अजीब सी कोफ्त होती है। हालांकि एक गंभीर विषय होने के बावजूद उनकी कॉमिक टाइमिंग ठीक बन पड़ी है।
बॉलीवुड में हिट फिल्मों का एक मसालेदार फॉर्मूला होता है। एक सुपरस्टार, एक्शन, सेक्स, फूहड़ कॉमेडी और आईटम सॉन्ग। इस फॉर्मले से इतर अक्षय कुमार ने फिल्में हिट कराने की एक नई तरकीब ईजाद की है। उनकी पिछली फिल्म 'टॉयलेटः एक प्रेम कथा' और अब पैडमैन को एक साथ रखें तो चीजें और साफ होती हैं। दोनों फिल्में किसी सच्ची घटना से प्रेरित हैं। दोनों फिल्में समाज के लिए एक अच्छा संदेश देती है। 'टॉयलेट' एक प्रेम कहानी थी जिसमें शौचालय का थीम रखा गया था। पैडमैन एक व्यक्ति के संघर्ष की कहानी है जिसमें सैनिटरी पैड का थीम रखा गया है। टॉयलेट सुपरहिट साबित हुई थी। पैडमैन के सुपरहिट होने का इंतजार है।
पैडमैन दो वजहों से देखी जानी चाहिए। पहली वजह एक ऐसे व्यक्ति के संघर्ष की कहानी है जो आपके अंदर कुछ कर गुजरने की हिम्मत जगाती है। जो बताता है कि अगर आप कुछ अच्छा करने की ठान लेंगे तो ढेर सारी रुकावटें आएंगी। लेकिन उन रुकावटों से निपटने के रास्ते तलाशने हैं। अगर आप सहीं तो कल जो आपको गाली दे रहे थे वही सफल होने के बाद आपको मालाएं पहनाएंगे। फिल्म देखने की दूसरी वजह है यूनाइटेड नेशंस में दिया गया लक्ष्मीकांत चौहान का 8 मिनट 20 सेकेंड का भाषण। अपनी टूटी-फूटी मजाकिया अंग्रेजी में उसने जिंदगी का फलसफा रख दिया. उस भाषण में एक जगह वो कहते हैं...
दिस पैड ओनली टू रुपीज... गिविंग वोमेन टू मंथ एक्स्ट्रा लाइफ। यस...यस...यस आई एक्सप्लेन व्हाई? फाइव डे एवरी मंथ वुमेन सिटिंग आउटसाइड हाउस डूइंग नथिंग। 12*5 इक्सवल टू 2 मंथ। 2 रुपीज पैड गिविंग वोमेन टू मंथ एक्स्ट्रा लाइफ।'
यहां देखिए पैडमैन का ट्रेलर-
Final Verdict: बॉलीवुड में बॉयोपिक फिल्मों का एक सुनहरा दौर चल रहा है। उसी कड़ी में 'पैडमैन' का भी नाम एक अच्छी फिल्म के रूप में जोड़ लेना चाहिए। 'पैडमैन' एक बॉयोपिक के सभी पैमानों पर खरी उतरती है। कहानी, अभिनय, संगीत, निर्देशन सभी क्षेत्रों में संतुलित काम किया गया है। हम इस फिल्म को दे रहे हैं पांच में से तीन स्टार। कुछ अलग कर गुजरने का सपना संजोए धुन के पक्के युवाओं को एकबार ये फिल्म देखनी चाहिए। अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी के साथ भी जा सकते हैं। अच्छा लगेगा।