पद्मावत समीक्षाः विवाद जीत गए, पर पद्मावत के निर्देशन में चूक गए भंसाली
By खबरीलाल जनार्दन | Published: January 24, 2018 10:08 AM2018-01-24T10:08:22+5:302018-01-24T23:57:51+5:30
पद्मावत विवादों से उलट राजपूतों की आन-बान-शान बढ़ाने वाली फिल्म है। हर राजपूत को यह फिल्म देखनी चाहिए।
पद्मावत ***
निर्देशकः संजय लीला भंसाली
कलाकारः दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, अदिती रॉव हैदरी, अनुप्रिया गोएनका, रजा मुराद, मंजीत सिंह, जिम सरभ, शहरान सिंह
लेखकः संजय लीला भंसाली (स्क्रीनप्ले), प्रकाश कपाड़िया (संवाद व स्क्रीनप्ले)
निर्माता- संजय लीला भंसाली, अजीत अंधारे
पद्मावत, अलाउद्दीन खिलजी के बारे में हैं। वह पूरी फिल्म पर इस कदर छाया हुआ कि बाकी पात्र गौण नजर आते हैं। फिल्म उन आरोपों पर सोलह आना खरी उतरती है जिनमें कहा जा रहा था कि यह फिल्म अलाउद्दीन खिलजी का महिमामंडन है। पूरी फिल्म में यह बार-बार दोहराया जाता है कि रानी पद्मावती बला की खूबसरत हैं। लेकिन फिल्म में दिख रहा होता फूहड़, कुरूप कटे हुए चेहरे पर कभी गुलाल तो कभी खून मलता, गोश्त नोचता अलाउद्दीन है।
फिल्म में ऐसे तीन अवसर आते हैं जहां रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी की मुलाकात हो सकती थी। संभवतः सेंसर और संसदीय समिति ने इन्हीं हिस्सों में काट-छांट कराई होगी। लेकिन करणी सेना ने जिन दूसरी बातों पर फिल्म का विरोध किया, पद्मावत उससे उलट है।
पद्मावत का विवाद
पद्मावत का मुखर होकर विरोध कर रही करणी सेना, राजस्थान समेत अन्य राज्यों के राजपूत, खासकर कर के राजपूत महिलाओं का कहना था यह फिल्म राजपूतों का मानमर्दन करेगी। फिल्म के ट्रेलर और गाना घूमर रिलीज होने के बाद विरोध ने हिंसक रूप ले लिया था। आरोप था कि रानी पद्ममिनी का चरित्र-चित्रण गलत किया गया है।
पद्मावत की सच्चाई
पद्मावत, राजपूतों की आन-बान-शान की दुहाई देने वाली फिल्म है। इसमें राजपूतों अपने वसूलों के कितने पक्के हैं, कितने दरियादिल, कितने बहादुर, कितने सच्चे हैं, ऐसे दृश्यों की भरमार है। एक दृश्य देखिए- राजा रतन सिंह के सेनापति गोरा सिंह की अपनी राजा की रक्षा करने में सिर कट गया है। लेकिन उसका धड़ अभी नीचे नहीं गिरा है। ना उसके हाथ से तलवार छूटी है। ऐसे में वह करीब दस बार तलवार भांजता है।
बिना सिर के तलवार भांजता राजपूत दिखाता है कि वह मरते दम तक लड़ता है। फिल्म में ऐसे चार अवसर हैं जहां राजा रतन सिंह, अलाउद्दीन खिलजी की हत्या करत सकते हैं। लेकिन अपने वसूलों के खिलाफ वह किसी निहत्थे या घर आए मेहमान पर हाथ नहीं उठाते। और जब हाथ उठाते हैं तो उस दैत्य जैसे दिखने वाले भयावह अलाउद्दीन पर भारी पड़ते हैं।
दूसरी ओर रानी पद्मावती, पूरी फिल्म में बहादुरी की मिसाल हैं। निर्देशक यहां चूके हैं। उनके पात्र बार-बार रानी खूबसूरत हैं, ऐसा बोलते हैं। लेकिन रानी एंट्री (हिरन का शिकार करते हुई रानी पद्ममिनी की एंट्री) दृश्य से आखिर दृश्य (रानी महल की हजारों सतरानियों के साथ जौहर करती है) तक हर एक फ्रेम में बेहद बहादुर महिला के रूप में नजर आती हैं। वह अलाउद्दीन की मांद में घुसकर राजा रतन सिंह को कैद से आजाद करा लेती हैं।
पद्मावत के निर्देशन में उलझे नजर आते हैं भंसाली
संजय लीला भंसाली को इस फिल्म के बाद इस भ्रम से उबर जाना चाहिए कि वे पीरियड ड्रामा को पर्दे पर सही ढंग से उतार पाते हैं। उनकी पिछली फिल्म बाजीराव मस्तानी भी युद्ध के दृश्यों में बेहद कमजोर थी। लेकिन पद्मावती उन्हें और पीछे ढकेलती है। इस बार वह उलझे नजर आए हैं। मुमकिन है विरोध और काट-छांट से फिल्म गति प्रभावित हुई हो, लेकिन पूरी फिल्म बिखरी नजर आती है। अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के जौहर के दृश्य के अलावा फिल्म दर्शकों के मानस पटल पर चढ़ती नहीं।
पद्मावत कोई ऐसी फिल्म नहीं है, जिसे फिल्मी कारणों से याद रखा जाएगा। भंसाली से उम्मीद रहती हैं फिल्म में संगीत, कलर, फ्रेम की सजावट देखने को मिलेगा। लाइट और कलर के मेल से बने मनमोहक सेट दिखेंगे। वह फिल्म के इमोशन के साथ रंगों ओर संगीत से खेलते हैं। यह दर्शकों को गहरे छूता है। लेकिन इस बार फिल्म ऐसा होता नजर नहीं आता।
फिल्म में पांच गाने बजते हैं पांचों बेमेल। युद्ध के दृश्य की कल्पना इतनी कमजोर है कि कुछ जगहों दूसरी फिल्म की नकल लगती है। मसलन, युद्ध में आग के गोले फेंकवाना, या भरे मैदान में दोनों तरफ हजारों की सख्या में खड़े सैनिकों के बीच अलाउद्दीन और राजा रतन सिंह का मलयुद्ध कराना। वे भी पुरानी फिल्मों से कमतर। संवादों से बताया जाता है कि सैनिकों की संख्या हजारों में है, लेकिन मैदान में खड़े हजारों के समूह वाले दृश्य को छोड़ दें तो युद्ध के दौरान मुट्ठी भर लोग दिखते हैं।
कहानी का धारा प्रवाह भी अटकता है। एक ही समय पर दो कहानियां विकसित हो रही होती हैं। फिल्म अफगानिस्तान से शुरू होती है। कुछ मिनट के भीतर वह सिंघल राज्य की राजकुमारी पद्मावती पर आ जाती है। दो दृश्य बीतते ही वह फिर से अफगानिस्तान लौट जाती है। ऐसा लगता है अगर भंसाली इसी फिल्म में तीसरी कहानी चला देते तो ज्यदा नहीं अखरता। कहने का आशय है कि कहानी के विकास के तार आपस में उस तरह नहीं जुड़ते। फिर राघव चेतन नाम का किरदार चौंकाता है। वही दिल्ली सम्राट खिलजी के मन में चित्तौड़ की रानी के प्रति आकर्षण जगाता है।
पद्मावत की कहानी
फिल्म के शुरुआत में पांच डिस्क्लेमर चलते हैं। उनमें तरह-तरह से समझाने की कोशिश की जाती है कि यह पूरी तरह काल्पनिक कहानी है। इसका काफी कुछ हिस्सा मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत से लिया गया है। फिल्म में किरदारों के नाम असल रखे गए हैं। फिल्म की कहानी सनकी अलाउद्दीन खिलजी की तुनक मिजाजी, सुंदर चीजों के प्रति उसके टपकते लार, युद्ध कौशल के इर्द-गिर्द घूमती है। खिलजी का एक संवाद है- कायनात की हर नायाब चीज पर सिर्फ अलाउद्दीन का हक है। वह इसे पूरा करने में लगा रहता है।
दूसरी कहानी राजपूत झुकते नहीं और वसूलों के पक्के होते हैं आदि को बार-बार जस्टीफाई करती रहती है। फिर भी कुछ मौकों पर राजा रतन सिंह ने राज्य बचाने के लिए समझौते किए हैं। वह खिलजी को अपनी रानी का चेहरा दिखाने को राजी हो जाते हैं। खिलजी किसी भी तरह रानी पद्मावती को पाना चाहता है। लकिन वह आखिर तक ऐसा नहीं कर पाता।
पद्मावती में अभिनय
रणवीर सिंहः फिल्म रिलीज से पहले ऐसी खबरें फैलाई गई कि रणवीर इस भूमिका को अदा करने में पागल से हो गए थे। उनपर कुछ इत्रों का ऐसा असर पड़ा था कि उनका दिमाग खराब हो गया था। वह फिल्म में हूबहू नजर आता है। अभिनय की दृष्टि से यह रणवीर सिंह की यह अब तक सबसे शानदार फिल्म है। वह क्रूर, सनकी, दैत्य के किरदार एकदम फिट बैठे हैं।
दीपिका पादुकोणः दीपिका के हिस्से जितने दृश्य आए हैं उनमें वह जंची हैं। लेकिन अभिनय में दोहराव नजर आया है। उनके बोलने, मुस्कुराने, उत्साहित होने, भावुक होने के दृश्य पिछली फिल्मों के नकल लगते हैं। वह अपने पति से खड़ी बोली में बात करती हैं, जबकि प्रजा से राजस्थानी बोलने की कोशिश करती हैं। लगता है जैसे राजा रतन सिंह से उनकी मुलाकात विलायत में हुई हो।
शाहिद कपूरः शाहिद फिल्म की कमजोर कड़ी हैं। कई आम दृश्यों में वे सहमे से नजर आते हैं। लगता है शूट करने से पहले उन्हें इतनी डांट पड़ी है कि उसका असर अभी गया नहीं है। राजा रतन सिंह के किरदार में वह बिल्कुल नहीं जमे हैं। एक-दो दृश्यों में उनके हाथ-पांव कांपते नजर आते हैं। जबकि फिल्म में वैसा कोई प्रसंग नहीं होता।