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राजा राममोहन राय को समर्पित है आज का गूगल-डूडल, मुग़लों से मिली थी 'राजा' की उपाधि

By आदित्य द्विवेदी | Updated: May 22, 2018 04:15 IST

महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय का आज 246वां जन्म दिवस है। उन्हें 'मेकर ऑफ मॉडर्न इंडिया' भी माना जाता है।

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नई दिल्ली, 22 मईः भारतीय सामाजिक बुराइयों का इतिहास काफी पुराना रहा है। बाल विवाह से लेकर सती प्रथा तक की कुरीतियां इसी समाज का अंग रही हैं। इन कुरीतियों को दूर करने का बीड़ा उठाना तो दूर कोई इनके खिलाफ बोलने तक को पाप माना जाता था। ऐसे वक्त में महान समाज सुधारक और पत्रकार राजा राममोहन राय ने इन कुरीतियों का विरोध किया। आज उनका 246वां जन्मदिन है। गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उन्हें याद किया है। राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत का निर्माता', 'आधुनिक भारत का जनक', 'बंगाल पुनर्जागरण का प्रणेता' और 'भारतीय पत्रकारिता के पायनियर' के रूप में भी जाना जाता है।

राम मोहन राय का जन्म बंगाल के हुगली जिसे के राधानगर में 22 मई 1772 ई. में हुआ था। उनके पिता रामकांत वैष्णव और उनकी मां तरिणी देवी शैव अनुयायी थी। राम मोहन की शुरुआती शिक्षा दीक्षा बंगाल के ही एक गांव में हुई जहां उन्होंने बांग्ला और संस्कृत का अध्ययन किया। इसके बाद वो फारसी पढ़ने पटना और अरबी पढ़ने मद्रास चले गए। उस वक्त मुग़लों के शासन काल में फारसी और अरबी भाषा की बहुम मांग थी। इस दौरान उन्होंने कई धर्मग्रंथों का भी गूढ़ अध्ययन किया।

राजा राममोहन राय का राजनीति, शिक्षा, पत्रकारिता और धार्मिक मामलों में किया गया योगदान अतुलनीय है। उन्होंने साल 1815 में आत्मीय सभा की स्थापना की ज बाद में ब्रह्म सभा और फिर साल 1829 में 'ब्रह्म समाज' बन गया। ब्रह्म समाज का मानना है कि सभी धर्म एक हैं जो सामाजिक बदलाव में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। ब्रह्म समाज का मानना है कि पूजा के लिए समय और जगह नियत होनी चाहिए। इस समाज ने सती प्रथा के खिलाफ सफल अभियान चलाया। सती प्रथा में विधवाओं को पति की चिता में जिंदा जला दिया जाता था। राजा राम मोहन राय ने बाल विवाह के खिलाफ भी अपनी आवाज बुलंद की।

शिक्षा के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने भारतीय शिक्षा पद्धति को आधुनिक बनाने के अनेक प्रयास किए। राम मोहन ने साल 1822 में कलकत्ता में हिंदू कॉलेज और एक एंग्लो-वैदिक स्कूल की भी स्थापना की। राममोहन राय अभिव्यक्ति की आजादी के पक्के पक्षधर रहे। उन्होंने कई बांग्ला, फारसी, हिंदी और अंग्रेजी अखबारों का प्रकाशन किया।

मुगल बादशाह अक़बर द्वितीय ने साल 1831 में उन्हें 'राजा' की उपाधि से नवाजा था। 27 सितंबर 1833 को ब्रिटेन यात्रा के दौरान ब्रिसेल में उनकी मृत्यु हुई थी। इस महान शख्सियत को Lokmat News नमन करता है।

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