#KuchhPositiveKarteHain: मलिन बस्ती के बच्चों की शिक्षा का उठाया जिम्मा, सामाज की सेवा के लिए छोड़ दी नौकरी

By मेघना वर्मा | Published: July 17, 2018 07:24 AM2018-07-17T07:24:34+5:302018-07-17T07:24:34+5:30

LokmatNews.in की ओर से शुरू किए गए #KuchhPositiveKarteHain में आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी ही एक महिला की कहानी जिसने अपने दम पर मलिन बस्ती के सैकड़ो बच्चों को शिक्षा का मार्ग दिखाया।

responsibility of the slum education,left job for the service of society that's the story of the Nazis | #KuchhPositiveKarteHain: मलिन बस्ती के बच्चों की शिक्षा का उठाया जिम्मा, सामाज की सेवा के लिए छोड़ दी नौकरी

#KuchhPositiveKarteHain: मलिन बस्ती के बच्चों की शिक्षा का उठाया जिम्मा, सामाज की सेवा के लिए छोड़ दी नौकरी

"अल्लाह कह लो, ईश्वर कह लो या मसीहा, जब भी आप किसी मुसीबत में हो बस अपने ईश्वर को याद कीजिए रास्ता अपने आप बनता चला जाएगा।" इन लाइनों के साथ नाजिया बानों ने जब अपने अनुभवों और काम के बारे में बताना शुरू किया तो पता चला कि आज भी किसी महिला का एकेले रास्ते पर चलना कितना मुश्किल है। बावजूद उसके बिना किसी से डरे नाजिया अपने रास्ते पर आगे बढ़ रही हैं और अपने दम पर समाज के एक छोटे हिस्से में अपनी क्षमता के अनुरूप अपनी मदद देने की कोशिश कर रही हैं। इलाहाबाद की नाजिया बानो मलिन बस्ती की मार्गदर्शक मानी जाती हैं। मलिन बस्ती के बच्चों को शिक्षा देना हो या उनके मां-बाप को समझा-बुझा कर बच्चों को स्कूल जाने के लिए राजी करना यह सभी काम करने में नाजिया को दिल से सुकून मिलता है। 71 साल 71 कहानियों में आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी ही एक महिला की कहानी जिसने अपने दम पर ना सिर्फ मलिन बस्ती के सैकड़ो बच्चों को शिक्षा का मार्ग दिखाया बल्कि बाल सुधार गृह से भी कई बच्चों को बचाया और उनको शिक्षा दिला रही हैं।   

2011 से शुरू किया काम

इलाहाबाद में पैदा हुई नाजिया बानो की शिक्षा की बात करें तो बीए, एमबीए के बाद अभी वह एलएलबी कर रही हैं। इसके पीछे भी कारण सिर्फ और सिर्फ समाज सेवा है। नाजिया बताती हैं कि एलएलबी की पढ़ाई के बाद वह संविधान और भारतीय कानून के बारे में इतना जान लेना चाहती हैं कि वह गरीबों और मलिन बस्ती की महिलाओं और लोगों को इसकी जानकारी दे सकें। ताकि कोई उनका गलत फायदा ना उठाए। नाजिया नें बताया कि वैसे तो वह हमेशा से ही सामाजिक कार्यों से किसी ना किसी तरह जुड़ी रही फिर चाहे वह कॉलेज के दिन हो या उसके बाद के। मगर 2011 से ऑन पेपर उन्होंनें सामाजिक कार्य करना शुरू किया। 

मलिन बस्ती के बच्चों को देती हैं शिक्षा

नाजिया का मनना है कि किसी भी समाज को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है कि समाज के लोग शिक्षित हों। इसी के चलते वह समाज के उन बाल मजदूरों को शिक्षित करने में जुटी हैं जो आज भी चाय के दुकानों में कप धोते हुए या किसी रिपेयर की दुकान पर गाड़ी धोते हुए मिल जाते हैं। नाजिया का मनना है कि शिक्षा सबका बराबर का अधिकार है। बस किसी के पास पैसे कम हैं तो इसका यह बिल्कुल मतलब नहीं कि उनमें शिक्षा का अभाव हो। बस इसी बात को अपना ध्येय बनाकर नाजिया ने इलाहाबाद की सभी मलिन बस्तियों के बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा अपने कंधों पर ले लिया। 

नौकरी के साथ नहीं हो पाई समाज सेवा

नाजिया ने लोकमत को बताया कि 2011 से पहले वह नौकरी भी करती थीं लेकिन उस 9 घंटे की नौकरी के बीच उन्हें मलिन बस्ती के बच्चों और वहां के लोगों के बीच रहने और उनके लिए काम करने का मौका नहीं मिल पाता था। मगर वह अपने सामाजिक कामों से इतना जुड़ना चाहती थीं, गरीबों और बच्चों के लिए इतना कुछ करना चाहती थीं जिसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद से आज तक वह इलाहाबाद और उसके आस-पास के इलाकों के मलिन बस्तियों के लिए लगातार काम कर रही हैं। 

अलकौसर सोसाइटी की हुई शुरूआत

2011 में नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने अलकौसर सोसाइटी की शुरूआत की। यह एक ऐसी सोसाइटी है जिसमें अलग-अलग वर्ग और क्षेत्र से लोग जुड़े हुए हैं। मसलन के तौर पर डॉक्टर्स और शिक्षक और भी कई तरह के लोग जुड़े हैं जो समय-समय पर मलिन बस्तियों की हर सम्भव करते हैं। इस सोसाइटी में अब तक 120 मेम्बर्स जुड़ चुके हैं। सिर्फ यही नहीं इस सोसाइटी को सरकार की और से कई सारे सम्मान भी हासिल हुए हैं।  

बालगृह में भी देती हैं बच्चों को शिक्षा

नाजिया बानो बालमित्र भी हैं। इसी के चलते वह बाल सुधार गृह और बाल गृह में भी आती-जाती हैं। बाल सुधार गृह से भी उन्होंने बहुत से बच्चों को शिक्षा दी है। सिर्फ यही नहीं शहर में मिले कई  लावारिस बच्चों को भी उन्होंने बाल गृह में रखवाया और उनकी देखभाल और शिक्षा का जिम्मा अपने कंधे पर लिया। 

सैकड़ों मलिन बच्चों को शहर के नामचीन स्कूलों में दिलवा चुकी है दाखिला

नाजिया बताती हैं कि जब भी वह मलिन बस्तियों में वहां के बच्चों की शिक्षा की बात करती हैं तो उनके मां-बाप स्कूल की फीस का ध्यान करते हुए किसी भी स्कूल में दाखिला दिलवाने से बचते हैं। ऐसे में वह उन्हें समझा कर बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाती हैं। हर साल अलकौसर सोसाइटी की वजह से मलिन बस्ती के कम से कम 40 बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलवाया जाता है। कोशिश यह भी करती हैं कि बच्चों की स्कूल की फीस भी माफ हो जाए ताकि वह बिना किसी अड़चन के बस पढ़ सकें। 

नहीं लिया कभी कोई सरकारी फंड

नाजिया ने बताया कि उन्होंने अपने काम के लिए कभी किसी सरकारी या गैर सरकारी फंड से मदद नहीं ली। ऐसा नहीं है कि उन्हें कभी ऑफर नहीं मिले लेकिन उनका मानना है कि वह सारा काम अपने बलबूते पर करना चाहती हैं। यही कारण है कि उन्होंने नौकरी के समय की गई सेविंग्स की मदद से सोसाइटी की शुरूआत की और उसी में धीरे-धीरे आगे बढ़ती गईं। 

Web Title: responsibility of the slum education,left job for the service of society that's the story of the Nazis

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